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World Bank के बाद IMF अनुमान में कम ग्रोथ की रफ्तार!क्यों कुंद है इकनॉमी की धार?

IMF की अगली वर्ल्ड इकनॉमिक आउटलुक रिपोर्ट में भारत की GDP ग्रोथ क्यों कम आंकी जाएगी जानें इसके 5 बड़े कारण

राजकुमार खैमरिया
कुंजी
Updated:
<div class="paragraphs"><p>GDP Data</p></div>
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GDP Data

(Photo: iStock / Altered by Arnica Kala / The Quint)

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अभी पिछले बुधवार को ही खबर आई थी कि वर्ल्ड बैंक (World Bank) ने भारत सहित सभी पूरे दक्षिण एशियाई इलाके का जीडीपी ग्रोथ अनुमान (GDP Growth Forecast) को घटा दिया है और अब संभावना जताई जा रही है कि अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) भी 19 अप्रैल को जारी होने वाली अपनी अगली वर्ल्ड इकनॉमिक आउटलुक रिपोर्ट में, वित्त वर्ष 2022-23 के लिए भारत की जीडीपी के अनुमान को मौजूदा 9 प्रतिशत से घटाकर 8-8.3 प्रतिशत कर सकता है.

इंटरनेशनल मॉनिटरी फंड (आईएमएफ) ने पिछले जनवरी माह में 2021-22 वित्त वर्ष के लिए भारत की जीडीपी ग्रोथ दर के अनुमान को घटाकर नौ फीसदी कर दिया था. IMF और वर्ल्ड बैंक के अलावा भी कई दूसरी एजेंसियां भारत के ग्रोथ रेट के अनुमान में कमी कर चुकी हैं. भारत की प्रगति के बारे में ऐसे अनुमान क्यों आ रहे हैं, इसके कुछ कारणों पर हम गौर करते हैं.

रूस यूक्रेन युद्ध

बिजनेस स्टैंडर्ड के एक आर्टिकल के अनुसार में यूक्रेन संकट के कारण सप्लाई के मोर्चे पर कई दिक्कतें आई हैं. सप्लाई प्रभावित होने से महंगाई लगातार बढ़ रही है. इस कारण भारत सहित कई दक्षिण एशियाई देशों की आर्थिक ग्रोथ पर कुछ नकारात्मक असर पड़ सकता है.

रूस के खिलाफ युद्ध और उसके बाद के प्रतिबंधों ने दुनिया भर में आपूर्ति श्रृंखलाओं को बाधित किया है और कमोडिटी की कीमतों में वृद्धि हुई है.

इससे पड़ने वालों प्रभावों के दायरे में भारत भी आ रहा है. शायद इस कारण को देखते हुए अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) ने भारत की जीडीपी के अनुमान को घटाया हो. यूरोप में युद्ध शुरू होने के बाद से यह IMF की पहली WEO रिपोर्ट होगी, इसलिए संभावना है कि इस युद्ध से पड़ने वाले प्रभावों पर रिपोर्ट का मुख्य फोकस होगा.

कोराेना महामारी

भारत में कोरोना महामारी के प्रभावों से श्रम बाजार संभल रहा है, पर दिक्कतें अभी भी हैं. मुद्रास्फीति के दबाव से घरेलू खपत बाधित हो रही है. इसके बाद कोरोना वायरस का नया वेरिएंट ओमीक्रोन आ गया. उसकी वजह से पूरे विश्व में आर्थिक गतिविधियों पर असर पड़ा है. इससे वे देश सबसे ज्यादा प्रभावित रहे हैं, जिनसे भारत का आर्थिक लेन देन होता है.

उन बड़े देशों के विकास अनुमानों में भी इस रिपोर्ट में कटौती की जा सकती है. चीन के मामले में यह कटौती विशेष रूप से हो सकती है, क्योंकि वहां शंघाई सहित प्रमुख शहरों में कोविड मामलों में वृद्धि के कारण लॉकडाउन लगा हुआ है.
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महंगाई

अभी कुछ समय पहले ही विश्व बैंक के आंकड़ों में बताया गया था कि विगत मार्च महीने में खुदरा महंगाई रेट 6.95 प्रतिशत के स्तर पर रही. भारतीय रिजर्व बैंक के लक्ष्य के अनुसार इस महंगाई को 6 प्रतिशत की सीमा के अंदर ही रखा जाना चाहिए. पर रिजर्व बैंक द्वारा तय इस सीमा से महंगाई दर के ऊपर रहने का यह लगातार तीसरा माह था.

बढ़ती महंगाई दर हमारी जीडीपी ग्रोथ पर असर डाल सकती है, ऐसा भी संस्थाओं का अनुमान रहा होगा. अभी कुछ समय पहले ही विश्व बैंक के दक्षिण एशिया के उपाध्यक्ष हार्टविग शेफर ने एक बयान में कहा था कि- रूस यूक्रेन में युद्ध के कारण तेल और खाद्य पदार्थों में आने वाली महंगाई का लोगों की वास्तविक आय पर बेहद नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा.

दूसरी एजेंसियों की रिपोर्ट का प्रभाव

भारत की ग्रोथ रेट को लेकर दूसरी एजेंसियों की रिपोर्टें भी चिंता देने वाली हैं. विश्व बैंक की रिपोर्ट की तो हम बात कर ही चुके हैं. विगत फरवरी माह में ही राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) द्वारा राष्ट्रीय आय के दूसरे अग्रिम अनुमान सामने आए थे, जो काफी संतोषजनक नहीं थे. इनमें भारत की जीडीपी के चालू वित्त वर्ष में जनवरी में जारी किए अनुमान 9.2 प्रतिशत से काफी कम 8.9 प्रतिशत की दर से बढ़ोतरी बताई गई थी. बीते दिनों मौद्रिक समीक्षा बैठक में आरबीआई ने भी जीडीपी ग्रोथ अनुमान को 7.2 प्रतिशत ही रखा था.

इससे पहले आरबीआई ने इसके 7.8 प्रतिशत रहने का अनुमान जताया था. फिच एजेंसी ने भारत की ग्रोथ रेट 8.5 फीसदी रहने का अनुमान जताया है. मॉर्गन स्टेनली ने भारत के लिए ग्रोथ अनुमान 7.9 फीसदी कर दिया है. पहले उनकी ओर से 8.4 फीसदी का अनुमान रखा था जिसे घटाया गया. इसी तरह सिटीग्रुप ने भी 2022-23 के लिए भारत की जीडीपी के ग्रोथ अनुमान में कटौती की है.

पिछले महीनों की कम जीडीपी दर

आईएमएफ के अनुमान घटने का एक कारण अक्टूबर-दिसंबर तिमाही के लिए सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर 5.4 फीसदी ही रहना भी हो सकता है. आठ बेसिक इंफ्रास्ट्रक्चर सेक्टर में वृद्धि भी जनवरी में उससे पिछले महीने के 4.1% से घटकर 3.7% रह गई थी.

इंडस्ट्रियल प्रोडक्शन के इंडेक्स में आठ प्रमुख इंडस्ट्री की भागीदारी 40.27% है. चौथी तिमाही की वृद्धि दर को 4.8 प्रतिशत मानकर पहले इस पूरे वित्त वर्ष के लिए 8.9 प्रतिशत जीडीपी का अनुमान लगाया गया था. पर आईएमएफ का अनुमान तो घटकर 8-8.3 प्रतिशत पर आ सकता है.

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Published: 17 Apr 2022,09:27 AM IST

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