Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Explainers Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019क्या गन्ना किसानों के लिए 7000 करोड़ रुपये का पैकेज काफी है?   

क्या गन्ना किसानों के लिए 7000 करोड़ रुपये का पैकेज काफी है?   

देश में शुगर मिलों पर किसानों का 23000 करोड़ रुपये बकाया है.

दीपक के मंडल
कुंजी
Published:
गन्ने की अधिक पैदावार चीन मिल मालिकों और किसानों दोनों के लिए सिरदर्द 
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गन्ने की अधिक पैदावार चीन मिल मालिकों और किसानों दोनों के लिए सिरदर्द 
फोटो - क्विंट हिंदी 

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केंद्र सरकार ने गन्ना किसानों और चीनी मिलों को राहत देने के लिए 7000 करोड़ रुपये के पैकेज का ऐलान कर दिया है. यूपी के गन्ना बेल्ट की एक अहम सीट कैराना में बीजेपी की हार के बाद शुगर मिलों में किसानों का पैसा अटकने के मुद्दे को मोदी सरकार ने गंभीरता से लिया है. देश में शुगर मिलों पर किसानों का 23000 करोड़ रुपये बकाया हैं.

ऐसे में अहम सवाल ये है कि 7000 करोड़ रुपये के पैकेज से उन्हें कितनी राहत मिल पाएगी. चीनी मिलों के कारोबार,शुगर इंडस्ट्री को लेकर सरकार के रवैये और गन्ना किसानों के बीच के समीकरणों से उपजे इस मुद्दे को आइए समझते हैं, पांच कार्डों के जरिये-

अधिक गन्ना उत्पादन कैसे बना शुगर इंडस्ट्री के जी का जंजाल?

(फोटो: pixabay)

भारत में चीनी ही एक मात्र ऐसा कमोडिटी कारोबार है, जिस पर सरकार का पूरा कंट्रोल है. इसकी नीतियां वही तय करती है. चीनी मिलों को किसानों को गन्ना डिलीवरी के 14 दिनों के भीतर पेमेंट करना होता है. केंद्र सरकार गन्ना की फेयर एंड रिम्यूनेरेटिव प्राइस (एफआरपी) तय करती है. इसके अलावा राज्य भी अपनी ओर से कीमत तय करते हैं, जिसे स्टेट एडवाइजरी प्राइस (एसएपी) कहते हैं. इसके बावजूद किसानों को उनकी फसल की कीमत वक्त पर नहीं मिलती.

दरअसल इस समस्या की जड़ है देश में गन्ने का अधिक उत्पादन. बेहतर प्रजाति और पानी और देखभाल पर कम निर्भरता की वजह से रकबा (उपज क्षेत्र) कम होते जाने पर भी गन्ना उत्पादन लगातार बढ़ रहा है. चूंकि चीनी मिलों के लिए गन्ना खरीदना कानूनन बाध्यकारी है इसलिए शुगर प्रोडक्शन लगातार बढ़ रहा है. 2017-18 के शुगर सीजन के दौरान भारत में 322 लाख टन चीनी उत्पादन का अनुमान है. यह 2016-17 के 202.62 लाख टन के उत्पादन से 59 फीसदी अधिक है.

क्या सप्लाई और डिमांड की थ्योरी से जुड़ी है गन्ना किसानों के बकाये की दिक्कत?

बेहतर प्रजाति और देखभाल पर कम निर्भरता की वजह से गन्ने की पैदावार लगातार बढ़ रही है(फोटो: pixabay)

जी हां. देश में 2017-18 सीजन में चीनी का उत्पादन 322 लाख टन के आसपास होने का अनुमान है. लेकिन देश में इसकी खपत है 260 लाख टन. यानी 60 लाख टन चीनी का अधिक उत्पादन. अब इस चीनी को कहां खपाया जाए. अधिक सप्लाई की वजह से कीमतों में गिरावट तय है.

मौजूदा सीजन में यानी 2017 के अक्टूबर महीने में चीनी की एक्स-फैक्ट्री कीमत 36-37 रुपये प्रति किलो थी और मई 2018 आते-आते यह 26-27 रुपये प्रति किलो हो गई. घटती कीमतों से मिलों का घाटा बढ़ता जा रहा है और वे किसानों को एसएपी (राज्य की ओर से सिफारिश की गई कीमतें) नहीं दे पा रही हैं.

