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मुंबई की विशेष सीबीआई अदालत ने शुक्रवार को सोहराबुद्दीन शेख एनकाउंटर केस में सभी 22 आरोपियों को बरी कर दिया. सीबीआई ने इस एनकाउंटर को राजनीतिक और पैसों के लिए की गई साजिश करार दिया था. इस मामले में कुल 38 आरोपी थे, जिनमें बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह और पुलिस अधिकारी रहे डीजी बंजारा समेत 16 आरोपियों को पहले ही बरी कर दिया गया था.
विशेष सीबीआई अदालत ने कहा कि वो मजबूरी में ये फैसला कर रहे हैं, क्योंकि सभी गवाह और सबूत हत्या और साजिश को साबित नहीं कर पाए. इसके अलावा फैसले में कहा गया है कि तुलसीराम प्रजापति की साजिश के तहत हत्या का आरोप सही नहीं पाया गया. आइए जानते हैं, क्या था यह पूरा मामला...
23 नवंबर 2005 को सोहराबुद्दीन शेख अपनी पत्नी कौसर बी के साथ एक बस में हैदराबाद से अहमदाबाद जा रहा था. रात के 1:30 बजे, गुजरात पुलिस के एंटी-टेरर स्क्वॉड (ATS) ने महाराष्ट्र के सांगली में बस रुकवाई. इसके बाद ATS ने सोहराबुद्दीन और उसकी पत्नी को बस से उतारा. 3 दिन बाद यानी 26 नवंबर 2005 की सोहराबुद्दीन की गोली लगने से मौत हो गई, जिसे पुलिस के डिप्टी इंस्पेक्टर जनरल डीजी वंजारा ने एनकाउंटर करार दिया.
पुलिस ने अपने बयान में कहा, ''शेख अहमदाबाद के नरोल इलाके से ऑपरेट कर रहा था. जब पुलिस ने उसे विशाला सर्कल के पास मोटरसाइकल पर देखा, तो उसे रोकने की कोशिश की. मगर जब वो नहीं रुका, तो पुलिस वालों पर उसने फायरिंग की. पुलिस वालों ने अपनी रक्षा के लिए जो कार्रवाई की, उसमें वो मारा गया.''
सोहराबुद्दीन को लेकर तीन अलग-अलग राय थीं. कोई उसे जबरन वसूली करने वाला बताता था, किसी की नजर में वह आतंकवादी था, तो कोई उसे भ्रष्ट पुलिस वालों का गुर्गा मानता था. 2002 से 2003 के बीच सोहराबुद्दीन, तुलसीराम प्रजापति और मोहम्मद आजम (जो बाद में सीबीआई के लिए अहम गवाह बना) ने एक गैंग बनाया था. यह गैंग उदयपुर, अहमदाबाद और उज्जैन के मार्बल व्यापारियों और फैक्ट्री मालिकों से उगाही करता था.
अब्दुल लतीफ (जिसकी कथित तौर पर पुलिस कस्टडी से भागने की कोशिश में गोली लगने के बाद मौत हुई थी) के मारे जाने के बाद सोहराबुद्दीन पर नेशनल सिक्यॉरिटी एक्ट समेत करीब 50 मामले चल रहे थे. हालांकि वो दोषी साबित नहीं हुआ. इस बात का कोई सबूत नहीं था कि सोहराबुद्दीन आतंकी था.
डीजी वंजारा ने उसे अंडरवर्ल्ड के साथ रिश्ते रखने वाला शार्प शूटर बताया था. वंजारा के मुताबिक, वो आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा और पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई के इशारों पर कुछ बड़े राजनेताओं की हत्या करने की साजिश बना रहा था.
सीबीआई की एक चार्जशीट (जिसके हिस्से को टाइम्स ऑफ इंडिया में छापा गया था) के मुताबिक, सोहराबुद्दीन आईपीएस अधिकारी अभय चुडासमा का गुर्गा था. इन दोनों की उगाही और आपराधिक गतिविधियों में 75:25 की भागीदारी थी. मोहम्मद आजम (एक समय अपराधों में शेख का सहयोगी, बाद में सीबीआई के लिए मुख्य गवाह) के कई दावों में से एक दावा 2010 में सीबीआई द्वारा चुडासमा की गिरफ्तारी की एक वजह बना था. हालांकि सीबीआई चुडासमा के खिलाफ आरोपों को साबित नहीं कर सकी.
एनकाउंटर के कुछ हफ्तों बाद सोहराबुद्दीन के भाई रबाबुद्दीन ने भारत के मुख्य न्यायाधीश को पत्र लिखा. इस पत्र में उन्होंने लिखा कि वह सोहराबुद्दीन की मौत को लेकर गुजरात पुलिस के बयान से सहमत नहीं हैं. इसके साथ ही उन्होंने सोहराबुद्दीन की पत्नी कौसर बी के (उस वक्त) गायब होने पर भी चिंता जताई. इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने सोहराबुद्दीन के मारे जाने और कौसर बी के गायब होने के मामले में गुजरात पुलिस को जांच के आदेश दिए.
अंग्रेजी अखबार 'द हिंदू' ने अपनी एक रिपोर्ट में इस बात का ज्रिक किया था. इतना ही नहीं, अपनी प्राथमिक रिपोर्ट में जौहरी ने इस मामले से अमित शाह (गुजरात सरकार के तत्कालीन मंत्री) के रूप में राज्य सरकार की संलिप्तता की बात कही थी.
आगे बढ़ी मामले की जांच गीता जौहरी की रिपोर्ट से इस मामले में दो मुख्य चीजें हुईं :
सीबीआई के मुताबिक सोहराबुद्दीन, उसकी पत्नी कौसर बी और उसके सहयोगी तुलसीराम प्रजापति को गुजरात पुलिस ने एक बस से अगवा किया था. यह घटना 22 नवंबर 2005 की बताई गई है. जांच एजेंसी की मानें तो उस दौरान सोहराबुद्दीन बाकी लोगों के साथ हैदराबाद से महाराष्ट्र के सांगली जा रहा था. सीबीआई ने बताया कि इसके चार दिन बाद सोहराबुद्दीन को अहमदाबाद के पास मार दिया गया था.
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