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धारावी (Dharavi) विधानसभा क्षेत्र से चार बार की विधायक और कांग्रेस नेता वर्षा गायकवाड़ खुद धारावी की रहने वाली हैं. वो कहती हैं कि "आपको एक बार धारावी का दौरा करना चाहिए, तब आप धारावी के बारे में व्यापक रूप से रिपोर्ट किए गए तथ्यों और आंकड़ों से परे जाकर इसे देख पाएंगे."
धारावी एशिया की सबसे बड़ा और दुनिया की तीसरा सबसे बड़ा स्लम क्षेत्र है. तथ्यों, आंकड़ों, ट्रिविया, महामारी की वजह से धारावी और धारावी के लोग दशकों से सुर्खियां बटोर रहे हैं. हालांकि, धारावी के पुनर्विकास का मुद्दा तब तक सुर्खियों से दूर रहा, जब तक अडानी समूह ने इस प्रोजेक्ट के लिए बोली नहीं जीत ली.
19 साल से धारावी रीडेवलपमेंट प्रोजेक्ट (DRP) से सुस्त पड़ा हुआ था. तब से कई सारे डेवलपर्स बोली (Bid) जीतने के बाद पीछे हट गए, एक नहीं बल्कि कई सारे आईएएस अधिकारी धारावी पुनर्विकास परियोजना (DRP) के सीईओ रह चुके हैं और कई बार इस प्रोजेक्ट की प्रक्रियाओं में बदलाव किया जा चुका है.
पहले जल्द से एक नजर इस प्रोजेक्ट के बैकग्रांउड पर डालते हैं. विलासराव देशमुख के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार द्वारा 2004 में धारावी पुनर्विकास प्राधिकरण (DRA) का गठन स्लम पुनर्विकास प्राधिकरण (SRA) के तहत किया गया था. डीआरए का लक्ष्य धारावी का पूरी तरह से रीडेवलवमेंट करना था, जोकि व्यक्तिगत डेवलपर्स के काम से उलट था, क्योंकि व्यक्तिगत डेवलपर्स (individual developers) प्रोजेक्ट्स उठा रहे थे और धारावी के पॉकेट्स का पुनर्विकास कर रहे थे.
रिपोर्ट्स के मुताबिक, डेवलपर (इस मामले में अदानी ग्रुप) स्पेशल पर्पज व्हीकल में 80 फीसदी की इक्विटी रखेगा और राज्य सरकार 20 फीसदी की इक्विटी रखेगी.
धारावी 300 हेक्टेयर में फैला है और यहां कम से कम 56 हजार परिवारों रहते हैं. इस रीडेवलपमेंट प्रोजेक्ट के लिए सरकार ने 240 हेक्टेयर अधिसूचित (नोटिफाइड) किया है.
कई फैक्टर्स के आधार पर परिवारों और घरों की पात्रता की जांच करने और रणनीति बनाने के लिए वर्षों से कई सर्वे किए गए हैं.
2008-2010 से धारावी पुनर्विकास परियोजना (डीआरपी) के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) रह चुके रिटायर्ड आईएएस अधिकारी गौतम चटर्जी ने विस्तार से समझाया कि धारावी जैसी एक झुग्गी के पुनर्विकास की जांच में और इसके इतर क्या होता है.
पात्रता, कार्यकाल और निवास की टाइम-लाइन स्थापित करना : चटर्जी समझाते हुए कहते हैं कि "आज के समय यानी वर्तमान में जो क्राइटेरिया तय किया गया है उसके अनुसार वे सभी लोग मुफ्त की चाल (छोटा घर या अपार्टमेंट) के लिए पात्र है, जो जिनका 2000 तक मतदाता सूची में नाम था और वे 2000 तक धारावी के निवासी रहे हैं. वहीं जो लोग इसके बाद 2011 तक आते रहे हैं, उनको कंस्ट्रक्शन कॉस्ट यानी निर्माण लागत का भुगतान करना होगा. हालांकि 2011 के बाद से इसमें अभी भी 11साल का अंतर है."
मालिकाना हक (ओनरशिप) में परिवर्तन या हस्तांतरण की अनुमति देना : चटर्जी आगे कहते हैं कि ऐसे भी मामले हैं जिसमें बेईमान लोग पात्र निवासियों को भुगतान करके वहां से बेदखल करने की कोशिश करते हैं. ताकि वे खुद पुनर्विकास संरचनाओं के तहत मिलने वाले मुफ्त मकान के योग्य बन सकें. वे कहते हैं कि "इसलिए यह भी सवाल है कि भले ही संरचना पुरानी ही क्यों न हो क्या नीति चाल (छोटे घर) के स्वामित्व को बदलने या हस्तांतरित करने की अनुमति देगी."
एक ही संरचना में कितनी संरचनाएं हैं, इसके बारे में टकराव : "भले ही सरकार एक विशेष इमारत को एक संरचना के रूप में वर्गीकृत कर सकती है, लेकिन इसमें कई मंजिलों के साथ एक से अधिक घर हो सकते हैं, इसलिए यहां पर सबसे महत्वपूर्ण कारक हैं इन संरचना से जुड़े मुद्दों का समाधान करना, उन लोगों को ट्रांजिट होम में ले जाना या उन्हें वैकल्पिक आवास के लिए किराए का भुगतान करना और फिर उस जमीन को क्लियर करना आदि.
दस्तावेजों का पता लगाना और उन्हें प्रूफ करना : चटर्जी कहते हैं कि ज्यादातर संरचनाओं में पर्याप्त दस्तावेजीकरण (डॉक्यूमेंटेशन) की कमी है.
वे बताते हैं कि "एक संरचना के भीतर घरों की संख्या, उनमें कितने परिवार रहते हैं, आदि को साबित करने के लिए आपको हर एक सर्वे के बाद नए सिरे से दस्तावेजीकरण करना होगा. उनमें से कुछ के पास अनौपचारिक किराये की व्यवस्था है, उन्हें भी ध्यान में रखा जाना चाहिए क्योंकि वे अनिवार्य रूप से गरीब परिवार हैं."
इन समस्याओं के बारे में बात करते हुए गायकवाड़ ने कहा कि नए सिरे से सर्वे की जरूरत है.
वे कहती हैं कि "पहले के जो सर्वे हो चुके हैं उसके बाद से परिवारों की संख्या में वृद्धि हुई है और मौजूदा परिवारों में वृद्धि हुई है. वर्षों पहले किए गए सर्वे के आधार पर पात्रता का क्राइटेरिया तय किया गया था, इसके फिर से तय करने की जरुरत है और इसके साथ ही रणनीति को भी फिर से तैयार करना होगा."
चटर्जी ने वहां होने वाले व्यवसायों को धारावी से बाहर ले जाने की चुनौतियां और उनमें से कई को नए मॉडल में समायोजित करने के संघर्ष के बारे में समझाते हुए कहा कि
चटर्जी आगे कहते हैं कि "अगर आपके पास एक निश्चित कारखाना है, जो बची हुई या फेंकी गई सामग्री से संबंधित है या ऐसी कोई यूनिट है जो कचरे के रिसाइकिलिंग से संबंधित है, तो इन जगहों में निश्चित संख्या में लोगों को रोजगार मिल सकता है. लेकिन पुनर्विकसित धारावी की आवासीय या व्यावसायिक पहलुओं में ऐसी यूनिट्स क्या वाकई में समायोजित की जाएंगी?"
चटर्जी ने समझाया कि "इस पर एक बड़ा प्रश्न चिह्न है कि पुनर्विकसित धारावी में किस तरह के रोजगार पैदा करने की अनुमति दी जाएगी? इसलिए, पुनर्विकसित धारावी में ऐसी कई सारी गतिविधियां हैं जिनको जगह नहीं मिल सकती है."
अब तक बीते वर्षाें में 2007, 2009, 2011, 2016, 2018 और 2022 में ग्लोबल टेंडर्स जारी किए गए थे, लेकिन 2007 में 101 आवेदकों को छोड़ दें बाद में इसमें किसी ने भी खास रुचि नहीं दिखाई और अंतत: 2022 में जो तीन टेंडर मिले थे उनमें से अडानी समूह को चुना गया.
वर्षों से कई डेवलपर्स के पीछे हटने के कारणों को समझाते हुए चटर्जी ने कहा कि इस प्रक्रिया में और अधिक पारदर्शिता लाने की जरूरत है.
चटर्जी कहते हैं कि "विभिन्न साझेदारों के बीच बातचीत के दौरान कभी-कभी कुछ स्पष्ट समाधान नहीं निकल पाते हैं. उदाहरण के तौर पर यह समझिए कि एक क्षेत्र में 100 संरचनाएं हैं, जिन्हें आपने पुनर्विकास के लिए लिया है, ऐसे में आपको यह साबित करना होगा कि वहां कितने परिवार रह रहे हैं और उनमें से कितने पात्र हैं? उनमें से कितने अपनी पात्रता के लिए संघर्ष कर रहे हैं? पात्रता पर निर्णय लेने में कितना समय लगेगा? इसके बाद सवाल आता है कि पात्रता पर कौन निर्णय लेता है और निर्णय लेने के बाद जो लोग अपात्र हैं उनको बलपूर्वक हटाने का निर्णय कौन करता है? जाहिर तौर इस पर निर्णय कोई प्राइवेट संस्था नहीं कर सकती है, यह सरकार का काम है."
चटर्जी कहते हैं कि "यह देखते हुए कि आपके पास प्रोजेक्ट को पूरा करने की एक समय सीमा है, ऐसे में आप उस समय का हिसाब कैसे देंगे? अगर डेवलपर समय सीमा के भीतर कार्य पूरा नहीं करता है, तो निश्चित रूप से उसे इसके परिणाम भुगतने होते हैं उन पर पेनाल्टी भी लगाई जाती हैं."
गायकवाड़ और चटर्जी दोनों का ही यह कहना है कि प्रोजेक्ट चाहे जो कोई भी ले, लेकिन इस प्रोजेक्ट में धारावी के लोगों को केंद्र में रहने की जरूरत है.
गायकवाड़ कहती है कि "जिस अहम पहलू पर विचार करने की जरूरत है वह यह है कि ये कोई कमर्शियल प्रोजेक्ट नहीं है, बल्कि एक इंटीग्रेटेड रीडेवलपमेंट प्रोजेक्ट है. लोग कह रहे हैं कि यह क्षेत्र BKC (बांद्रा कुर्ला कॉम्प्लेक्स) का विस्तार है, लेकिन यह सही नहीं है."
गायकवाड़ कहती हैं कि "जब तकनीकी संबंधी या बारीक बातें आएगीं, तो संबंधित समितियों को बहुत सी चीजों पर गौर करने की जरूरत होगी. ठीक ढंग से सर्वे करने की जरूरत है, जिन परिवारों का डॉक्यूमेंटेशन का मामला है उसको हल करने की आवश्यकता है, कोई भी व्यक्ति पीछे नहीं छूटना चाहिए. लेकिन दुर्भाग्य से, लोगों के पास उचित दस्तावेज नहीं हैं. ऐसे में उनकी मदद करने में और यह सुनिश्चित करने में कि पात्रता क्राइटेरिया में उनकी (सरकार या डेपलपर्स की) ओर से कटौती की जाए, इन सभी प्रक्रियाओं में समय लगता है. यही वजह है कि चीजें 19 सालों से लटकी हुई हैं."
वे कहती हैं कि "हम दृढ़ता पूर्वक यह प्रस्ताव देते है कि किसी को भी ट्रांजिट कैंप में नहीं जाना चाहिए. वहां कंस्ट्रक्शन होना चाहिए और लोगों को तुरंत स्थानांतरित किया जाना चाहिए. एक बार इन ट्रांजिट कैंपों में भेजे जाने के बाद लोग वहां सड़ते रहते, परेशान होते रहते हैं."
गायकवाड़ इस बात पर ध्यान आकर्षित करते हुए कहती है कि स्लम रीडेवलपमेंट प्रोजेक्ट्स (झुग्गी पुनर्विकास परियोजनाओं) में जिन लोगों को ऊंची इमारतों में स्थानांतरित किया जाता है, वे अंततः रखरखाव की लागत (मेंटिनेंस कॉस्ट) का भुगतान नहीं कर सकते हैं और इसके परिणामस्वरूप वहां से बाहर हो सकते हैं, ऐसे में इस तरह का प्लान बनाने की जरूरत है कि जो लोगों के लिए लंबे समय तक टिकाऊ रह सके.
गायकवाड़ कहती हैं कि "हमारी लड़ाई सिर्फ पुनर्वास (रीहैबिलिटेशन) के लिए नहीं है, बल्कि स्थायी पुनर्वास (सस्टेनेबल रीहैबिलिटेशन) के लिए है."
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