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क्या 7000 करोड़ रुपये का पैकेज गन्ना किसानों के बकाये की समस्या खत्म करने के लिए काफी है?

देश भर में गन्ना किसानों का बकाया बढ़ कर 23,000 करोड़ रुपये हो चुका है (फोटो: pixabay)

2017-18 के सीजन के दौरान पूरे देश में गन्ना किसानों का बकाया बढ़ कर 23,000 करोड़ रुपये हो चुका है और इसमें से लगभग आधा से अधिक यूपी के किसानों का है. सरकार 7000 करोड़ रुपये का पैकेज लाएगी. इसमें से भी 1200 करोड़ रुपये चीनी का बफर स्टॉक बनाने और 4400 करोड़ रुपये गन्ने से एथनॉल प्रोडक्शन को बढ़ावा देने के लिए हैं ताकि किसानों के गन्ने के पेमेंट जल्द हो सके. एथेनॉल को पेट्रोल में मिलाया जाता है.

यूपी में शुगर मिलों पर गन्ना किसानों का लगभग 12,500 करोड़ रुपये बकाया है. इंडियन एक्सप्रेस के हरीश दामोदरन की एक रिपोर्ट के मुताबिक यूपी में चीनी मिलों ने 2017-18 में जून तक एसएपी पर 35,103.27 करोड़ रुपये का गन्ना खरीदा था. उन्हें 14 दिनों के अंदर 34,549.28 करोड़ रुपये गन्ना किसानों को अदा करने थे लेकिन अब तक सिर्फ 21,978.37 करोड़ रुपये का ही पेमेंट हुआ है. साफ है कि 12,570.91 करोड़ रुपये बकाया है. सरकार ने 7000 करोड़ रुपये का जो दिया है उसका एक हिस्सा एरियर भुगतान में जाएगा. जाहिर है गन्ना किसानों के बकाया भुगतान की समस्या बनी रहेगी.

क्या सरकार का गन्ना पैकेज फौरी समाधान है, स्थायी नहीं?

सरकार के पैकेज का एक हिस्सा गन्ना किसानों के बकाये को कम कर सकता है(फोटो: pixabay)

सरकार के पैकेज का एक हिस्सा गन्ना किसानों के बकाये को कम कर सकता है. कुछ महीनों में चीनी मिलों की बिक्री से जो पैसा आएगा, उससे भी किसानों को पेमेंट करने में थोड़ी आसानी होगी. इस साल अक्टूबर में जब शुगर सीजन शुरू होगा तब भी किसानों का 7500 करोड़ रुपये मिलों पर बाकी होंगे. हरीश दामोदरन के मुताबिक ओपनिंग स्टॉक 100 लाख टन होगा.

इसके अलावा इसमें 2018-19 में और 340 लाख टन चीनी जुड़ने की उम्मीद है. आप समझ सकते हैं कि बाजार में सरप्लस चीनी की क्या स्थिति होगी. ऐसे में चीनी मिलों को चीनी के दाम और कम मिल सकते हैं और उनके लिए किसानों को पेमेंट करना कठिन होगा.

क्या पैकेज गन्ना बेल्ट के वोटरों को साधने की कोशिश है?

देश में पांच करोड़ लोग शुगर इंडस्ट्री से जुड़े हैं (फोटो: iStock)

कैराना संसदीय क्षेत्र में ही छह चीनी मिले हैं और यहां किसानों का 800 करो़ड़ रुपये बकाया है. पूरे देश में शुगर इंडस्ट्री से पांच करोड़ लोग जुड़े हैं. यूपी के बाद सबसे ज्यादा लोकसभा सीटें महाराष्ट्र में हैं और यह भी बड़ा गन्ना उत्पादक राज्य है. ऐसे में मोदी सरकार चाहेगी कि गन्ना किसानों को संतुष्ट रखा जाए और हालात काबू से बाहर न जाएं. हालांकि विशेषज्ञों का कहना है कि गन्ना किसानों का असंतोष थमने वाला नहीं है क्योंकि  अगले सीजन में भी गन्ने की पैदावार खासी अच्छी रहेगी और मिलों पर बकाया भुगतान का दबाव बढ़ेगा घटेगा नहीं.

ये भी पढ़ें : गन्ना किसानों को सजा नहीं, मजा दिलाएगी चीनी की डुअल प्राइसिंग

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