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फूड डिलीवरी ऐप (Food Delivery App) के 'बहिष्कार' की खबरें आती रहती हैं. लोग फूड डिलीवरी कंपनियों पर अपने कर्मचारियों को कम वेतन देने, सुरक्षा की कमी, अनुचित दबाव और शोषण का आरोप लगाते रहते हैं. नंदिता दास (Nandita Das) की नई फिल्म 'ज्विगाटो' (Zwigato) इसी मुद्दे पर रौशनी डालने की कोशिश करती है.
'ज्विगाटो' फिल्म में मानस महतो (कपिल शर्मा) नाम का एक शख्स नौकरी जाने के बाद फूड डिलीवरी का काम शुरू करता है.
एक बेहतर जीवन की तलाश में वो अपने परिवार के साथ झारखंड से ओडिशा चला जाता है. उसके परिवार में उसकी पत्नी प्रतिमा (शहाना गोस्वामी), उसके दो बच्चे और उसकी बीमार मां शामिल हैं.
फिल्म की कहानी मानस और उसके परिवार के इर्द-गिर्द घुमती है. उसकी दिनचर्या 'ज्विगाटो' के तेज नोटिफिकेशन से बाधित होती रहती है. हर दिन वो अपने परिवार से 10 ऑर्डर पूरा करने का वादा करता है, लेकिन वो एक सिस्टम में फंसकर विफल हो जाता है. ऐसा सिस्टम जिसे डिजाइन ही इसी चीज के लिए किया गया है.
'ज्विगाटो' में यह दिखाने की कोशिश की गई है कि कैसे सामान्य रूप से गिग वर्कर्स (काम के बदले भुगतान के आधार पर रखे गए कर्मचारी) और सर्विस इंडस्ट्री वर्कर्स को एलीट क्लास द्वारा बैकग्राउंड में रखा जाता है. जो की अमानवीय है. भले ही मानस और प्रतिमा को ईमानदार, मेहनती तौर पर दिखाया गया है, लेकिन यह दूसरों को उन्हें संदेह या तिरस्कार की दृष्टि से देखने से नहीं रोकता है.
अगर एक्टिंग की बात करें तो कपिल शर्मा ने मानस के किरदार को निभाने की अच्छी कोशिश की है. यह रोल कपिल की पिछली फिल्मों से बिल्कुल अलग है. जो कि एक नया बदलाव है. हालांकि, वह अपने रोल में उन परतों को शामिल करने में चूक जाते हैं जो दर्शकों को उनके कैरेक्टर को बेहतर ढंग से समझने में मदद कर सकती है.
दूसरी ओर, शहाना गोस्वामी फिल्म की स्टार हैं. वह फिल्म की ताकत हैं और बड़ी ही सहजता के साथ अपने कैरेक्टर में ढल जाती हैं.
फिल्म में गोस्वामी के प्रदर्शन के किसी भी पहलू में कमी निकालना मुश्किल है. प्रतिमा के माध्यम से नंदिता दास ने समाज में महिला-पुरुषों के बीच भेदभाव को दिखाने की कोशिश की है.
नंदिता दास और समीर पाटिल की स्क्रीनप्ले फिल्म में आज के सामाजिक-आर्थिक और राजनीतिक ताने-बाने सहित कई अन्य पहलुओं की पड़ताल करती है. जैसा कि मानस और प्रतिमा की कहानी सामने आती है, राजनीतिक असहमति, जातिगत भेदभाव, विशेषाधिकार की कितनी परतें हैं, और बहुत कुछ के बारे में बार-बार बातचीत होती है.
फिल्म के सबसे अच्छे पहलुओं में से एक हिंदी और ओडिया भाषा को इसमें शामिल करने का निर्णय है, क्योंकि फिल्म की भुवनेश्वर की है. अक्सर हम देखते हैं कि किसी विशेष शहर पर आधारित फिल्मों या शो में केवल कैरेक्टर के भाषा पर ध्यान दिया जाता है. लेकिन यह फिल्म उस पैटर्न को तोड़ता है.
ज्विगेटो की ताकत इसकी ईमानदारी और ऑथेंटिसिटी है. नंदिता दास ने इस फिल्म के जरिए खूबसूरती और प्रभावी ढंग एक संदेश देने की कोशिश की है.
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