मेंबर्स के लिए
lock close icon
Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Explainers Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Child Care Leave: सुप्रीम कोर्ट ने क्यों पलटा हाईकोर्ट का फैसला? जानें छुट्टी लेने के नियम

Child Care Leave: सुप्रीम कोर्ट ने क्यों पलटा हाईकोर्ट का फैसला? जानें छुट्टी लेने के नियम

Child Care Leave पर हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने क्या फैसला दिया था और सुप्रीम कोर्ट ने उसे क्यों पलटा?

क्विंट हिंदी
कुंजी
Published:
<div class="paragraphs"><p>"चाइल्ड केयर लीव" क्या है, छुट्टी लेने का क्या है नियम? सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?</p></div>
i

"चाइल्ड केयर लीव" क्या है, छुट्टी लेने का क्या है नियम? सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?

(फोटो: तेजस्विता उपाध्याय/क्विंट हिंदी)

advertisement

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) के एक आदेश के बाद "चाइल्ड केयर लीव" (Child Care Leave) की चर्चा तेजी से हो रही है. अदालत ने "चाइल्ड केयर लीव" को लेकर हाईकोर्ट के फैसले तक को पलट दिया और कहा कि किसी कामकाजी महिला या मां के मौलिक अधिकारों से समझौता नहीं किया जा सकता है.

ऐसे में आइये जानते हैं कि "चाइल्ड केयर लीव" क्या है, हाईकोर्ट ने क्या फैसला दिया था और सुप्रीम कोर्ट ने उसे क्यों पलटा?

"चाइल्ड केयर लीव" क्या है?

फाइनेंशियल एक्सप्रेस में 22 अगस्त 2023 को छपी एक रिपोर्ट के अनुसार, सरकार की अधिसूचना के मुताबिक अखिल भारतीय सेवाओं (AIS) के योग्य सदस्य अपने अधिकतम दो सबसे बड़े बच्चों की देखभाल के लिए अपनी पूरी सेवा में 2 साल तक की कुल अवधि के लिए पेड़ लीव ले सकेंगे.

रिपोर्ट में बताया गया है कि कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग (DoPT) ने हाल ही में अखिल भारतीय सेवा (अवकाश) नियम, 1995 के तहत संशोधित 'चाइल्ड केयर लीव' नियमों को अधिसूचित किया है.

28 जुलाई की अधिसूचना के अनुसार, राज्य सरकारों के परामर्श के बाद केंद्र सरकार द्वारा अखिल भारतीय सेवा (अवकाश) नियम, 1995 के कुछ प्रावधानों में संशोधन किया गया है.

एआईएस के सदस्यों को 7वें वेतन आयोग के पे मैट्रिक्स के अनुसार वेतन दिया जाता है.

"चाइल्ड केयर लीव" का नियम क्या है?

केंद्र सरकार के नियम के मुताबिक, यह महिला कर्मचारियों को उनकी पूरी नौकरी के दौरान 18 साल से कम आयु के अधिकतम दो बच्चों की देखभाल के लिये मातृत्व अवकाश (Maternity Leave) के अलावा 730 दिनों की छुट्टी लेने का अधिकार देता है. इस दौरान पहले एक साल तक पूरी और फिर बाद के एक साल तक 80 फीसदी सैलरी का भुगतान किया जाएगा.

इसमें पुरुषों को भी शामिल किया गया लेकिन इसके लिए उनका ‘सिंगल फादर’ होना जरूरी है.

एक कैलेंडर वर्ष में 3 बार से अधिक के लिए छुट्टी स्वीकृत नहीं की जाएगी और परिवार में अकेली नौकरी कर रही महिला सदस्यों के मामले में, एक कैलेंडर वर्ष में 6 बार तक के लिए चाइल्ड केयर लीव स्वीकृत किया जा सकता है. हालांकि, एक बार में पांच दिन से कम अवधि के लिए चाइल्ड केयर लीव नहीं दिया जा सकता है.

अधिसूचना के अनुसार, चाइल्ड केयर लीव के लिए एक अलग लीव अकाउंट रखा जाएगा और इसे अन्य मिलने वाली छुट्टी से काटा नहीं जाएगा.

