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कनाडा में निर्वासन के डर में जी रहे 700 भारतीय छात्रों का दर्द

पंजाब के एनआरआई मामलों के मंत्री कुलदीप सिंह धालीवाल ने विदेश मंत्री एस जयशंकर से एक पत्र लिखकर सहायता मांगी हैं,

प्रणय दत्ता रॉय
कुंजी
Published:
<div class="paragraphs"><p>ठगे हुआ और निर्वासन के डर में जी रहे कनाडा में 700 भारतीय छात्रों की दर्द </p></div>
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ठगे हुआ और निर्वासन के डर में जी रहे कनाडा में 700 भारतीय छात्रों की दर्द

फोटो (क्विंट हिंदी)

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कनाडा (Canada) में मौजूद 700 भारतीय छात्रों को डिपोर्ट का डर सता रहा है. इन छात्रों में से अधिकांश पंजाब से हैं जो छात्र वीजा पर कनाडा गए थे, अब अधिकारियों द्वारा उनके कॉलेज प्रवेश प्रस्तावों को फर्जी पाए जाने के बाद उनको डिपोर्ट होने का डर सता रहा हैं. सैकड़ों भारतीय छात्र 29 मई से डिपोर्टेशन के विरोध में कनाडा सीमा सेवा एजेंसी (CBSA) मुख्यालय के बाहर इक्ट्ठा हुए हैं और अपना विरोध जताते हुए "अनिश्चितकालीन धरने" की शुरुआत की है. छात्रों का तर्क है कि जिस देश में उन्होंने अपनी पढ़ाई पूरी की, कई वर्षों तक काम किया और कानूनी रूप से रहे, उस देश से निष्कासित किया जाना अन्याय होगा.

फर्जी प्रवेश पत्र मामला क्या है?

कई छात्र जो विदेश में पढ़ना चाहते हैं, वे एक एजेंसी से जुड़ते हैं जो उन्हें छात्र वीजा और विश्वविद्यालयों के संबंध में विकल्प चुनने में मदद करने के लिए शैक्षणिक दस्तावेज, आईईएलटीएस प्रमाणपत्र और वित्तीय रिकॉर्ड प्रदान करती है. ये एजेंसियां ​​छात्रों की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए शैक्षिक संस्थानों और कोर्स के लिए छात्रों की प्राथमिकताओं का विवरण देते हुए एक व्यापक रिपोर्ट संकलित करती हैं.

यह देखते हुए कि अधिकांश छात्र सरकारी विश्वविद्यालयों को पसंद करते हैं और कुछ ही प्रतिष्ठित निजी संस्थानों को चुनते हैं, वे छात्रों को विश्वविद्यालयों और कोर्स के लिए रिकमन्डेशन भी देते हैं.

सलाहकार छात्रों की ओर से आवेदन प्रक्रिया को संभालते हैं और उनकी प्राथमिकता के मुताबिक आवेदन जमा करते हैं.

एक बार जब विश्वविद्यालय से एक प्रस्ताव पत्र मिल जाता है (जो इस मामले में सही नहीं था), तो छात्र को फीस का भुगतान करना होता हैं, जो की एजेंट के जरिए कॉलेज को ट्रांसफर की जाती है. बदले में, छात्र को कॉलेज से एक्सपटेंस लेटर मिलता है और फीस जमा होने की रसीद (इस मामले में यह भी फर्जी थी) प्राप्त होता है.

द इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि अधिकांश छात्र जालंधर स्थित एजेंट बृजेश मिश्रा द्वारा प्रवेश पत्र दिए जाने के बाद कनाडा आए थे. एजुकेशन माइग्रेंट सर्विस नाम की फर्म को चलाने वाले मिश्रा फिलहाल लापता हैं और एक पुलिस केस का सामना कर रहे हैं.

मिश्रा छात्रों से डॉक्यूमेंट प्रोसेस के नाम पर और ऑफर लेटर के नाम पर या किसी ऐसे कारण जिसकी वजह से छात्रों को कॉलेज चेंज करना पड़ता था उनसे लाखो रुपये लिया करता था.

रिपोर्ट में आगे एक प्रभावित छात्र का बयान है, जिसने कहा-

जब मैं 2018 में कनाडा पहुंचा, तो मेरे एजेंट, जिसने मुझसे लगभग 16 लाख रुपये लिए थे, मुझे फोन किया और मुझे दूसरे कॉलेज में दाखिला लेने के लिए कहा, क्योंकि जिस कॉलिज के लिए मुझे प्रवेश पत्र मिला था उसकी सभी सीटें भरी हुई थीं, उन्होंने मेरे कुछ पैसे वापस कर दिए और मुझे दूसरे कॉलेज में दाखिला दिलाने में मदद की, जहां मैंने अपनी आगे की पढ़ाई की.

