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लोकसभा चुनाव: फॉर्म 17C क्या है, आखिर क्यों उठ रही इसे सार्वजनिक करने की मांग- ये क्यों जरूरी?

Lok Sabha Election 2024: फॉर्म 17-सी का डेटा सार्वजनिक करने से चुनाव आयोग का इनकार.

मोहन कुमार
कुंजी
Updated:
<div class="paragraphs"><p>लोकसभा चुनाव: फॉर्म 17C क्या है?</p></div>
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लोकसभा चुनाव: फॉर्म 17C क्या है?

(फोटो: क्विंट हिंदी)

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लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Election 2024) के बीच वोटिंग के आंकड़ों को लेकर लगातार सवाल उठाए जा रहे हैं. क्यों वोटिंग के आंकड़े चुनाव खत्म होने के कई-कई दिन बाद जारी हो रहे हैं. राजनीतिक दल बार-बार कह रहे हैं कि चुनाव के दिन वोटिंग का प्रतिशत कुछ और, और एक हफ्ते बाद कुछ और कैसे हो सकता है? इसी बीच फॉर्म 17C (Form 17C) की चर्चा खूब हो रही है. ADR इसको लेकर सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई, वहीं चुनाव आयोग ने फॉर्म 17-सी के डाटा को सार्वजनिक करने से इनकार कर दिया है.

अब आपके मन में भी सवाल होगा कि आखिर ये फॉर्म 17 है क्या? इसे लेकर इतना बवाल क्यों है? चलिए आपको बताते हैं कि ये पूरा मामला क्या है? लोकसभा चुनाव के दौरान फॉर्म 17C और 17A को लेकर क्यों चर्चा हो रही है? ये दोनों फॉर्म क्या हैं और इससे क्या होता है? वोटिंग प्रक्रिया में पारदर्शिता के लिए ये क्यों महत्वपूर्ण हैं?

क्या है पूरा मामला?

चुनाव आयोग की ओर से जारी वोटिंग के आंकड़ों पर आपत्ति जताते हुए ADR ने सुप्रीम कोर्ट में 9 मई को एक याचिका दायर की थी. याचिका में चुनाव आयोग से “2024 लोकसभा चुनाव के प्रत्येक चरण की वोटिंग के बाद मतदान केन्द्रवार फॉर्म 17C भाग-I में दर्ज आंकड़े और निर्वाचन क्षेत्रवार वोटिंग के आंकड़े" जारी करने की मांग की है.

इसके साथ ही याचिका में चुनाव आयोग की वेबसाइट पर फॉर्म 17C भाग-II की स्कैन की गई कॉपियां भी अपलोड करने की अपील की गई है, जिसमें 2024 के लोकसभा चुनावों के परिणामों के संकलन के बाद उम्मीदवार-वार मतगणना का परिणाम शामिल हो.

17 मई 2024 को इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई. चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने चुनाव आयोग को 24 मई तक जवाब दाखिल करने का आदेश दिया.

सुनवाई के दौरान ADR की ओर से पेश हुए वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि चुनाव बूथ पर मौजूद हर मतदान अधिकारी को फॉर्म 17सी भरकर रिटर्निंग ऑफिसर को जमा करना होता है. इस फॉर्म में मतदान के वास्तविक आंकड़े होते हैं, जिसे चुनाव आयोग द्वारा अपलोड किया जाना आवश्यक है.

22 मई को चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में अपना जवाब दाखिल करते हुए कहा कि फॉर्म 17C (मतदान का रिकॉर्ड) को वेबसाइट पर अपलोड करने से गड़बड़ी हो सकती है, तस्वीरों के साथ छेड़छाड़ की संभावना है, जिससे "व्यापक असुविधा और अविश्वास" पैदा हो सकता है.

फॉर्म 17C क्या है? 

चुनाव संचालन नियम, 1961 के अनुसार, दो फॉर्म हैं जिनमें निर्वाचकों और मतदाताओं की संख्या का डाटा होता है- फॉर्म 17A और 17C.

फॉर्म 17A- मतदाताओं का रजिस्टर है, जिसमें पोलिंग ऑफिसर बूथ पर आने वाले प्रत्येक मतदाता का डिटेल दर्ज करता है. वहीं फॉर्म 17C दर्ज डाले गए वोटों का लेखा-जोखा होता है.

वोटिंग खत्म होने के बाद सभी उम्मीदवारों को उनके पोलिंग एजेंटों के जरिए फॉर्म 17C उपलब्ध कराया जाता है. फॉर्म 17C में एक बूथ पर कुल रजिस्टर्ड वोटर्स और उनमें से कितनों ने वोट किया इसकी जानकारी होती है. यह जानकारी वोटर टर्नआउट ऐप पर उपलब्ध नहीं होती है.