अधिसूचना में कहा गया है कि 'चाइल्ड केयर लीव' आम तौर पर प्रोबेशन पीरियड के दौरान नहीं दी जा सकती, सिवाय कुछ विशेष परिस्थितियों में, जहां अवकाश स्वीकृत करने वाला प्राधिकारी महिला/पुरूष को 'चाइल्ड केयर लीव' की आवश्यकता के बारे में संतुष्ट है, बशर्ते कि जिस अवधि के लिए ऐसी छुट्टी स्वीकृत की जाती है वह कम से कम हो.

ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

क्या है मामला?

हिमाचल प्रदेश के नालागढ़ स्थित सरकारी कॉलेज में सहायक महिला प्रोफेसर ने अपने बच्चे की देखभाल के लिए छुट्टी की मांग करते हुए राज्य सरकार से संपर्क किया था. महिला का कहना था कि उसका बेटा ऑस्टियोजेनेसिस इम्परफेक्टा, एक दुर्लभ जेनेटिक बीमारी से पीड़ित है और उसकी कई सर्जरी हो चुकी है. ऐसे में उनके लगातार इलाज के कारण उनकी सभी स्वीकृत छुट्टियां समाप्त हो गई थीं.

लेकिन राज्य सरकार द्वारा केंद्रीय सिविल सेवा (अवकाश) नियम, 1972 के नियम 43-सी के तहत प्रदान किए गए 'चाइल्ड केयर लीव' के प्रावधान को न अपनाने के कारण उसका आवेदन अस्वीकार कर दिया गया था.

हाईकोर्ट ने क्या फैसला दिया था?

महिला ने हाईकोर्ट में बीमार बेटे की देखभाल के लिए अनुच्छेद 226 के तहत छुट्टी के लिए याचिका दाखिल की. लेकिन राज्य सरकार ने याचिका का विरोध करते हुए तर्क दिया कि ये नियम यहां लागू नहीं होता है. इस आधार पर हाईकोर्ट ने 23 अप्रैल, 2021 को उसकी याचिका खारिज कर दी कि राज्य ने नियम 43 (सी) को नहीं अपनाया है.

सरकार का कहना था कि दो साल छुट्टी देने का मतलब है कि न तो इस पोस्ट पर किसी को नौकरी पर रखा जा सकता है और न ही काम चलेगा.

सुप्रीम कोर्ट ने क्यों पलटा HC का फैसला?

हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट से अपील खारिज होने पर महिला सुप्रीम कोर्ट पहुंची. इस पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने महिला को चाइल्ड केयर लीव न देने को संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन माना.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कार्यबल में महिलाओं की भागीदारी एक संवैधानिक अधिकार है और मां को "चाइल्ड केयर लीव" से वंचित करना इसका उल्लंघन है.

अदालत ने कहा कि कार्यबल में महिलाओं की भागीदारी केवल विशेषाधिकार का मामला नहीं है, बल्कि संविधान के अनुच्छेद 15 द्वारा संरक्षित एक संवैधानिक अधिकार है.

22 अप्रैल 2024 को सीजेआई डी वाई चंद्रचूड़ और जे बी पारदीवाला की पीठ ने कहा कि चाइल्ड केयर लीव का प्रावधान बताता है कि किसी कामकाजी महिला या मां के मौलिक अधिकारों से समझौता नहीं किया जा सकता है. राज्य किसी भी मां की घरेलू जिम्मेदारियों से अनजान बना नहीं रह सकता है.

महिलाओं को 'चाइल्ड केयर लीव' का प्रावधान यह सुनिश्चित करने के एक महत्वपूर्ण संवैधानिक उद्देश्य को पूरा करता है कि महिलाएं कार्यबल के सदस्यों के रूप में अपनी उचित भागीदारी से वंचित न रहें. अन्यथा, 'चाइल्ड केयर लीव' के प्रावधान के अभाव में, मां को नौकरी छोड़ने के लिए बाध्य होना पड़ सकता है.
सुप्रीम कोर्ट

पीठ ने कहा, यह विचार उस मां के मामले में अधिक मजबूती से लागू होता है जिसके पास विशेष जरूरतों वाला बच्चा है, "ऐसे मामले का उदाहरण खुद याचिकाकर्ता का मामला है".

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

अनलॉक करने के लिए मेंबर बनें
  • साइट पर सभी पेड कंटेंट का एक्सेस
  • क्विंट पर बिना ऐड के सबकुछ पढ़ें
  • स्पेशल प्रोजेक्ट का सबसे पहला प्रीव्यू
आगे बढ़ें

Published: undefined

ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT