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दक्षिण अफ्रीका (South Africa) से भारत लाए गए 6 साल के चीते उदय की मौत 23 अप्रैल को हो गई, इससे मध्यप्रदेश में चीतों को लेकर जो घटनाएं हो रही थीं उसने एक दुर्भाग्यपूर्ण मोड़ ले लिया है.
मध्य प्रदेश के मुख्य वन संरक्षक जेएस चौहान ने मीडिया से बात करते हुए कहा है कि "वन अधिकारियों ने रविवार सुबह करीब 9 बजे उदय को सुस्तावस्था में पाया, जिसके बाद उसे इलाज के लिए आइसोलेशन वार्ड में ले जाया गया, जहां उसी दिन शाम करीब 4:30 बजे उसने दम तोड़ दिया."
प्रोजेक्ट चीता का उद्देश्य 1952 में विलुप्त घोषित किए जाने के बाद भारत में कैट प्रजातियों की इस प्रजाति को फिर से लाना है.
लेकिन कूनो नेशनल पार्क में दो चीतों की मौत क्यों हुई? भारत के प्रोजेक्ट चीता में क्या कमी है? द क्विंट ने इसके बारे में विस्तार बता रहा है.
27 मार्च को ही पांच साल के साशा नाम के चीते ने दम तोड़ा था. साशा नामीबिया से भारत लाए गए आठ चीतों में से एक थी. जनवरी में पता चला था कि साशा किडनी इंफेक्शन की समस्या से जूझ रही है, आखिरकार किडनी फेल्यिर की वजह से उसकी मौत हो गई.
उदय और साशा, इन दोनों की मौत ने न केवल इस प्रोजेक्ट पर सवाल उठाए हैं, बल्कि जो इस प्रोजेक्ट के प्रभारी हैं उनको भी जांच के कटघरे में खड़ा कर दिया है.
रंजीत सिंह ने कहा कि "पहला चीता किडनी की बीमारी से मर गया और दूसरे चीते की मौत के कारणों का अभी पता नहीं चल पाया है. लेकिन मैं पूरे विश्वास से यह कह सकता हूं कि प्रोजेक्ट चीता को सफल माने जाने से पहले, अभी भी एक लंबा रास्ता तय करना है."
हालांकि, वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया के डीन और वैज्ञानिक डॉ. यादवेंद्रदेव झाला ने द क्विंट को बताया कि उन्होंने चीतों के भारत आने से पहले अनुमान जताया था कि जिन चीतों का भारत में पुनर्स्थापन हो रहा है उनमें से पहले साल जीवित रहने की दर केवल 50% रहेगी.
प्रोसीडिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज में प्रकाशित एक स्टडी के मुताबिक, वर्तमान में दुनिया में 7,100 से कम चीते (बिग कैट) बचे हैं, जिससे कि इन प्रजातियों को विश्व स्तर पर संकटग्रस्त प्रजातियों में डाल दिया गया है. चीता को ग्लोब कंजर्वेशन यूनियन (IUCN) की खतरे वाली प्रजातियों की लाल सूची द्वारा असुरक्षित प्रजाति के रूप में सूचीबद्ध किया गया है.
IUCN द्वारा दो उप-प्रजातियों (एशियाई चीता और उत्तर पश्चिमी अफ्रीकी चीता) को गंभीर रूप से संकटग्रस्त प्रजाति के तौर पर वर्गीकृत किया गया है.
एक समय में, भारत में भी चीते काफी सामान्य रूप से पाए जाते थे. ये उत्तर में जयपुर और लखनऊ से लेकर दक्षिण में मैसूर तक के क्षेत्रों में पाए जाते थे.
इस प्रोजेक्ट ने एक बार फिर इस बात की उम्मीद जगा दी है कि चीते एक बार फिर देश में घूमते-फिरते देखे जा सकेंगे. लेकिन वाइल्ड लाइफ एक्सपर्ट्स ने पर्याप्त जगह (क्षेत्र) की कमी को ध्यान में रखते हुए प्रोजेक्ट के कार्यान्वयन विशेष रूप से कूनो नेशनल पार्क में 20 चीतों के झुंड के बारे में चिंता व्यक्त करते हुए सवाल उठाए हैं.
