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Shabash Mithu Review: हिट-एंड-मिस फिल्म में तापसी पन्नू ने एक बीट भी मिस नहीं की

फिल्म में मिताली राज के सभी उतार-चढ़ाव को दिखाया गया है.

स्तुति घोष
एंटरटेनमेंट
Published:
<div class="paragraphs"><p>Shabash Mithu Review</p></div>
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Shabash Mithu Review

Image-Social media

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भारतीय महिला क्रिकेट टीम की कप्तान मिताली राज(Mithali Raj) पर आधारित फिल्म शाबाश मिठू 15 जुलाई को सिनेमाघरों में रिलीज कर दी गई. फिल्म में मिताली राज का किरदार तापसी पन्नू ने निभाया है. शाबाश मिठू को दो भागो में बांटा जा सकता है. फिल्म का पहला भाग अपनी मासूमियत, दिल को छू लेने वाले पलों के साथ हमारे दिलों को जीत लेता है. वहीं सेकेंड हाफ एक बार में सभी कामों को पूरा करने का काम करता है. फिल्म में मिताली राज के सभी उतार-चढ़ाव को दिखाया गया है.

शाबाश मिठू उन सभी स्पोर्ट्स बायोपिक प्रोटोटाइप को तोड़ने के लिए शाबाशी की हकदार है. शाबाश मिठू को देखना सिर्फ इसलिए ही दिलचस्प नहीं है कि मिताली राज ने महिला क्रिकेट के लिए कितना योगदान दिया है, ये इसलिए भी दिलचस्प है क्योंकि हम एक युवा मिठू से मिलते हैं. और वह वास्तव में देखने लायक है. पर्दे पर अभिनेताओं को देखते हुए ऐसा नहीं करना मुश्किल है.

कुछ ऐसी है फिल्म की कहानी

इसकी शुरुआत साल 1990 में मिताली के बचपन से होती है जब वो भरतनाट्यम सीखने जाती है. जहां उसे नूरी मिलती है जो अपने घरवालों से छुप के क्रिकेट सीखने जाती है. इसी बीच नूरी मिताली को भी साथ ले जाती है. यहां मिताली पर कोच संपत की नजर पड़ती है और वो उसके घर वालों को मनाने जाते हैं. इसी तरह कहानी आगे बढ़ती है कि किस तरह मिताली राज को किन-किन कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है.और हिम्मत रखते हुए महिला क्रिकेट एसोसिएशन में क्या बदलाव लाती हैं.

शाबाश मिठू' से एक सीन

(Photo Courtesy: YouTube)

तापसी पन्नू ने मिताली राज के किरदार को बहुत ही बेहतरीन तरीके से निभाया है,जो सिर्फ आखों ही आखों में बात करती है.
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कोच के किरदार में विजय राज ने कमाल का काम किया है. वो अपनी मौजूदगी बड़ी मजबूती से दर्ज करवाते हैं और खूब जमे भी हैं. तापसी के बचपन का किरदार बिजेंदर काला का काम अच्छा है. तापसी औऱ उनकी बचपन की दोस्त का किरदार निभाने वाले बच्चों ने भी शानदार काम किया है और शुरुआत से ही वो आपको फिल्म से जोड़ देते हैं.

विजय राज कोच के किरदार में

(Photo Courtesy: YouTube)

लेकिन इंटरवल के बाद, ऐसा लगता है कि फिल्म ने अपने ही किरदारों और दर्शकों को नकार दिया है. जब आपके पास तापसी पन्नू जैसी अच्छी अदाकारा है,तो आपको वॉ़यस ओवर के जरिए आगे की कहानी दिखाने की क्या जरूरत है.

लेकिन निर्देशक श्रीजीत मुखर्जी हमेशा दर्शकों के साथ एक बंधन बनाने के लिए कलाकारों के अभिनय कौशल की तुलना में भारी उपदेशात्मक संवादों पर अधिक भरोसा करते हैं. फिल्म में क्रिकेट के सीन्स को बहुत ही जल्दी-जल्दी दिखाया है, इसलिए फिल्म दर्शकों को अपनी ओर आकर्षित नहीं कर पाती है. वर्ल्ड कप को बड़ी लीपापोती से दिखाया गया है. फिल्म के क्लाईमैक्स से जान गायब है.

फिल्म के एक सीन में तापसी पन्नू मिताली राज के किरदार में

(Photo Courtesy: YouTube)

इस फिल्म की एक कमी ये कही जा सकती है कि ये थोड़ी स्लो है लेकिन श्रीजीत मुखर्जी का कहानी कहने का अंदाज ही यही है. ये फिल्म कई सवाल उठाती है. महिला क्रिकेट के साथ हुई बेरुखी के सवालों को ये फिल्म काफी मजबूत तरीके से उठाती है और वो सीन आपको काफी हैरान भी करते हैं.

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