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केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह (Amit Shah) ने कहा है कि भारत और म्यांमार सीमा (India- Myanmar Border) को सील किया जाएगा यानी सीमा पर फेंसिंग लगाई जाएगी. उन्होंने शनिवार, 20 जनवरी को असम पुलिस की पासिंग आउट परेड में कहा कि, "नरेंद्र मोदी सरकार ने निर्णय लिया है कि भारत-म्यांमार सीमा को फेंस (बाड़ेबंदी) से सुरक्षित करेंगे और पूरी सीमा पर बांग्लादेश की तर्ज पर बाड़ लगाने का काम करेंगे और म्यांमार के साथ हमारा फ्री आवाजाही का एग्रीमेंट है. इस पर भी भारत सरकार पुर्नविचार कर रही है और इस सहुलियत को भी भारत सरकार बंद करने जा रही है."
यहां आपको बताएंगे कि म्यांमार सीमा पर फेंसिंग करने की जरूरत क्यों पड़ी? और फ्री आवाजाही यानी फ्री मूवमेंट रीजीम क्या है?
दरअसल मणिपुर में सुरक्षा बलों पर हुए हमले के बाद सीएम एन बीरेन ने कहा था कि, "सुरक्षा बलों पर हमलों में म्यांमार के विदेशी भाड़े के सैनिक शामिल हो सकते हैं." उन्होंने आगे कहा, "हमने ऐसी चरमपंथी गतिविधियों का मुकाबला करने के लिए सभी आवश्यक उपाय किए हैं."
3 मई 2023 को मणिपुर में जातीय संघर्ष शुरू होने के बाद से, बीरेन सिंह ने शांति बहाल करने के लिए बार-बार "म्यांमार से अवैध अप्रवासन" और ड्रग्ज की तस्करी को जिम्मेदार ठहराया है, साथ ही पूर्वोत्तर में भारत की "छिद्रपूर्ण सीमाओं" (ऐसी सीमा जहां से आसानी से आया-जाया सके) की "सुरक्षा" का हवाला दिया है.
अब हालिया रिपोर्टों के अनुसार, केंद्र ने भारत-म्यांमार सीमा पर एक एडवांस स्मार्ट फेंसिंग सिस्टम के लिए टेंडर जारी करने का फैसला लिया है. फेंसिंग के बाद आवाजाही बंद हो जाएगी.
एक वरिष्ठ अधिकारी ने मीडिया से बात करते हुए कहा कि सीमावर्ती इलाकों में रहने वाले लोग, जो अब तक भारत में आसानी से आ सकते हैं - उन्हें जल्द ही वीजा की जरूरत पड़ेगी.
भारत म्यांमार के साथ 1,643 किलोमीटर लंबी सीमा साझा करता है, जो मणिपुर, मिजोरम, नागालैंड और अरुणाचल प्रदेश राज्यों से होकर गुजरती है. 1,643 किमी में से, लगभग 390 किमी की सीमा मणिपुर में पड़ती है - और इसमें से केवल 10 किमी में ही अभी तक फेंसिंग की गई है.
यह व्यवस्था नरेंद्र मोदी सरकार की 'एक्ट ईस्ट' नीति के तहत अक्टूबर 2018 में लागू की गई थी.
जैसा कि नॉर्थईस्ट हिल यूनिवर्सिटी, शिलांग में राजनीति विज्ञान की प्रोफेसर मुनमुम मजूमदार ने 'भारत-म्यांमार सीमा फेंसिंग लगाना और भारत की एक्ट ईस्ट पॉलिसी' शीर्षक वाले अपने पेपर में विस्तार से बताया है:
1947 में भारत के स्वतंत्र देश बनने से ठीक 10 साल पहले, 1937 में म्यांमार (तब बर्मा) को बाकी भारतीय साम्राज्य से अलग कर दिया गया था. इसने भारत-म्यांमार सीमा पर रहने वाले इन जातीय समुदायों को विभाजित कर दिया. 1949 में मणिपुर के पूर्ववर्ती स्वतंत्र राज्य के भारत में विलय के बाद, 10 मार्च 1967 को भारत-बर्मा सीमा समझौते पर हस्ताक्षर किए गए, जिसके बाद तौर-तरीकों पर काम करने के लिए एक संयुक्त भारत-बर्मा सीमा आयोग का गठन किया गया.
इन जातीय समूहों की चिंताओं को दूर करने और उनके बीच अधिक से अधिक बातचीत को सक्षम करने के लिए, भारतीय और म्यांमार सरकारों ने एफएमआर की स्थापना की.
मणिपुर में जब से हिंसा भड़की है तब से इस रीजीम को लेकर चर्चा तेज हो गई है.
अधिकारी बताते हैं कि, "आतंकवादियों और कई अपराधी इस रीजीम का दुरुपयोग करते हैं. ये हथियारों, नशीले पदार्थों, तस्करी के सामानों और नकली भारतीय रुपये के नोटों की तस्करी करते हैं. वहीं जब से म्यांमार में कुकी-चिन समुदाय पर सरकार की कार्रवाई हो रही है तब से इसका उपयोग प्रवासियों द्वारा किया जा रहा है.
2023 में, मणिपुर सरकार ने आरोप लगाया कि ग्राम प्रधान अवैध रूप से म्यांमार के प्रवासियों को पहाड़ियों के नए गांवों में बसा रहे हैं, जिससे वनों की कटाई हो रही है.
दरअसल, 2 मई को, राज्य में झड़पें शुरू होने से एक दिन पहले, बीरेन सिंह ने इंफाल में कहा:
जैसे ही म्यांमार में संकट बढ़ा और शरणार्थियों की मणिपुर में कथित तौर पर एंट्री बढ़ गई, भारत ने सितंबर 2022 में एफएमआर को अस्थायी रूप से निलंबित कर दिया. लेकिन व्यवस्था को पूरी तरह से रद्द करने की मांग उठाई जा रही है, विशेषज्ञों ने द क्विंट को बताया कि एफएमआर को बेहतर रेग्युलेशन की जरूरत है.
मजूमदार बताती हैं कि, "फेंसिंग लगाना एक प्रतिगामी कदम होगा क्योंकि इस क्षेत्र में फेंसिंग लगाना एक बाधा के रूप में देखा जाता है, जो उनके जीवन के अनुभव में हस्तक्षेप करता है."
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