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महाराष्ट्र और कर्नाटक के बीच सीमा विवाद (Karnataka-Maharashtra Border Row) गरमाता जा रहा है. दोनों राज्यों के बीच विवाद के केंद्र- कर्नाटक के बेलगावी में कन्नड़ रक्षण वेदिका संगठन के कार्यकर्ताओं ने महाराष्ट्र की गाड़ियों पर हमला कर तोड़फोड़ की है. बदले में उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाले शिवसेना गुट के कार्यकर्ताओं ने पुणे में कर्नाटक राज्य परिवहन की कम से कम 3 बसों पर "जय महाराष्ट्र" लिख दिया है.
महाराष्ट्र के डिप्टी सीएम फडणवीस ने इसके बाद कर्नाटक के सीएम बसवराज बोम्मई से फोन पर बात कर अपनी नाराजगी जाहिर की है और साथ ही केंद्र सरकार को स्थिति से अवगत कराया है. जबकि दूसरी तरफ NCP प्रमुख शरद पवार ने चेतावनी दी है कि अभी जो हो रहा है उसे 48 घंटे के अंदर बंद किया जाए नहीं तो वे महाराष्ट्र के नेताओं को साथ लेकर बेलगावी पहुंच जाएंगे.
कर्नाटक के साथ चल रहे सीमा विवाद के बीच, मंगलवार को महाराष्ट्र के दो मंत्रियों का प्रतिनिधिमंडल बेलगावी का दौरा करने वाला था. ये दोनों मंत्री बेलगावी स्थित महाराष्ट्र समर्थक संगठन, मध्यवर्ती महाराष्ट्र एकीकरण समिति द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में भाग लेने के लिए बेलगावी जाने वाले थे.
बता दें कि पिछले हफ्ते ही कर्नाटक के मुख्यमंत्री बोम्मई के कार्यालय ने अपने समकक्ष एकनाथ शिंदे के कार्यालय को पत्र लिखकर महाराष्ट्र के मंत्रियों से बेलगावी का दौरा नहीं करने का आग्रह किया था क्योंकि यह क्षेत्र के निवासियों को भड़का सकता है.
सोमवार को मीडिया को दिए एक बयान में, बोम्मई ने कहा कि पुलिस को राज्य में उत्पन्न होने वाली किसी भी कानून व्यवस्था की स्थिति के लिए सतर्क रहने का निर्देश दिया गया है. उन्होंने यह भी कहा कि अगर उन्होंने राज्य में प्रवेश करने की कोशिश की तो उनके खिलाफ उचित कानूनी कार्रवाई शुरू की जाएगी.
हालांकि अब बेलगावी में महाराष्ट्र की गाड़ियों पर हुई हिंसा ने मामले को और भड़का दिया है. इसपर प्रतिक्रिया देते हुए एनसीपी प्रमुख शरद पवार ने कहा कि "महाराष्ट्र ने अबतक धैर्य रखा है लेकिन इसकी भी सीमा है. अगर महाराष्ट्र के वाहनों पर हमले 24 घंटे में नहीं रुके तो जो कुछ भी होगा उसके लिए कर्नाटक के मुख्यमंत्री जिम्मेदारी होंगे. महाराष्ट्र के लोगों ने संयम दिखाया है. लेकिन अगर कर्नाटक के मुख्यमंत्री भड़काऊ बयान देने जा रहे हैं, तो केंद्र को हस्तक्षेप करना चाहिए." उन्होंने कहा है कि महाराष्ट्र की ओर से कोई भी फैसला लेने से पहले सीएम शिंदे को सभी पार्टियों से बात करनी चाहिए.
आज से लगभग 6 दशक से भी पहले भाषाई आधार पर राज्यों के पुनर्गठन के बाद सीमा विवाद शुरू हुआ. 1956 में संसद द्वारा 'राज्य पुनर्गठन अधिनियम' पारित किए जाने के बाद से ही महाराष्ट्र और कर्नाटक में राज्य की सीमा से लगे कुछ कस्बों और गांवों को शामिल करने पर विवाद हुआ.
1 नवंबर, 1956 को मैसूर राज्य (जिसे बाद में कर्नाटक नाम दिया गया) का गठन किया गया और इसके साथ ही पड़ोसी बॉम्बे राज्य (बाद में महाराष्ट्र) के बीच मतभेद उभर आए. महाराष्ट्र का मानना था कि कर्नाटक के उत्तर-पश्चिमी जिले, बेलगावी को महाराष्ट्र का हिस्सा होना चाहिए. इसके कारण एक दशक लंबा हिंसक आंदोलन शुरू हुआ और महाराष्ट्र एकीकरण समिति (MES) का गठन हुआ.
इस रिपोर्ट को 1970 में संसद में भी पेश किया गया था, लेकिन न इसपर चर्चा हुई और न ही कोई कानून पास हुआ. सिफारिशों को लागू न करने की स्थिति में, मराठी भाषी क्षेत्रों को महाराष्ट्र और कन्नड़ भाषी क्षेत्रों को कर्नाटक का हिस्सा बनाने की मांग बढ़ती रही.
मामला फिर 2007 में गरमाया जब कर्नाटक ने बेलगावी पर अपना नियंत्रण स्थापित करने के लिए विधान सभा का निर्माण शुरू किया. इसका उद्घाटन 2012 में किया गया था, और यहां कर्नाटक विधानसभा के शीतकालीन सत्र आयोजित किए जाते हैं. हर साल शीतकालीन सत्र के समय सीमा विवाद गरमाता है.
महाराष्ट्र ने साल 2004 में 1956 के राज्य पुनर्गठन अधिनियम को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. महाराष्ट्र ने कर्नाटक के पांच जिलों के 865 गांवों और कस्बों को राज्य में मिलाने की मांग की थी.
दोनों राज्यों और केंद्र में बीजेपी की सरकार है और गहराते सीमा विवाद ने पार्टी के आलाकमान के सामने चुनौती पेश की है. महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे से लेकर शरद पवार एकनाथ शिंदे-फडणवीस पर हमलावर हैं. कर्नाटक में भी अगले साल चुनाव होने हैं और यहां का बीजेपी यूनिट और सीएम बोम्मई सीमा विवाद के विषय पर कमजोर नहीं दिखना चाहते.
सीमा विवाद का असर कर्नाटक के 6-7 विधानसभा सीटों पर देखने को मिल सकता है. हाल के दशकों में महाराष्ट्र एकीकरण समिति की राजनीतिक ताकत कम हुई है और इसका फायदा बीजेपी को मिला है. लेकिन अब उसे उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना का साथ मिला है और अगर सीमा विवाद चुनाव तक गरमाया रहता है तो वह बीजेपी को बड़ा डेंट दे सकती है.
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