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जस्टिस रंजन गोगोई का देश का अगला मुख्य न्यायाधीश बनना तय हो गया है. 2 अक्टूबर को वर्तमान चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा रिटायर हो रहे हैं. मौजूदा चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने उनके नाम की सिफारिश वाली चिट्ठी सरकार को भेज दी है.
पिछले दिनों सरकार ने चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा से उनके उत्तराधिकारी का नाम पूछा था. परंपराओं के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट के सबसे सीनियर जज को चीफ जस्टिस बनाया जाता है. और सीनियॉरिटी के हिसाब से जस्टिस गोगोई जीफ जस्टिस दीपक मिश्रा के बाद सबसे ऊपर हैं.
गोगोई सुप्रीम कोर्ट के उन चार जजों में शामिल रहे हैं, जिन्होंने जनवरी 2018 में अभूतपूर्व प्रेस कॉन्फ्रेंस की थी . इस प्रेस कॉन्फ्रेंस में सुप्रीम कोर्ट के कामकाज के तरीके और न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर सवाल उठाए गए थे. उस प्रेस कॉन्फ्रेंस में शामिल होने पर न सिर्फ चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, बल्कि केंद्र सरकार की नाराजगी कितनी गहरी थी, ये बात केंद्रीय कानून और आईटी मंत्री रविशंकर प्रसाद की प्रेस कॉन्फ्रेंस में खुलकर सामने आई थी. तब एक सवाल के जवाब में प्रसाद ने कहा था कि :“कोई वजह नहीं है कि सरकार की मंशा पर कोई संदेह किया जाए. वहां चीजों को लेकर एक परंपरा है और सीजेआई को अपने उत्तराधिकारी के नाम को आगे करने दीजिए,
उसके बाद सरकार उस पर चर्चा करेगी.” लेकिन वहां परंपरा क्या है? सीजेआई के प्रस्ताव की अहमियत क्या है? और उस पर सरकार क्या चर्चा करेगी?
भारत के संविधान में इस बात का ब्योरा नहीं है कि देश के चीफ जस्टिस की नियुक्ति कैसे होगी? आर्टिकिल 124 (1) कहता है कि भारत का एक सुप्रीम कोर्ट कोर्ट होगा, जिसमें चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया होगा. लेकिन ये आर्टिकिल चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया की योग्यता और उसकी नियुक्ति पर मौन है. संविधान में एकमात्र आर्टिकिल 126 ही है, जो सीजेआई की नियुक्ति पर कुछ कहता है, इसमें कार्यकारी सीजेआई की नियुक्ति के बारे में कहा गया है.
सीजेआई की नियुक्ति को लेकर कोई संवैधानिक प्रावधान न होने की वजह से ही हमें इसकी नियुक्ति में परंपराओं का सहारा लेना पड़ता है.
यहां पर सवाल उम्र का नहीं होता, ये निर्भर करता है कि कोई भी जज कब सुप्रीम कोर्ट में नियुक्त किया गया. जो जज जितने लंबे समय से सुप्रीम कोर्ट में है, वो उतना ही सीनियर होता है. इसको आप ऐसे समझ सकते हैं- मान लीजिए कि जब सीजेआई रिटायर हो रहे हों, तो कोई एक जज ऐसा है, जिसकी उम्र 63 साल है और वो 5 साल से सुप्रीम कोर्ट में काम रहा है. जबकि एक दूसरे जज की उम्र वैसे तो 62 साल है, लेकिन वो 6 साल से सुप्रीम कोर्ट में है. ऐसी स्थिति में वरिष्ठता के पैमाने पर 62 साल की उम्र वाला जज सीनियर होगा और उसी को देश का अगला सीजेआई होना चाहिए.
ऐसे में मामला तब पेचीदा हो जाता है, जब दो जजों की नियुक्ति सुप्रीम कोर्ट में एक दिन हुई होती है और ऐसा अक्सर ही होता है. चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया दीपक मिश्रा की सुप्रीम कोर्ट में नियुक्ति उसी दिन हुई थी, जिस दिन (10 अक्टूबर 2011) जस्टिस चेलमेश्वर नियुक्त किए गए थे. लेकिन उम्र में 4 महीने छोटे होने के बावजूद दीपक मिश्रा अगस्त 2017 को चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया बने.
ऐसी स्थिति में वरिष्ठता तय करने के लिए निम्नलिखित चीजों का इस्तेमाल किया जाता है :
सीजेआई की नियुक्ति के लिए ये परंपरा पुराने समय से चली आ रही है और जिसकी 1993 में सुप्रीम कोर्ट ने ‘सेकेंड जजेज केस’ में पुष्टि की थी. इसमें बहुमत की राय के साथ कहा गया था कि:
1950 में सुप्रीम कोर्ट की स्थापना के बाद से अब तक देश में 45 (मौजूदा सीजेआई दीपक मिश्रा को मिलाकर) चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया की नियुक्ति हो चुकी है और हर बार वरिष्ठता की परंपरा को ही अपनाया गया. लेकिन इसके दो अपवाद भी हैं. दोनों ही अपवाद इंदिरा गांधी के प्रधानमंत्री रहते हुए सामने आए.
25 अप्रैल, 1973 को जब चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया एसएम सीकरी रिटायर हो रहे थे, तो उस वक्त जस्टिस रे वरिष्ठता के लिहाज से जस्टिस जे एम शेलट, जस्टिस के एस हेगड़े और जस्टिस एएन ग्रोवर के बाद चौथे नंबर पर थे. लेकिन फिर भी उन्हें देश का चीफ जस्टिस नियुक्त किया गया.
