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नागालैंड (Nagaland) में सेना के अभियान में 14 नागरिकों और एक सुरक्षा अधिकारी की मौत के बाद एक बार फिर से देश में सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून (AFSPA) को हटाने की मांग जोर पकड़ने लगी है. नागालैंड के मुख्यमंत्री नेफ्यू रियो और मेघालय के मुख्यमंत्री कोनराड संगमा ने सोमवार, 6 दिसंबर को AFSPA को निरस्त करने की मांग सामने रखी है.
नागालैंड के मुख्यमंत्री नेफ्यू रियो ने कहा है कि इस कानून ने देश की छवि पर धब्बा लगाया है. समाचार एजेंसी ANI के अनुसार सीएम नेफ्यू रियो ने कहा कि "हम केंद्र सरकार से नागालैंड से AFSPA को हटाने के लिए कह रहे हैं."
आखिर क्या है विवादस्पद AFSPA कानून जिस पर जम्मू-कश्मीर से लेकर पूर्वोत्तर राज्यों तक हंगामा होता रहा है.
AFSPA मतलब सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून. आसान भाषा में कहें तो AFSPA सशस्त्र बलों को "अशांत क्षेत्रों" में सार्वजनिक व्यवस्था बनाए रखने की शक्ति देता है. इसके लागू होने के बाद सशस्त्र बलों के पास उस क्षेत्र में पांच या अधिक व्यक्तियों के एकत्रित होने पर रोक लगाने का अधिकार है. अगर उन्हें लगता है कि कोई व्यक्ति कानून का उल्लंघन कर रहा है तो उचित चेतावनी देने के बाद बल प्रयोग कर सकते हैं या फायर भी कर सकते हैं.
अशांत क्षेत्र वो है जिसे AFSPA कानून की धारा 3 के तहत अधिसूचना जारी कर घोषित किया जाता है. विभिन्न धार्मिक, नस्लीय, भाषा, क्षेत्रीय समूहों, जातियों, समुदायों के बीच मतभेद या विवादों के चलते राज्य सरकार या केंद्र सरकार किसी क्षेत्र को अशांत घोषित करती है.
गृह मंत्रालय आमतौर पर AFSPA को जहां आवश्यक लगता है, लागू करता है, लेकिन ऐसे अपवाद हैं जहां केंद्र ने अपनी शक्ति को छोड़कर राज्य सरकारों को निर्णय लेने दिया है.
1958 में AFSPA को एक अध्यादेश के रूप लाया गया था और तीन महीने के भीतर ही इसे संसद में पास करवाकर कानूनी जामा पहना दिया गया था. पूर्वोत्तर राज्यों में अलगाववाद, हिंसा और विदेशी आक्रमणों से रक्षा के लिए असम और मणिपुर में 1958 में AFSPA लागू किया गया था.
1972 में कुछ संशोधनों के बाद AFSPA को असम, त्रिपुरा, मेघालय, मणिपुर, मिजोरम, अरुणाचल प्रदेश और नगालैंड सहित पूरे पूर्वोत्तर भारत में लागू किया गया.
पंजाब में बढ़ते हिंसक अलगाववादी आंदोलन से निपटने के लिये 1983 में केंद्र सरकार ने अफ्स्पा (पंजाब एंड चंडीगढ़) अध्यादेश लाया. यह अध्यादेश 6 अक्टूबर, 1983 को कानून बन गया. लगभग 14 वर्षो तक लागू रहने के बाद 1997 में AFSPA को वापस लिया गया.
जम्मू-कश्मीर में हिंसा और अलगाववाद का सामना करने के लिये सशस्त्र बलों को विशेष अधिकार देने के लिए AFSPA को 5 जुलाई, 1990 को पूरे राज्य में लागू कर दिया गया.
AFSPA को 2018 में मेघालय से वापस ले लिया गया था जबकि केंद्रीय गृह मंत्रालय ने जून, 2021 में नागालैंड में AFSPA को और छह महीने के लिए बढ़ा दिया था और यह 31 दिसंबर तक लागू रहेगा.
AFSPA की धारा 4 से सेना के अधिकारियों को "कोई भी कार्रवाई करने" (जिसमें जान लेना भी शामिल) का अधिकार दिया है. सेना की शक्तियों को धारा 6 द्वारा और बढ़ाया गया है जिसके अनुसार "कोई अभियोजन, मुकदमा या कोई अन्य कानूनी कार्यवाही नहीं की जा सकती है.”
हालांकि AFSPA की आड़ में कतिथ अवैध हत्याओं पर 2016 में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि धारा 6 के तहत सेना को "खुली छूट" नहीं है. जस्टिस मदन लोकुर और जस्टिस यूयू ललित की बेंच ने Extra Judicial Execution Victim Families Association v Union of India वाद में फैसला दिया कि यदि कोई मौत अनुचित है तो अपराध करने वाले के लिए कोई ब्लैंकेट इम्युनिटी उपलब्ध नहीं है. बेंच ने कहा,
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