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असम (Assam) में 10 फरवरी को एक हिंदुत्व संगठन- कुटुम्ब सुरक्षा परिषद ने मिशनरी स्कूलों को 15 दिनों के अंदर यीशु और मैरी की तस्वीरों और मूर्तियों सहित ईसाई (Christians) 'प्रतीकों' को हटाने की धमकी दी थी.
हिंदुत्व संगठनों का दावा हैं कि इन संस्थानों का उपयोग "धार्मिक उद्देश्यों" के लिए किया जा रहा है- इसी बीच सोमवार, 26 फरवरी को असम विधानसभा में ध्वनि मत से पारित एक कानून ने ईसाई समुदाय में "तनाव" की स्थिति पैदा कर दी.
असम के नए बिल का नाम है - असम हीलिंग (प्रिवेंशन ऑफ एविल) प्रैक्टिसेस बिल, 2024. आसान भाषा में बताएं तो ये बिल जादू-टोना और झाड़-फूंक से इलाज करने की परंपरा के खिलाफ है.
ये बिल "निर्दोष लोगों का शोषण करने के लिए दुर्भावनापूर्ण इरादे से इस्तेमाल की जाने वाली गैर-वैज्ञानिक जादुई उपचार प्रथाओं" को अपराध घोषित करता है. विधेयक में कहा गया है कि इसका उद्देश्य एक सुरक्षित, विज्ञान-आधारित वातावरण को बढ़ावा देना है और हानिकारक प्रथाओं से लोगों के स्वास्थ्य की रक्षा करना है.
इस बिल के किन प्रावधानों को ईसाई समुदाय गलत मान रहा है? इस बिल को लेकर क्या आपत्तियां हैं, इसमें और क्या कहा गया है? चलिए आपको बताते हैं.
ये बिल "बुरी प्रथाओं" के खिलाफ है. "कोई भी व्यक्ति अगर जादू टोने से किसी के इलाज करने का काम करता हो, जिसके पीछे खतरनाक उद्देश्य हो और जिससे आम लोगों का शोषण हो"- ऐसे कामों को इस बिल में "बुरी प्रथा" के रूप में परिभाषित किया गया है.
यह कुछ बीमारियों और स्वास्थ्य संबंधित परेशानियों के इलाज के लिए उपचार पद्धतियों पर प्रतिबंध लगाता है, साथ ही किसी भी "धार्मिक प्रथाओं के भ्रामक विज्ञापन" को भी रोकता है.
21 फरवरी को सदन में पेश किया गया यह विधेयक 26 फरवरी को असम विधानसभा में चर्चा के बीच पारित हो गया. किसी भी व्यक्ति द्वारा "जादुई उपचार" को कॉग्निजेबल और गैर-जमानती अपराध बनाते हुए, विधेयक में कहा गया है:
पहली बार अपराध करने पर, दोषी को एक साल की कैद की सजा होगी, जिसे तीन साल तक बढ़ाया जा सकता है या 50,000 रुपये का जुर्माना या दोनों हो सकते हैं.
अगर वही बाद में दोषी भी पाया गया तो उसको जेल की सजा का सामना करना पड़ेगा जिसे पांच साल तक बढ़ाया जा सकता है या 1 लाख रुपये का जुर्माना या दोनों हो सकते हैं.
इसमें कहा गया है कि एक पुलिस अधिकारी, जो सब-इंस्पेक्टर के पद से नीचे का न हो, को ऐसे मामलों के लिए निरीक्षण करने की शक्ति है, अगर उसके पास इस बात का कारण हो कि इस अधिनियम के तहत कोई अपराध किया गया है या अपराध होने की संभावना है.
असम क्रिश्चियन फोरम (एसीएफ) के अध्यक्ष और गुवाहाटी आर्चडायसीस के आर्चबिशप जॉन मूलचेरा ने द क्विंट को बताया कि यह कानून उपचार प्रथाओं और तरीकों के बारे में, बीमारी से निपटने के लिए "विश्वास और प्रार्थना" की भूमिका को लेकर "गलत धारणाओं" पर आधारित है, साथ ही यह धार्मिक "विविधता" का सम्मान करने में विफल है.
