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फिर दस्तक देने को तैयार ‘गठबंधन’ की राजनीति, क्या हैं इसके मायने?
राजनीतिक गठबंधन की स्थिति और स्कोप को समझने के लिए जानिए उसके फॉर्मेशन, फंक्शनिंग और हिस्ट्री के बारे में सब कुछ
कृतिका गोयल & मान्या कोचर
कुंजी
Updated:
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राजनीतिक गठबंधन की स्थिति और स्कोप को समझने के लिए जानिए उसके फॉर्मेशन, फंक्शनिंग और हिस्ट्री के बारे में सब कुछ
(फोटोः Quint Hindi)
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जनवरी 2019 में तीन बड़े कार्यक्रम हुए. सबसे पहले समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी और राष्ट्रीय लोकदल ने देश के सबसे ज्यादा आबादी वाले सूबे उत्तर प्रदेश में नरेन्द्र मोदी की अगुवाई वाली बीजेपी को सत्ता से बेदखल करने के लिए महागठबंधन करने की घोषणा की.
दूसरा, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के बुलावे पर कई बीजेपी विरोधी दल एक मेगा रैली करने के लिए कोलकाता के ब्रिगेड परेड मैदान में जमा हुए. तीसरा, दो ओपिनियन पोल – पहला एबीपी न्यूज और सी-वोटर और दूसरा इंडिया टुडे और कार्वी इनसाइट्स, ने अनुमान लगाया कि बीजेपी की अगुवाई वाली एनडीए (राष्ट्रीय लोकतांत्रिक गठबंधन) को लोकसभा में बहुमत मिलना मुश्किल है.
इन कार्यक्रमों के कारण गैर-बीजेपी गठबंधन को बहुमत मिलने पर चर्चाएं शुरू हो गई हैं.
भले ही बीजेपी ने महागठबंधन की सरकार बनने की उम्मीदों का मजाक उड़ाया हो, लेकिन अभी नतीजे सामने नहीं आए हैं और इस बात को आसानी से नकारा नहीं जा सकता कि भारत में फिर से गठबंधन की सरकार बन सकती है.
किसी राजनीतिक गठबंधन की स्थिति और स्कोप को बेहतर तरीके से समझने के लिए आपको उसके फॉर्मेशन, फंक्शनिंग और हिस्ट्री के बारे में जानना होगा.
गठबंधन क्या है और इसका गठन कैसे होता है?
जब दो या दो से ज्यादा पॉलिटिकल पार्टियां एकसाथ आकर एक-दूसरे के सहयोग से मिल-जुलकर चुनाव लड़ती हैं, तब गठबंधन होता है (यह चुनाव से पहले या बाद में हो सकता है). यह किसी एक पॉलिटिकल पार्टी के दबदबे या पावर को कम करता है. गठबंधन आमतौर पर तब होता है जब:
जब कोई सिंगल पॉलिटिकल पार्टी पार्लियामेंट में कामचलाऊ बहुमत भी हासिल नहीं कर पाती है.
जब दो पार्टियों को एक बराबर सीट मिल जाती हैं और उनके बीच गतिरोध पैदा होने की संभावना होती है, ऐसी स्थिति में एक पार्टी को बहुमत हासिल करने के लिए गठबंधन करने की जरूरत होती है.
1947 से 2014 के बीच भारत में गठबंधन की कई सरकारें रह चुकी हैं.
857 दिन मोरारजी देसाई की सरकार (मार्च 1977 से जून 1979): राष्ट्रीय आपातकाल के बाद ये पहले चुनाव थे. इसमें जनता पार्टी ने चुनाव जीतकर पहली गैर-कांग्रेसी सरकार बनाई थी और मोरारजी देसाई भारत के प्रधानमंत्री बने थे. जनता पार्टी कई पार्टियों का गठबंधन थी. जब साल 1979 में कई पार्टियों ने जनता गठबंधन से अपना सहयोग वापस ले लिया, तब सरकार गिर गई, जिसकी वजह से मोरारजी देसाई को अपना पद छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा.
171 दिन चरण सिंह की सरकार ( जुलाई 1979 से जनवरी 1980): मोरारजी देसाई की सरकार गिरते ही भारतीय जनता दल के नेता चरण सिंह (जो जनता पार्टी के ही एक सहयोगी थे) ने प्रधानमंत्री का पद संभाल लिया. हालांकि, सिंह पार्लियामेंट में अपना बहुमत साबित नहीं कर पाए और उनकी सरकार गिर गई. इसके बाद नए चुनावों की घोषणा की गई.
