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लद्दाख की गलवान घाटी में बीती रात (चीन से) एक हिंसक झड़प में भारतीय सेना के एक अधिकारी और 2 जवान शहीद हो गए. सेना ने बताया कि स्थिति को शांत करने के लिए दोनों देशों के वरिष्ठ सैन्य अधिकारी बातचीत कर रहे हैं. न्यूज एजेंसी एएनआई के मुताबिक, सेना ने कहा है कि झड़प में दोनों पक्षों से (सैनिक/अधिकारी) हताहत हुए हैं.
सीमा पर भारत और चीन में पिछले लगभग एक महीने से तनाव चल रहा था. तनाव के बीच ये खबर आने से विपक्ष ने सरकार पर सवाल उठाए हैं और पीएम से जवाब मांगा है.
विवाद को ठीक से समझने के लिए आपको दोनों देशों के बीच सीमा विवाद का इतिहास, सीमा क्षेत्र का भूगोल और इससे जुड़े हुए मुद्दे समझने की जरूरत है.
भारत और चीन के बीच सीमा विवाद की सबसे बड़ी वजह है दोनों देशों के बीच सीमा संबंधित किसी समझौते का नहीं होना. इसके अलावा कम से कम तीन ऐसी वजह हैं जो समय-समय पर तनाव को जन्म देते रहते हैं.
भारत-चीन के बीच 3,488 किमी लंबी सीमा है. इसे तीन हिस्सों में देखें तो-
वास्तविक नियंत्रण रेखा पर ग्लेशियर, बर्फ के रेगिस्तान, पहाड़ और नदियां हैं। अक्सर दोनों देशों में यह भ्रम पैदा हो जाता है कि उसकी सीमा का उल्लंघन हो रहा है। सड़कों का निर्माण, टेंट बनाना, सैन्य गतिविधि आदि के कारण आशंकाएं बढ़ती चली जाती हैं
डोकलाम का महत्व 2017 की घटना के बाद यह है कि भारत अब चीन को जवाब दे सकता है. 2017 में चीन सड़क बनाने की कोशिश कर रहा था, जिस पर भारत और चीन की सेना 70 दिनों तक एक-दूसरे के खिलाफ डटी रहीं. भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी के बीच जिनपिंग डोकलाम विवाद के बाद दो बार अनौपचारिक वन टू वन मुलाकात हुई. बगैर एजेंडे वाली इस शिखर वार्ता से शांति लौटी.
भौगोलिक और सामरिक नजरिए से देखें डोकलाम के नजदीक सिक्किम का बॉर्डर है और यह चीन और भूटान के बीच ट्राई-जंक्शन बनाता है. वास्तव में डोकलाम को लेकर विवाद चीन और भूटान के बीच है मगर भारत के लिए इसका रणनीतिक महत्व है. एक बार यह इलाका अगर चीन के कब्जे में आ गया तो उत्तर पूर्वी राज्यों को देश से जोड़ने वाली 20 किमी चौड़ी चिकेन्स नेक तक उसकी पहुंच हो जाएगी.
अरुणाचल प्रदेश के तवांग को चीन तिब्बत का हिस्सा बताता है. सांस्कृतिक समानता और बौद्ध तीर्थस्थल से जोड़कर भी वह अपने दावे को पेश करता है. 1914 में ब्रिटिश भारत और तिब्बत के बीच हुए समझौते में अरुणाचल के उत्तरी हिस्से तवांग और दक्षिणी हिस्से को भारत का हिस्सा मान लिया गया था. 1962 में चीन ने तवांग पर कब्जा कर लिया था मगर भौगोलिक स्थिति अनुकूल नहीं रहने से उसने यहां से लौट जाना उचित समझा. तवांग की सामरिक स्थिति भारत के लिए अधिक महत्वपूर्ण है इसलिए चीन भी इस पर कड़ी नजर रखता है.
1962 युद्ध से पहले भारत और चीन दोनों ने सीमा विवाद पर चुप्पी बनाए रखी. भारत मैकमोहन लाइन के भरोसे था, मगर चीन के मन में कुछ और था. आगे चलकर जब सीमा को लेकर आए दिन किचकिच होने लगी तो दोनों देशों ने मैनेजमेंट समितियां बनाईं. इसका मकसद सीमा निर्धारण होने तक शांति बनाए रखने की है. कोशिश यह है कि विवाद न हो. जब विवाद हो तो तनाव न बढ़े. और, किसी तरह से युद्ध को न होने दिया जाए. दोनों देशों के विशेष प्रतिनिधियों के बीच 20 से ज्यादा बैठकें हो चुकी हैं. आखिरी बैठक 21 दिसंवबर 2019 को हुई थी.
लिपुलेख, लिम्पियाधुरा और कालापानी के त्रिकोणभूमि पर जो ताजातरीन विवाद नेपाल ने खड़ा किया है उसमें प्रत्यक्ष रूप से चीन कहीं नहीं है. मगर, इस क्षेत्र से चीन का हित जुड़ा हुआ है. 2015 में भारत और चीन के बीच लिपुलेख एग्रीमेंट हुआ था जिससे नेपाल नाराज हो गया. इस एग्रीमेंट का मकसद तीर्थयात्रियों की सुविधा और तिब्बत के साथ व्यापार को बढ़ावा देना था. 8 मई 2020 को दारचुला लिपुलेख लिंक रोड के उद्घाटन के बाद यह विवाद आगे बढ़ गया. यह भी याद रखने की जरूरत है कि कैलाश मानसरोवर की यात्रा 1950 के दशक में रुक गयी थी जब चीन ने तिब्बत को अपने कब्जे में ले लिया. भारत ने 1959 में लिपुलेख दर्रे पर सैनिक टुकड़ियां तैनात कर दीं.
नेपाल उस मानचित्र को मंजूरी देने की कोशिश में है जिसमें जिसमें काली नदी के उद्गम स्थल लिम्पियाधुरा से कालापानी और इस त्रिकोणात्मक भूमि के उत्तर पूर्व स्थित लिपुलेख को नेपाल में दिखाया गया है. 22 मई को नेपाल की कैबिनेट इस आशय का प्रस्ताव पास कर चुकी है.
हालांकि सदन में आवश्यक दो तिहाई बहुमत नहीं मिल पाने की वजह से यह प्रस्ताव फिलहाल टाल दिया गया है।
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Published: 28 May 2020,06:52 PM IST