दूसरी ओर, जस्टिस रे इस राय के साथ अल्पमत में थे कि संसद को संविधान में बदलाव का असीमित अधिकार है- ये स्टैंड सरकार के लिहाज से मुफीद था. रे के सीजेआई रहते हुए केशवानंद भारती केस को रिव्यू करने की कोशिश भी हुई, लेकिन वरिष्ठ वकील नानी पालखीवाला की दलीलों की वजह से ये कोशिश असफल रही.
जब 28 जनवरी, 1977 को चीफ जस्टिस रे रिटायर हुए, तो परंपरा के लिहाज से एचआर खन्ना सुप्रीम कोर्ट के सबसे सीनियर जज थे. लेकिन वे इंदिरा गांधी सरकार को पसंद नहीं थे. इसकी वजह थी एडीएम जबलपुर केस में उनका फैसला. अपने चार साथियों से असहमति जताते हुए जस्टिस खन्ना ने सरकार की इस दलील को मानने से इनकार कर दिया था कि इमरजेंसी के दौरान लोगों को जेलों में रखने को चुनौती नहीं दी जा सकती, भले ही ऐसा नियमों के खिलाफ और गलत मंशा से किया गया हो. इसी वजह से वरिष्ठता के मामले में उनके बाद के जस्टिस एमएच बेग को देश का अगला चीफ जस्टिस नियुक्त किया गया.
वरिष्ठता की परंपरा कहती है कि कौन देश का अगला सीजेआई होना चाहिए, लेकिन ये कैसे होगा इसके लिए सरकार और ज्यूडिशियरी के बीच एक तय प्रक्रिया है.
ये काम इस तरह चरणबद्ध तरीके से होता है:
पूरी प्रक्रिया में कानून मंत्री और प्रधानमंत्री की भागीदारी के बावजूद चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया की नियुक्ति में वास्तव में सरकार का कोई रोल नहीं होता.
जब सुप्रीम कोर्ट में जजों की नियुक्ति होती है, तो सरकार कॉलेजियम के फैसले को दोबारा विचार के लिए वापस भेज सकती है और अगर कॉलेजियम उन नामों को दोबारा सरकार के पास भेज देता है, तो सरकार फिर से उस पर विरोध नहीं कर सकती. इस प्रक्रिया का जिक्र विस्तार से MOP में किया गया है.
हालांकि, सीजेआई की नियुक्ति में ऐसी कोई भी प्रक्रिया नहीं है, जिससे ये जाहिर हो कि MOP के आगे ऐसी कोई परिकल्पना नहीं की जा सकती कि सरकार सीजेआई की सिफारिश पर कभी कोई असहमति जताएगी.
2. चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया के पद पर उसकी नियुक्ति होनी चाहिए, जो सुप्रीम कोर्ट में सबसे सीनियर हो और इस काम के लिए फिट हो. कानून, न्याय और कंपनी मामलों का केंद्रीय मंत्रालय इसके लिए सही समय पर रिटायर हो रहे चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया से नए सीजेआई के लिए प्रस्ताव मांगेगा.
2.1 अगर ऐसे वरिष्ठतम जज की फिटनेस को लेकर कोई संदेह हो, तो संविधान के आर्टिकिल 124 (2) के अनुरूप अगले चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया को लेकर दूसरे जजों से सलाह-मशविरा किया जाएगा.
2.2 चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया से सिफारिश आने के बाद केंद्रीय कानून, न्याय और कंपनी मामलों के मंत्री देश के प्रधानमंत्री के सामने इसे रखेंगे, जो कि इस बारे में राष्ट्रपति को सुझाव देंगे.
जब 1970 के दशक में इंदिरा गांधी और उनकी सरकार ने वरिष्ठता की परंपरा को नजरअंदाज किया, तब तक ऐसे मामलों में ज्यूडिशियरी की सर्वोच्चता स्थापित नहीं थी. लेकिन इसके बाद सेकेंड और थर्ड जजेज केस (1993 और 1998) और एनजेएसी केस (2015) की वजह से ज्यूडिशियरी के रोल स्पष्ट हो गए और सरकार उसका विरोध नहीं कर सकती.
इसके बाद एकमात्र व्यक्ति, जिसके पास अगले चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया की नियुक्ति का अधिकार है, वो रिटायर हो रहा सीजेआई ही है. हालांकि वो भी वरिष्ठता की परंपरा को मानने के लिए बाध्य है, सिर्फ इस स्थिति को छोड़कर, जब सुप्रीम कोर्ट का वरिष्ठतम जज कार्यभार संभालने के लिए फिट नहीं है.
हालांकि ये भी स्पष्ट नहीं है कि जिस फिटनेस की बात कही गई है, वो दरअसल किस संदर्भ में है. लेकिन NJAC केस में अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी और बेंच ने कहा था कि फिटनेस का मतलब सिर्फ शारीरिक और मानसिक फिटनेस से है. और अगर फिर से ऐसा कोई मामला सामने आता है, तो सिर्फ सीजेआई ये तय नहीं करेंगे कि एक जज फिट है या नहीं, बल्कि इसका फैसला सीजेआई की कॉलेजियम और उनके बाद के चार सबसे वरिष्ठ जज मिलकर करेंगे.
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