उन्होंने कहा,"तब तक मुझे कोई शक नहीं हुआ, जबतक CBSA से डिपोर्टेशन पत्र नहीं मिला, इसके बाद मुझे पता चला के मेरा वीजा जिसपर मेंने एडमिशन लिया है वे फर्ज है. "

यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि पत्र कनाडाई दूतावास के कर्मचारियों की जांच से बचने में कामयाब रहे. विशेषज्ञों के अनुसार, कनाडा दूतावास के कर्मियों को वीजा देने से पहले कॉलेज के प्रस्ताव पत्रों सहित इससे जुड़े सभी दस्तावेजों की अच्छी तरह से जांच करना आवश्यक होता हैं.

इसके अलावा, कनाडा में छात्रों को देश में आने के बाद कॉलेज बदलने की अनुमति है. नतीजतन, एजेंट छात्रों को कहते हैं कि एक कॉलेज में उनका एडमिशन रद्द कर दिया गया हैं या सुझाव देते हैं कि कोई दूसरा कॉलेज उनके लिए बेहतर हो सकता है. इस रूल की बदौलत एजेंट कोई कमी पेशी आने पर कॉलेज बदलवा देते हैं.

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दोनो तरफ के अधिकारी क्या कहते हैं?

पंजाब के एनआरआई मामलों के मंत्री कुलदीप सिंह धालीवाल ने विदेश मंत्री एस जयशंकर से एक पत्र लिखकर सहायता मांगी हैं, पत्र में उन्होंने कहा-

"ये (700) छात्र निर्दोष हैं और जालसाजों का शिकार हुए हैं, मैं बहुत आभारी रहूंगा अगर निजी तौर पर आप इस मामले को फिर से देखेंगे और मामले को कनाडा के उच्चायोग और कनाडा सरकार सहित संबंधित एजेंसियों के साथ उठाएंगे." ताकि इन छात्रों को डिपोर्ट होने से बचाया जा सके."

पीएम नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार के नौ साल पूरे होने पर एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान, जयशंकर ने इस घटना को संबोधित किया और कहा कि कनाडा में फर्जी प्रवेश के कारण डिपोर्टेशन का सामना कर रहे भारतीय छात्रों को किसी और के अपराध के लिए दंडित नहीं किया जाना चाहिए.

दौषियों को सजा मिलनी चाहिए अगर छात्रों ने कोई गलत काम नहीं किया है तो इसकी सजा उनको मिलना अनुचित होगा. नवीनतम रिपोर्ट के मुताबिक कनाडाई ऑथोरिटी इसको स्वीकार करती हैं और उनको इसका समाधान खोजना होगा मुझे लगता है कि कनाडा की व्यवस्था इस मामले में निष्पक्ष है... हम दबाव बनाना जारी रखेंगे.'

हाल ही में, इम्मीग्रेंट,रिफ्यूजी और सिटिजनशिप मंत्री सीन फ्रेजर ने कहा कनाडा में अंतरराष्ट्रीय छात्रों का महत्वपूर्ण योगदान है, इसको वे स्वीकार करते हैं और यह भी कहा कि प्रत्येक मामले का मूल्यांकन किया जाएगा, धोखाधड़ी के पीड़ितों की सहायता करने के लिए सरकार उनके साथ है.

अब आगे क्या होगा?

सर्वदलीय इम्माइग्रेंट कमेटी ने सर्वसम्मति से एजेंसी से प्रभावित छात्रों की अयोग्यता को माफी का अनुरोध करने के लिए मतदान किया.

समिति ने उन्हें मानवीय आधार पर स्थायी निवास के लिए एक वैकल्पिक रास्ते की पेशकश करने का भी प्रस्ताव दिया है. MP जेनी क्वान जो कि प्रस्तावों को पेश करने वाले NDP इम्माइग्रेंट क्रीटिक हैं उन्होने छात्रों की दुर्दशा के लिए अपनी चिंता व्यक्त की और उनकी वर्तमान स्थिति को "भयानक" बताया

कनाडाई सांसद जेनी क्वान ने कहा "उन्होंने पैसा खो दिया है और वे एक डरावनी स्थिति में फंस गए हैं और उनमें से कुछ के निर्वासन आदेश हैं। कुछ को CBSA ने मींटिग के लिए बुलाया है."

पंजाब की एक छात्रा, क्रमजीत कौर को शुरू में 29 मई तक कनाडा छोड़ने का आदेश मिला था, लेकिन उस आदेश को अस्थायी रूप से रोक दिया गया है.पंजाब के मोहाली के छात्र लवप्रीत सिंह को 13 जून तक देश छोड़ने को कहा गया है और वह अब निर्वासन ऑर्डर को चुनौती देने के लिए अदालत में अपना केस लड़ रही है.

बृजेश मिश्रा की एजेंसी का लाइसेंस रद्द कर दिया गया है, वहीं जालंधर पुलिस ने उनके और दो अन्य के खिलाफ मामला दर्ज किया है.

जांच करने वाले अधिकारी इन फर्जी पत्रों के आधार पर वीजा देने वाली कनाडाई दूतावास के अधिकारियों पर भी नजर बनाए हुए हैं. इसमें मामले में उनकी भूमिका की भी जाच हो रही है.

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