344 दिन वीपी सिंह की सरकार (दिसंबर 1989 से नवंबर 1990): साल 1989 के चुनावों में, जनता दल ने बीजेपी और वाम दलों से बाहरी समर्थन लेकर राष्ट्रीय मोर्चा की सरकार बनाई. वीपी सिंह प्रधानमंत्री बने, लेकिन चंद्रशेखर के पार्टी छोड़ने की वजह से उन्हें अपने पद से हाथ धोना पड़ा.
224 दिन चंद्रशेखर की सरकार (नवंबर 1990 से जून 1991): साल 1990 में कांग्रेस से बाहरी समर्थन लेकर चंद्रशेखर प्रधानमंत्री बने. लेकिन यह सरकार ज्यादा दिनों तक नहीं टिक पाई और इसके एक साल से भी कम समय में लोकसभा चुनाव आयोजित किए गए.
मई 1996 में 13 दिन के लिए अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार: साल 1996 में हुए चुनावों में बीजेपी और ज्यादा मजबूत हुई थी, क्योंकि कांग्रेस भ्रष्टाचार के आरोपों से जूझ रही थी. इसमें बीजेपी ने 161, कांग्रेस ने 140 और जनता दल ने 46 सीटें जीती थीं, जबकि क्षेत्रीय पार्टियों ने 129 सीटों पर जीत दर्ज की थी. नियम के हिसाब से बीजेपी को सरकार बनाने के लिए बुलाया गया था. वाजपेयी ने गठबंधन करने की कोशिश तो की, लेकिन सरकार 13 दिनों तक ही चल पाई और वाजपेयी को अपना पद छोड़ना पड़ा.
325 दिनों के लिए देवगौड़ा (जून 1996 से अप्रैल 1997): जैसे ही वाजपेयी सरकार गिरी, देवगौड़ा क्षेत्रीय दलों और कांग्रेस के बाहरी समर्थन से प्रधानमंत्री बन गए. हालांकि, कांग्रेस ने समर्थन वापस लेने का फैसला किया और देवगौड़ा की सरकार का 11 महीनों में ही पतन हो गया.
333 दिनों के लिए आईके गुजराल (अप्रैल 1997 और मार्च 1998): देवगौड़ा के इस्तीफे ने इंद्र कुमार गुजराल की राह आसान कर दी और वे प्रधानमंत्री बन गए. कांग्रेस एक बार फिर इस संयुक्त मोर्चा सरकार का समर्थन कर रही थी लेकिन जैसे ही उन्होंने समर्थन वापस लिया, सरकार फिर से गिर गई.
394 दिनों के लिए अटल बिहारी वाजपेयी (मार्च 1998 से अप्रैल 1999 के बीच): 1998 के चुनावों में, बीजेपी लोकसभा की 543 सीटों में से 182 सीटों पर धाक जमाकर सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी. बीजेपी ने क्षेत्रीय दलों के साथ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन किया और अपनी सरकार बनाई. अटल बिहारी वाजपेयी ने एक बार फिर पीएम पद की शपथ ली लेकिन सरकार 13 महीने में ही बिखर गई, जब अन्नाद्रमुक ने एनडीए से समर्थन वापस ले लिया.
अटल बिहारी वाजपेयी का 1999 से 2004 का कार्यकालः साल 1999 के आम चुनावों में बीजेपी ने कुल 543 लोकसभा सीटों में से 182 सीटों पर जीत हासिल की. क्षेत्रीय दलों को 158 सीटों पर जीत मिली, वहीं कांग्रेस के हिस्से में 114 सीटें आईं. इस बार बीजेपी स्थिर सरकार बनाने में कामयाब रही, जिसने पूरे पांच साल का कार्यकाल पूरा किया.
मनमोहन सिंह (यूपीए-1 - 2004 से 2009): 2004 में कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी और इसने 145 सीटें जीतीं, जबकि बीजेपी को 138 सीटें मिलीं. उस समय कांग्रेस ने मनमोहन सिंह के नेतृत्व में क्षेत्रीय दलों और वाम दलों के बाहरी समर्थन के साथ यूपीए (संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन) का गठन किया.
मनमोहन सिंह (यूपीए-2 - 2009 से 2014): जब 2009 में चुनाव हुए तो यूपीए ने सत्ता में फिर से वापसी की. कांग्रेस ने भी इस बार 145 की अपेक्षा 206 सीटें जीतकर अपनी स्थिति में सुधार किया जबकि बीजेपी केवल 116 सीटें ही जीत सकी. मनमोहन सिंह को दूसरी बार प्रधानमंत्री के रूप में चुना गया.
2014 से सत्तारूढ़ नरेंद्र मोदी सरकार भी गठबंधन वाली सरकार है, क्योंकि बीजेपी के सहयोगी दल भी सरकार का हिस्सा हैं. लेकिन बीजेपी ने 2014 में अपने दम पर 282 सीटें जीती थीं, जो कुल सीटों की आधी संख्या से ज्यादा है.