बेटिना वाचर जोकि बर्लिन में लीबनिज इंस्टीट्यूट ऑफ जू एंड वाइल्ड लाइफ रिसर्च की प्रमुख इवोल्यूशनरी इकोलॉजिस्ट हैं, उन्होंने द क्विंट को बताया कि कूनो नेशनल पार्क के आकार के आधार पर 2-3 नर चीते कुछ मादाओं को जगह देते हुए अपना क्षेत्र बना सकते हैं. जबकि बचे हुए चीते क्षेत्र के लिए लड़ेंगे. उन्होंने कहा कि चीतों का राष्ट्रीय उद्यान में और उसके आसपास बसे पशुपालकों के साथ भी संघर्ष (टकराव) हो सकता है.
वाचर ने करीब 20 सालों तक अफ्रीकी चीतों का अध्ययन किया है. उन्होंने कहा कि-
उन्होंने आगे कहा कि "जब तक जगह है, तब तक इस बात की संभावना है कि एक नर चीता अपनी टेरिटरी स्थापित करने की कोशिश करेगा और इस तरह, वह दूसरे से 20-23 किमी दूर बस जाएगा. इसलिए कूनो क्षेत्र में, यदि इसकी बाड़ नहीं लगाई गई है, तो बीच में 2-3 चीते कुछ मादाओं के साथ रह सकते हैं."
इस समय कूनो नेशनल पार्क में 18 चीते हैं, जिनमें से 8 चीतों को सितंबर 2022 में नामीबिया से लाया गया था, जबकि अन्य 12 को फरवरी 2023 में दक्षिण अफ्रीका से लाया गया था. कूनो में एक महीने के अंदर ही दोनों बैचों में से एक-एक चीते की मौत हो चुकी है.
प्रोजेक्ट साइंटिस्ट्स और केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय के एक्शन प्लान के अनुसार शिकार की बहुतायत होने से 21 चीतों को अनुकूल जगह प्रदान करने में कूनो को मदद मिलेगी.
हालांकि, रंजीतसिंह, जोकि चीतों के अंतर-महाद्वीपीय स्थानान्तरण की निगरानी के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित तीन सदस्यीय विशेषज्ञ पैनल के सदस्य भी हैं, उन्होंने कहा कि कूनो में सभी चीतों को रखने के लिए पर्याप्त जगह नहीं है और यह इस प्रोजेक्ट में एक गंभीर चिंता का विषय है.
वाचर और उनके सहयोगियों ने भी यह ऑब्जर्व किया है कि चीतों की दो टेरिटरीज के बीच की दूरी लगभग 20-23 किमी है.
वाचर ने क्विंट को बताया कि "यह कैल्कुलेशन चीतों की स्थानिक (spatial) प्रणाली पर विचार किए बिना की गई थी. नामीबिया में नर चीते फार्मलैंड में रहते है जिसका मतलब है कि उनके आस-पास पशुधन रहते हैं और वहां रहने वाले शिकार 20-23 किमी की दूरी बनाए रखते हैं वहीं तंजानिया में एक बहुत ही अलग इको सिस्टम में चीते रहते हैं, उनके आस-पास कोई इंसान नहीं रहता और प्रवासी शिकार के साथ-साथ संरक्षित क्षेत्र भी हैं. हमने ऑब्जर्व किया है कि शिकार की उपलब्धता के बावजूद, चीतों की दो टेरिटरीज की बीच 20-23 किमी की दूरी है."
यह प्रोजेक्ट अब जांच के दायरे में है, क्योंकि कई एक्सपर्ट्स ने बताया कि कूनो नेशनल पार्क की चीता-रखने क्षमता को काफी हद तक कम करके आंका गया था. ऐसे में यह अपना फोकस फ्री-ओपन रीलोकेशन से इन्क्लोज्ड-कॅन्फाइन्ड और चीतों के कुछ-पॉकेट रीलोकशन में शिफ्ट कर सकता है.
बेंगलुरु के स्टैटिस्टिकल इकोलॉजिस्ट अर्जुन गोपालस्वामी ने इस बात पर प्रकाश डाला है कि चीता रीलोकेशन एक्शन प्लान ने पहली रिलीज साइट (कूनो नेशनल पार्क) चीता-रखने की क्षमता को काफी हद तक कम करके आंका है. इस साइट को शुरुआत में एशियाई शेरों के पुनर्स्थापन के लिए आइडेंटिफाई और तैयार किया गया था.
इस बीच, रंजीतसिंह ने यह कहा कि "कुछ चीतों को एक इन्क्लोज्ड एरिया (चीता कंजर्वेशन ब्रीडिंग एरिया) में रखा जाना चाहिए, जबकि बाकी चीतों को अन्य जंगली क्षेत्रों में स्थानांतरित करने की आवश्यकता है जो चीता पुनर्वास के लिए उपयुक्त हैं."
शुक्रवार, 21 अप्रैल को मध्य प्रदेश सरकार ने स्टेट फॉरेस्ट डिपार्टमेंट को मंदसौर और नीमच जिले में चंबल नदी घाटी में स्थित गांधीसागर वन्यजीव अभयारण्य को तैयार करने का निर्देश दिए हैं.
इससे पहले, चूंकि कूनो नेशनल पार्क के पास पर्याप्त जगह नहीं है इसलिए वन विभाग के अधिकारियों ने राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण को चीतों के लिए दूसरा घर तय करने के लिए पत्र लिखा था.
वाइल्डलाइफ एक्सपर्ट्स के पूर्वानुमानों को ध्यान में रखते हुए, चीतों को मुक्त जंगली क्षेत्रों (free-ranging forested areas) में स्थानांतरित करने का भारत का प्लान भी काम नहीं कर सकता है. मुक्त क्षेत्रों (फ्री-रेंज) के बजाय बाड़ (फेंसिंग) वाले क्षेत्रों में चीतों के संरक्षण की ओर देखना बेहतर हो सकता है.
विभिन्न कारणों से चीतों के प्राकृतिक फैलाव के अभाव में, बाड़े वाले जंगलों में पाली जाने वाली मेटा-आबादी के प्रबंधन का एक अहम कदम यह है कि उपयुक्त चीतों का वितरण अलग-अलग पॉकेट में हो जिससे उनके बीच आनुवंशिक व्यवहार्यता बनी रहे.
मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, विभिन्न स्टडीज से पता चला है कि मेटा-आबादी के उचित प्रबंधन और अन्य मुद्दों के समाधान से चीतों को एक इन्क्लोज्ड, बाड़ वाले पॉकेट में स्थापित करने और स्थानांतरित करने में मदद मिल सकती है.
इस पर टिप्पणी करते हुए, वाचर ने द क्विंट को बताया कि अगर पार्क को घेर (फेन्स्ड कर) दिया जाता और नर चीता को मौजूदा चीतों से 20-23 किमी दूर एक टेरिटरी की तलाश करने के लिए दूर जाने से रोका दिया गया था. तो ऐसे में कूनो के पास 20 चीतों को रखने का एकमात्र तरीका था.
इस प्रोजेक्ट को लेकर गोपालस्वामी ने यह भी आरोप लगाया कि प्रोजेक्ट को जल्दबाजी में लागू किया गया था, जिसकी वजह से बिग कैट्स की उचित रीलोकेशन में समस्याओं और आगे की कठिनाइयों का मार्ग प्रशस्त हुआ है.
उन्होंने कहा "नामीबिया से लाए गए बाड़े में रखे जाने वाले चीताओं को लेकर कहा जा रहा है कि वे जल्द ही भारत में स्वतंत्र रूप से विचरण करेंगे, जहां नामीबिया की तुलना में औसत मानव जनसंख्या घनत्व 150 गुना अधिक है. हमारा मानना है कि इस तरह की अटकलबाजी और अवैज्ञानिक दृष्टिकोण को अपनाने से इंसान और चीतों के बीच संघर्ष हो सकता है, जिससे यहां जिन चीतों का पुनर्स्थापन किया गया है उनकी मौत हो सकती है या दोनों (मौत या संघर्ष) घटना हो सकती है.
एक्सपर्ट्स की राय यह भी है कि भारत अब एक ऐसे दोराहे में खड़ा है जहां उसे चीतों को एक खुले जंगल (मूल निवासियों को चीतों के साथ सह-अस्तित्व के लिए मजबूर करना) में स्थानांतरित करने के अपने लक्ष्य या चीतों को बाड़े वाले जंगलों के पॉकेट में स्थानांतरित करने पर ध्यान देने के बीच चयन करना होगा.
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