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जम्मू-कश्मीर में सबसे बड़ा अर्धसैनिक बल है CRPF. पुलवामा में गुरुवार को हुआ आत्मघाती हमला केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (CRPF) पर अभी तक का सबसे बड़ा आतंकी हमला बताया जा रहा है. इस हमले में उच्च तीव्रता वाले आईईडी विस्फोटक का इस्तेमाल किया गया, जिसमें अब तक 39 सीआरपीएफ जवानों के शहीद होने की खबर है.
सीआरपीएफ शहर/राज्य/देश में कानून-व्यवस्था और आंतरिक सुरक्षा को बनाए रखने में सहायता करते हैं. इसके अलावा दंगों को कंट्रोल करना, वामपंथी उग्रवाद से निपटना, युद्ध की स्थिति में दुश्मन से लड़ने, आतंकियों का सफाया करना, प्राकृतिक आपदाओं और आपदाओं के समय बचाव कार्य में भी सीआरपीएफ मुख्य भूमिका होती है. कश्मीर घाटी में करीब 60,000 सीआरपीएफ जवानों की तैनाती है.
सीआरपीएफ 27 जुलाई 1939 को पुलिस के शाही प्रतिनिधि के रूप में सबसे पहले अस्तित्व में आया. आजादी के बाद 28 दिसंबर 1949 को सीआरपीएफ अधिनियम लागू हुआ. इसके बाद ये केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल बन गया. सीआरपीएफ भारत के केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों में सबसे बड़ा है.
सीआरपीएफ जवानों की तैनाती पूरे देश में होती है. किसी भी शहर या राज्य में आपात स्थिति में सीआरपीएफ जवानों को ही सबसे पहले बुलाया जाता है. ये हर तरह की आपात स्थिति से निपटने सक्षम है. पिछले कुछ सालों में आतंकवाद, घुसपैठियों, बाढ़ जैसे आपात हालात से निपटने में सीआरपीएफ का सबसे ज्यादा योगदान रहा है.
21 अक्टूबर 1959 को सीआरपीएफ ने लद्दाख पर पहली बार चीनी हमले को नाकाम किया. इस हमले में 10 जवान शहीद हो गए थे. उन जवानों की शहादत को याद करते हुए हर साल 21 अक्टूबर को पुलिस स्मृति दिवस मनाया जाता है.
साल 1962 में भारत-चीनी के बीच युद्ध हुआ था. इस दौरान सीआरपीएफ ने अरुणाचल प्रदेश में भारतीय सेना की मदद की थी, जिसमें 8 जवान शहीद हो गए. 1965 और 1971 में भारत-पाकिस्तान के बीच छिड़े युद्ध में भी सीआरपीएफ जवान भारतीय सेना के साथ कंधे से कंधे मिलाकर खड़े हुए थे.
70 के दशक के दौरान उग्रवादी तत्वों ने त्रिपुरा और मणिपुर में शांति भंग करने की कोशिश की. तब वहां सीआरपीएफ बटालियनों को तैनात किया गया. उस दौरान भी बल ने अपना पूरा पराक्रम दिखाया. इसी दौरान पंजाब में भी जमकर आतंकवाद छाया हुआ था. तब वहां राज्य सरकार ने बड़े पैमाने पर सीआरपीएफ को तैनात किया.
सीआरपीएफ ने देश की कई बड़ी प्राकृतिक आपदाओं के दौरान बचाव कार्य किया है. जैसे- ओडिया सुपर साइक्लोन (1999), गुजरात में भूकंप (2001), सुनामी (2004), जम्मू-कश्मीर में भूकंप (2005). इसके अलावा श्रीलंका (1987), हैती (1995), कोसोवो (2000) और लाइबेरिया (महिला दस्ता) जैसे विदेशी देशों में भी अपनी वीरता साबित की है.
देश और राज्य में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने की जिम्मेदारी भी सीआरपीएफ पर होती है. लोकसभा और विधानसभा, दोनों ही तरह के चुनावों के दौरान निर्वाचन क्षेत्र में सीआरपीएफ के जवान तैनात रहते हैं. चुनाव आयोग, गृह मंत्रालय सीआरपीएफ बटालियन के साथ लगातार संपर्क में रहता है. इस दौरान किसी भी तरह की दंगे या आतंक से जवान आम जनता को सुरक्षा मुहैया कराते हैं.
राजनीति, आंदोलन और अपराध की दुनिया में महिलाओं के योगदान की संख्या लगातार बढ़ रही है. ऐसे में कानून-व्यवस्था के मद्देनजर सीआरपीएफ में महिलाओं की भर्ती शुरू की गई.
केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल में 5 महिला बटालियनें हैं. पुरुष बटालियन के साथ-साथ महिला बटालियन ने भी बढ़-चढ़कर देश सेवा में अपनी वीरता का पराक्रम दिखाया है.
मार्च 1987 में 88 (महिला) बटालियन ने मेरठ दंगों और उसके बाद श्रीलंका में अपने कार्य से प्रशंसा हासिल की है. आज जम्मू-कश्मीर, अयोध्या, मणिपुर, असम समेत देश के कई भागों में महिला बटालियन तैनात हैं.
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