क्या कभी किसी गठबंधन सरकार का कार्यकाल पूरा हुआ है?
हां, मनमोहन सिंह के नेतृत्व में आखिरी गठबंधन सरकार यूपीए की रही है, जिसने लगातार दो कार्यकाल पूरे किये हैं, लेकिन अन्य गठबंधन सरकारें अस्थिर साबित हुईं और अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सकीं.
गठबंधन सरकार की स्थिरता और प्रदर्शन को लेकर आलोचकों के अलग-अलग विचार हैं. लाइव मिंट की एक रिपोर्ट के मुताबिक, राजनीतिज्ञ क्रिस्टोफ जाफरलॉट ने बताया कि गठबंधन सरकारें अधिक समावेशी नीतियां बनाती हैं क्योंकि एक गठबंधन राजनीतिक दलों के व्यापक समूह का प्रतिनिधित्व करता है.
हालांकि, एक अन्य राजनीतिज्ञ इरफान नूरुद्दीन ने अपनी किताब कोएलिशन पॉलिटिक्स एंड इकनॉमिक डेवलेपमेंट में बताया कि गठबंधन अड़चनें पैदा करते हैं क्योंकि एक सरकार "अचानक और मनमाने ढंग से" नीतियां नहीं बदल सकती. इसके अलावा, लाइव मिंट के एक विश्लेषण ने स्पष्ट किया है कि गठबंधन सरकारें भारत या किसी अन्य देश में आर्थिक प्रदर्शन को नुकसान नहीं पहुंचाती हैं.
हाल ही में, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने महागठबंधन पर कटाक्ष किया और कहा कि भारत के लोगों को यह तय करना चाहिए कि उन्हें मजबूत सरकार चाहिए या मजबूर सरकार चाहिए. वह उस संभावित गठबंधन का उल्लेख कर रहे थे, जो 2019 के चुनावों में किसी भी पार्टी के बहुमत ना मिलने पर बन सकता है.
हालांकि, गठबंधन से बनी हर सरकार कमजोर सरकार नहीं रही है.
मंडल आयोग की सिफारिशों को लागू करना, अन्य पिछड़ा वर्ग को नौकरी में कोटा देना, पोखरण में परमाणु परीक्षण करने का निर्णय लेना, महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम और सूचना का अधिकार अधिनियम लागू करना यह गठबंधन सरकारों की ओर से उठाए गए साहसिक कदमों के कुछ उदाहरण हैं.
गठबंधन सरकारों में उनके प्रभाव पैदा कर पाने की स्थिति साफ नहीं होती, इसलिए गठबंधन सहयोगी चिंतित रहते हैं. पूर्ण स्वतंत्र सत्ता और बहुमत पर नियंत्रण की कमी से छोटे दल विद्रोह करने में ज्यादा आत्मविश्वासी हो जाते हैं, जिसके कारण अविश्वास प्रस्ताव पारित होते हैं और सरकार का गिरना आसान हो जाता है.
अगर 2019 के लोकसभा चुनावों के बाद गठबंधन की सरकार बनी तो क्या होगा?
लाइव मिंट की रिपोर्ट के मुताबिक, कार्वी इनसाइट्स और इंडिया टुडे के ताजा सर्वे के अनुसार, बीजेपी को 2019 के चुनावों में 30 प्रतिशत वोट मिलने की संभावना है, जिससे उसे 245 सीटें मिल सकती हैं, जो संसदीय बहुमत से 27 कम हैं.
एक कार्यक्रम में, मोदी ने गठबंधन सरकारों के विचार पर भाषण दिया था और अपने विचार स्पष्ट किए थे.
हिंदुस्तान टाइम्स के मुताबिक, उन्होंने कहा, “20 सालों से, अस्थिरता थी. कोई बहुमत वाली सरकार नहीं थी. तब गठबंधन सरकारें हुआ करती थीं. देश का विकास रुक गया था. लेकिन अब हम प्रगति कर रहे हैं”.
चूंकि गठबंधन की सरकार बनने की बहुत ज्यादा उम्मीदें हैं, इसलिए विशेषज्ञ पहले से ही यह अनुमान लगा रहे हैं कि इसका प्रभाव क्या हो सकता है. मोदी के जैसे कई लोग हैं जिनका यह मानना है कि गठबंधन का मतलब एक अस्थिर सरकार यानी एक अस्थिर अर्थव्यवस्था. लेकिन पिछले अनुभवों से पता चलता है कि कुछ गठबंधन सरकारों ने महत्वपूर्ण फैसले लिए, जिन्होंने भारत की प्रगति में योगदान दिया है.