सुप्रीम कोर्ट ने आधार लिंक करने की डेडलाइन अनिश्चितकाल के लिए बढ़ा दी है, लेकिन इसके बावजूद ज्यादातर जगहों पर अभी भी आधार नंबर दिए बगैर काम नहीं हो रहा. कई कंपनियां लगातार आधार के लिए दबाव बना रही हैं.
एचडीएफसी में होम लोन के दौरान मुझे भी इसी दबाव का सामना करना पड़ा. होम लोन की प्रक्रिया के दौरान बार-बार आधार कार्ड दिए जाने पर जोर दिया गया. ये भी कहा गया कि आधार तो कानूनी तौर पर जरूरी है.
सुप्रीम कोर्ट ने साफ-साफ कहा है कि आधार पर उसका फैसला आने तक कहीं भी आधार लिंक कराने के लिए जोर-जबरदस्ती न की जाए. कोई भी काम आधार की वजह से रोका नहीं जा सकता. लेकिन इस पर अमल कहां-कहां हो रहा है? जहां भी आधार देने से मना किया जा रहा है, वहीं आपको पता चल जाता है कि इसकी जमीनी हकीकत क्या है. ज्यादातर जगह नियम पढ़ाए जाने लगते हैं कि ये तो कानूनन जरूरी है. जबकि ऐसा नहीं है.
क्या कंपनियों को पता नहीं है आधार पर कोर्ट का रुख?
मैंने जब एचडीएफसी के क्रेडिट मैनेजर से कहा कि आधार फिलहाल जरूरी नहीं है, फिर आप क्यों इसकी मांग कर रहे हैं? इस पर सबसे पहले मुझे कहा गया कि आधार तो जरूरी है ही. जब मैंने सुप्रीम कोर्ट के आदेश का हवाला दिया, तो बैंक का क्रेडिट मैनेजर ही चौंक गया. मुझसे सुप्रीम कोर्ट के आदेश की कॉपी लाने को कहा गया. जब मैंने कहा कि मेरे पास कॉपी है और आप एक सिंपल गूगल सर्च करके आरबीआई की गाइडलाइंस भी निकाल सकते हैं, तो मुझे ये तर्क दिया गया कि ये हमारे नियम हैं और एचडीएफसी लिमिटेड, जो होम लोन कंपनी है, वो आरबीआई नहीं, बल्कि नेशनल हाउसिंग बैंक (NHB) के तहत आता है.
मेरा सवाल ये है कि बाकी KYC दस्तावेजों के बाद भी आधार को ही जरूरी क्यों मान लिया गया है? ऐसी कौन सी जानकारी है जो सिर्फ आधार से ही वेरिफाई होती है?
ऐसा एक बार नहीं हुआ, जब मुझे आधार के लिए मजबूर किया गया हो. होम लोन की फाइल जिस-जिस डिपार्टमेंट में पहुंची, लगभग हर जगह ऐसा हुआ. पढ़े-लिखे बैंक कर्मचारियों को भी ठीक से पता नहीं था कि आधार पर सुप्रीम कोर्ट में क्या कहा गया है और आधार को KYC के लिए मांगे जाने की कोई कानूनी मान्यता नहीं है. वो बस अपने कुतर्कों पर अड़े थे कि आधार तो जरूरी है.
जब आखिर में लोन का चेक लेने की बारी आई, तब भी यही सवाल खड़ा हुआ. होम लोन के लिए मेल में साफ-साफ ये लिख हुआ था कि बिना आधार के चेक नहीं मिलेगा.
मुझे एक बार फिर से एचडीएफसी के ऑफिस जाकर आधार के लिए बहस करनी पड़ी. चेक तो मिला, लेकिन एक सवाल दिमाग में लगातार था कि क्या बाकी लोग भी आधार के लिए इस तरह से लड़ सकते हैं?
साफ है कि ज्यादातर लोगों को ये बात पता ही नहीं है कि आधार पर फैसला अभी टला है और सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने तक अगर आपको कोई आधार के लिए मजबूर करता है, तो ये सुप्रीम कोर्ट के निर्देश का उल्लंघन है.
आधार मांगने के कई तरीके
बैंक या होम लोन डिपार्टमेंट ऐसी अकेली जगह नहीं, जहां ये हाल हो. मोबाइल कनेक्शन से लेकर पेमेंट ऐप तक, किसी न किसी तरीके से कंपनियां आधार के लिए मजबूर करती हैं या आधार को KYC के लिए जरूरी बता कर पेश किया जाता है.
टेलीकॉम कंपनियां आज भी नये सिम के लिए आधार मांगती हैं. अगर आप न दें, तो कहा जाएगा कि आधार देने से आपका सिम 24 घंटे में एक्टिवेट हो जाएगा और उसके बिना कनेक्शन मिलने में तीन दिन लगेंगे.
सुप्रीम कोर्ट के स्पष्ट आदेश का असर इन कंपनियों पर सिर्फ इतना हुआ है कि हर कॉल पर सिम से आधार लिंक करने की धमकी थोड़ी रुकी है. लेकिन आधार लिंक करने की अनिवार्यता फिलहाल नहीं है, क्या ये बात लोगों तक पहुंचाने की जिम्मेदारी इन कंपनियों की नहीं है?
कोई भी कंपनी आधार डीलिंक कराने की सुविधा नहीं देती
आधार जिस दिन से लागू हुआ है, उसी दिन से प्राइवेसी को लेकर एक बहस में फंसा है. ऐसे में अगर आप पहले ही आधार किसी भी सेवा से लिंक कराते हैं और बाद में आपके मन में कोई भी सवाल है और आप इसे डीलिंक कराना चाहते हैं, तो कोई भी कंपनी आपको ये सुविधा नहीं देती.
सिर्फ इंडिया पोस्ट ने अभी तक आधिकारिक तौर पर आधार को लिंक करने के साथ-साथ डीलिंक करने का भी ऑप्शन दिया है.
ज्यादातर बैंक खुद आधार को लेकर दबाव में हैं. सरकारी बैंक पहले आधार रजिस्ट्रेशन का हिस्सा रहे और प्राइवेट बैंक पूरे जोर-शोर के साथ आधार को लिंक कराने की कोशिश करते रहे. अब नियम बदलने की स्थिति में शायद बैंक खुद नहीं तय कर पा रहे कि वो कस्टमर को क्या कहें.
पेमेंट वॉलेट, जैसे पेटीएम केवाईसी के लिए लगातार आधार की मांग करते रहे हैं. लेकिन अगर आप अपना अकाउंट किसी भी कारण से डिलीट करना चाहें, तो नहीं कर सकते. यानी सुनिश्चित करना नामुमकिन है कि आपकी जानकारी कंपनी के रिकॉर्ड से हटा दी जाएगी.
आधार में प्राइवेसी के मुद्दे पर काम कर रहे कुछ एक्टिविस्ट ने हाल ही में लोगों को जागरूक करने के लिए एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की. उसमें कहा गया:
सुप्रीम कोर्ट की बात साफ है. फिलहाल आधार को कहीं भी जरूरी नहीं किया जा सकता. इसमें कोई दो राय नहीं है. आधार न देने पर कोई भी संस्था आपको किसी भी सेवा के लिए मना नहीं कर सकती.विक्रम कृष्णा, एक्टिविस्ट
अगर आप आधार नहीं देना चाहते हैं, तो क्या करें?
कंपनियों के रवैये से एक चीज साफ है कि आधार के मामले में वो कस्टमर फ्रेंडली नहीं होना चाहते. ऐसे में आपको खुद ही अपने हक की लड़ाई लड़नी होगी. इसलिए इन बातों का ध्यान रखें.
- अगर कोई कंपनी या संस्था आधार के लिए दबाव डालती है, तो ये जानकारी लिखित में मांगें
- बैंकों के लिए आरबीआई की वेबसाइट पर भी शिकायत कर सकते हैं
- टेलीकॉम कंपनियों के लिए TRAI में भी शिकायत कर सकते हैं
- संबंधिक कंपनी के कस्टमर केयर पर शिकायत भी कर सकते हैं
- अगर किसी कंपनी को आधार की जानकारी पहले ही दे चुके हैं, पर अब हटाना चाहते हैं, तो कंपनी को मेल करके जानकारी डिलीट करने को कहें
- दबाव बनाने के लिए सोशल मीडिया का भी सहारा लें
- जिस कंपनी से शिकायत है, उसके सीनियर अफसर और कंपनी के ट्विटर हैंडल पर ट्वीट करें
- अगर हो सके, तो इसी समस्या से जूझ रहे बाकी लोगों को भी साथ लें और समूह में कंपनियों से शिकायत करें
हालांकि इन सब बातों के लिए आपको अतिरिक्त मेहनत करनी होगी, दबाव भी झेलना पड़ेगा, लेकिन आधार जिस तरह से थोपा जा रहा है उससे निपटना आसान नहीं.
आधार का ‘आधार’
जब तक आधार पर सुप्रीम कोर्ट का अंतिम फैसला नहीं आ जाता, तब तक ये किसी भी दूसरे KYC डॉक्यूमेंट की तरह ही है. ऐसे में अगर आप KYC मांगे जाने पर कोई भी दूसरा प्रूफ दे रहे हैं, तो आधार देना जरूरी नहीं है.
आधार मूल रूप से ऐसी कोई भी अलग जानकारी नहीं देता, जो वोटर आईडी पासपोर्ट या अन्य डॉक्यूमेंट में न हो. आधार सिर्फ इस मामले अलग है कि इसमें बॉयोमेट्रिक डेटा भी शामिल है, लेकिन सिम लेने जैसी बेसिक सेवाओं के लिए इसकी जरूरत नहीं है. साथ ही प्राइवेसी और डाटा लीक के मामलों से घिरे आधार पर जब तक सुप्रीम कोर्ट का आदेश नहीं आ जाता, आप का पूरा हक बनता है कि आप आधार देने या न देने का फैसला अपनी मर्जी से करें, न कि कंपनियों के दबाव से.
बस सवाल इतना है कि आधार के लिए जोर जबरदस्ती क्यों? क्या ये गुपचुप तरीके से आधार को जरूरी करने की कोशिश है?
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