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चांद पर,चांद का दीदार करेगा चंद्रयान-2, जानिए मिशन से जुड़ी हर बात

दस साल में दूसरी बार भारत चांद पर मिशन भेज रहा है.

क्विंट हिंदी
कुंजी
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चंद्रयान-2 लॉन्च को तैयार
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चंद्रयान-2 लॉन्च को तैयार
(फोटो: ISRO)

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भारत के मिशन चंद्रयान-2 का काउंटडाउन शुरू हो चुका है. ‘चंद्रयान 2’ श्रीहरिकोटा से 22 जुलाई को दो बजकर 43 मिनट पर लॉन्च होगा. 15 जुलाई को तकनीकी गड़बड़ी आने के बाद चंद्रयान-2 की लॉन्चिंग रोकनी पड़ी थी, लेकिन अब सारी कमियों को दूर कर दिया गया है.

बताया जा रहा है कि लॉन्चिंग के बाद इसे चांद तक पहुंचने में 40 दिन से ज्यादा का वक्त लगने वाला है. इस मिशन से जुड़ी पूरी जानकारी आगे दी जा रही है.

चंद्रयान-2 क्यों हैं इतना अहम?

दस साल में दूसरी बार भारत चांद पर मिशन भेज रहा है. इससे पहले चंद्रयान-1 साल 2008 में भेजा गया था. इसरो का यह अब तक का सबसे जटिल मिशन है. चंद्रयान- 2 के जरिए चंद्रमा की सतह, मिट्टी की जानकारी, पानी की मात्रा, अन्य खनिजों और पर्यावरण की स्थिति से संबंधित तथ्य पता लगाने की कोशिश की जाएगी.

(फोटो: ISRO)

चंद्रयान-2: कैसे करेगा काम?

चंद्रयान को जीएसएलवी मार्क-III रॉकेट से लॉन्च किया जाएगा. जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल-मार्क lll (GSLV Mk-lll) इसरो का सबसे पावरफुल रॉकेट है. इस रॉकेट का वजन 640 टन और लंबाई 44 मीटर है. इसी रॉकेट में 3.8 टन का चंद्रयान स्पेसक्राफ्ट है. रॉकेट को ‘बाहुबली’ उपनाम दिया गया है.

यह रॉकेट तीन स्टेज में काम करता है. पहले में ईधन, दूसरे स्टेज में तरल ईंधन से काम लिया जाता है. वहीं तीसरे स्टेज में क्रायोजेनिक इंजन काम करता है.

चंद्रयान के साथ 13 पेलोड भी जाएंगे. इनमें तीन मॉड्यूल ऑर्बिटर भी शामिल हैं. इसके अलावा ‘विक्रम’ नाम का लैंडर और ‘प्रज्ञान’ रोवर भी चंद्रयान से अटैच हैं. साथ ही रिसर्च के लिए 8 पेलोड भी शामिल हैं.

  • इसरो पहली बार चंद्रयान के साथ लैंडर भेज रही है. इसका नाम मशहूर भारतीय वैज्ञानिक विक्रम साराभाई के ऊपर रखा गया है. लैंडर में तीन पेलोड शामिल हैं. यह पेलोड चंद्रमा पर इलेक्ट्रॉन का घनत्व, टेम्परेचर वेरिएशन, चांद का वातावरण और जमीन के नीचे की हलचलों के बारे में पता लगाएंगे.
चंद्रयान -2 ऑर्बिटर की एक झलक. इसमें चांद की सतह की मैपिंग और वातावरण के अध्ययन के लिए 8 वैज्ञानिक पेलोड लगे हैं.(फोटो: ISRO)

कितने दिन चांद पर रहेगा चंद्रयान-2

  • ‘विक्रम’ नाम के लैंडर के भीतर रोवर ‘प्रज्ञान’ रोवर मौजूद रहेगा. यह एक तरह का रोबोट है. यह चांद पर आसपास तकरीबन आधा किलोमीटर तक चल सकेगा.
इसरो के मुताबिक चंद्रयान-2 चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव क्षेत्र में उतरेगा. चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर स्थित मंजिनस सी और सिमपेलियस के बीच चंद्रयान लैंड करेगा. बता दें अभी तक ज्यादातर देशों के मिशन उत्तरी ध्रुव के आसपास ही लैंड होते रहे हैं.
  • लॉन्चिंग के बाद अगले 16 दिनों में चंद्रयान-2 पृथ्वी के चारों तरफ 5 बार कक्षा बदलेगा.
  • पृथ्वी के हिसाब से यह 14 दिन चंद्रमा पर मौजूद रहेगा. इसके जरिए चंद्रमा की मिट्टी और चट्टानों के बारे में पता लगाया जाएगा.
  • चांद की सतह पर उतरने के 4 दिन पहले रोवर 'विक्रम' उतरने वाली जगह का मुआयना करना शुरू करेगा.
विक्रम लैंडर के रैंप पर प्रज्ञान रोवर. (फोटो: ISRO)
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लैंडिंग से पहले के 15 मिनट

श्री हरिकोटा से लॉन्चिंग के बाद मिशन को चांद तक पहुंचने में करीब 40 दिन से ज्यादा का वक्त लगने वाला है. इसरो के चीफ के. सिवन ने कहा है कि लैंडिंग के अंतिम 15 मिनट बेहद चुनौतीपूर्ण रहेंगे, क्योंकि उस दौरान हम ऐसा कुछ करेंगे जिसे हमने अभी तक कभी किया नहीं है.

इसरो के चीफ सिवन ने कहा:

‘चंद्रमा की सतह से 30 किलोमीटर दूर चंद्रयान-2 की लैंडिंग के लिए इसकी स्पीड कम की जाएगी. विक्रम को चांद की सतह पर उतारने का काम काफी मुश्किल होगा. इस दौरान 15 मिनट काफी चुनौतीपूर्ण रहने वाले होंगे. हम पहली बार सॉफ्ट लैंडिंग की कोशिश करेंगे.’ 

चंद्रयान 2 पर कितना हुआ खर्च?

पृथ्वी और चांद की दूसरी करीब 384,400 किलोमीटर है. चंद्रयान-2 कुल मिलाकर तकरीबन 3800 किलोग्राम भारी है. इस पूरी परियोजना में 978 करोड़ का खर्च आया है. चंद्रयान 2 के लिए सेटेलाइट पर 603 करोड़ और GSLV MK III के लिए 375 करोड़ रुपये खर्च किए गए हैं. चंद्रयान 2 पूरी तरह स्वदेशी अभियान है.

(फोटो: ISRO)

क्यों रोकनी पड़ी चंद्रयान-2 की लॉन्चिंग?

चंद्रयान-2 को 15 जुलाई तड़के 2 बजकर 51 मिनट पर लॉन्च होना था, लेकिन लॉन्चिंग से एक घंटे पहले ही इसे रोक लिया गया. इसके लॉन्च के 56 मिनट पहले व्हीकल में तकनीकी खामी पाई गई थी.

दरअसल, क्रॉयोजेनिक इंजन में लिक्विड हाइड्रोजन भरा गया था. इसकी वजह से क्रायोजेनिक इंजन और चंद्रयान-2 को जोड़ने वाले लॉन्च व्हीकल में प्रेशर लीकेज हो गया. इसके बाद एहतियात के तौर पर इसके लॉन्च को रद्द करने का फैसला लिया गया था.

(फोटो: ISRO)

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Published: 22 Jul 2019,11:43 AM IST

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