विधेयक के बारे में बात करते हुए, असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने कहा था कि, "हम असम में evangelism (इंजीलवाद) पर अंकुश लगाना चाहते हैं और इस संबंध में हीलिंग पर प्रतिबंध एक मील का पत्थर है."
उन्होंने कहा था कि जादुई उपचार "आदिवासी लोगों के धर्म परिवर्तन के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला एक खतरनाक चीज है."
बता दें कि, लोगों को ईसाई बनने के लिए प्रेरित करने की गतिविधि को इंजीलवाद कहते हैं, इसमें अक्सर यात्रा करके दूसरे धर्म के लोगों को ईसाई धर्म के बारे में बताया जाता है.
सीएम ने आगे कहा, "हम इस विधेयक को लागू करने जा रहे हैं क्योंकि हमारा मानना है कि धार्मिक संतुलन के लिए यथास्थिति बनाना जरूरी है. मुसलमानों को मुस्लिम ही रहने दें, ईसाइयों को ईसाई ही रहने दें, हिंदुओं को हिंदू ही रहने दें."
एक बयान में, असम क्रिश्चियन फोरम ने कहा कि उनकी टिप्पणियां "भ्रामक और अनावश्यक दोनों" थीं.
असम क्रिश्चियन फोरम के प्रवक्ता एलन ब्रूक्स ने द क्विंट को बताया कि संविधान का अनुच्छेद 25 लोगों को धर्म का पालन करने के अधिकार की गारंटी देता है. उन्होंने कहा, इस तरह के आरोप और ईसाई प्रथाओं को गलत तरीके से प्रचारित करना "इस संवैधानिक सुरक्षा को कमजोर करता है."
ब्रूक्स ने कहा कि ऐसे बाबा हैं जो लोगों को बीमारियों से 'ठीक' करने का वादा करके लुभाते हैं. "लेकिन सरकार उन पर नकेल नहीं कसती. सरकार की नजर अचानक हमारे काम-काज पर क्यों पड़ गई है?"
इस बीच, असम आदिवासी ईसाई समन्वय समिति (ATCC) ने असम सरकार से विधेयक पर पुनर्विचार करने का आह्वान किया है.
असम क्रिश्चियन फोरम ने यह भी सवाल किया कि ईसाई मिशनरियों को कथित तौर पर धमकियां देने पर "असामाजिक तत्वों" के खिलाफ कोई कार्रवाई क्यों नहीं की गई?
24 फरवरी को संमिलिता संतान समाज ने एक पोस्टर अभियान के माध्यम से अपने परिसरों से ईसाई प्रतीकों और चर्चों को हटाने और "धार्मिक उद्देश्यों के लिए शैक्षणिक संस्थानों" के उपयोग को रोकने की बात की थी.
द हिंदू के मुताबिक, ये पोस्टर गुवाहाटी, बारपेटा, जोरहाट और शिवसागर शहरों में मिशनरी द्वारा संचालित शैक्षणिक संस्थानों की दीवारों पर चिपकाए गए थे. असमिया भाषा में लिखे पोस्टर में लिखा है, "स्कूल को एक धार्मिक संस्थान के रूप में इस्तेमाल करना बंद करने की यह अंतिम चेतावनी है...भारत विरोधी और असंवैधानिक गतिविधियां बंद करें, वरना..."
ब्रूक्स का दावा है कि सरकार इस तरह के कृत्यों के खिलाफ ईसाइयों को सुरक्षा देने में विफल रही है. उन्होंने कहा, "असमाजिक तत्व जनता में जहर उगल रहे हैं. सरकार ऐसे तत्वों को खुला क्यों छोड़ रही है? हमारे संस्थानों ने हमेशा सभी धर्मों और संस्कृतियों के लोगों को जगह दी है."
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