फॉर्म 17C में भी दो भाग होते हैं. पहले भाग में दर्ज वोटों का हिसाब होता है तो वहीं दूसरे भाग में गिनती का नतीजा होता है.

पहला भाग वोटिंग के दिन बाद में भरा जाता है. इसमें बूथ पर इस्तेमाल की जाने वाली EVM का ID नंबर होता है. बूथ पर आवंटित मतदाताओं की कुल संख्या, मतदाता रजिस्टर (फॉर्म 17A) में दर्ज मतदाताओं की कुल संख्या, वैसे मतदाताओं की संख्या जिन्होंने हस्ताक्षर करने के बाद वोट नहीं दिया, कितने लोगों को वोट नहीं करने दिया गया, कितने टेस्टिंग वोट हटाए जाने हैं और प्रति वोटिंग मशीन में दर्ज कुल वोटों की जानकारी होती है.

इस फॉर्म के दूसरे भाग में फाइनल नतीजा होता है, जो काउंटिंग के दिन भरा जाता है.

फॉर्म 17C क्यों जरूरी है?

चुनाव संचालन नियम, 1961 के नियम 49S के मुताबिक, हर बूथ के पोलिंग ऑफिसर का दायित्व होता है कि हर EVM में कितने वोट पड़े, उसका रिकॉर्ड रखना. हर पार्टी का पोलिंग एजेंट पोलिंग ऑफिसर से इस डाटा की मांग कर सकता है. और पोलिंग ऑफिसर द्वारा यह डाटा फॉर्म 17C में उनके हस्ताक्षर के साथ देना अनिवार्य है.

चुनावों में किसी प्रकार की धांधली, वोगस वोटिंग या फिर EVM से छेड़छाड़ रोकने के लिए फॉर्म 17C जरूरी होता है.

जानकारों के मुताबिक, फॉर्म 17C के जरिए बैलटिंग यूनिट (BU), कंट्रोल यूनिट (CU) और VVPAT सीरियल नंबर में हेरफेर को चुनावी याचिका दायर कर चुनौती दी जा सकती है. वहीं फॉर्म 17C नहीं होने पर कोर्ट का रास्ता बंद हो सकता है.

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लोकसभा चुनाव: वोटिंग को लेकर क्या सवाल उठ रहे हैं?

कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने 6 मई को चुनाव आयोग द्वारा जारी वोटिंग के आंकड़ों में कथित गड़बड़ी और रजिस्टर्ड मतदाताओं की सूची प्रकाशित नहीं करने के संबंध में इंडिया गठबंधन के नेताओं को एक पत्र लिखा था. इस पत्र में उन्होंने लोकसभा चुनाव के पहले और दूसरे चरण के वोटिंग के आंकड़ों को देरी से जारी करने को लेकर सवाल उठाए थे.

खड़गे ने पूछा था कि मतदान खत्म होने के बाद और 30 अप्रैल को जारी फाइनल आंकड़ों के बीच पहले चरण के मतदान प्रतिशत में 5.5 प्रतिशत अंकों और दूसरे चरण के वोटिंग में 5.74 प्रतिशत अंकों की बढ़ोतरी कैसे हुई?

6 मई को मल्लिकार्जुन खड़गे द्वारा लिखे गए पत्र का एक हिस्सा

(फोटो: X)

हालांकि, चुनाव आयोग (ECI) ने शुक्रवार, 10 मई को कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के आरोपों का खंडन किया था.

वोटिंग के आंकड़ों में कितना अंतर?

19 अप्रैल को शाम 7.55 बजे जारी एक आधिकारिक प्रेस रिलीज में, ECI ने कहा कि जिन निर्वाचन क्षेत्रों में पहले चरण में वोट डाले गए थे, वहां मतदान “शाम 7 बजे तक 60% से अधिक था”.

प्रेस रिलीज में कहा गया कि मतदान केंद्रों से रिपोर्ट आने के बाद अंतिम आंकड़ा अधिक होने की संभावना है, जहां मतदान शाम 6 बजे के निर्धारित कट-ऑफ के बाद भी जारी रहा, ताकि मतदान केंद्रों में पहले से प्रवेश कर चुके मतदाताओं को मतदान करने का मौका मिल सके.

वहीं 26 अप्रैल को दूसरे चरण की वोटिंग के बाद रात 9 बजे जारी चुनाव आयोग की प्रेस रिलीज में बताया गया कि शाम 7 बजे तक 60.96% मतदान हुआ था.

7 मई को तीसरे चरण की वोटिंग के बाद चुनाव आयोग ने सबसे पहले रात 8 बजे 61.45% मतदान का अनुमान जारी किया और फिर रात 11.40 बजे इसे संशोधित कर 64.4% कर दिया. अगले दिन मतदान का यह आंकड़ा 65.68% पर अपडेट किया गया. वहीं 11 मई को आयोग की ओर से जारी फाइनल आंकड़े में बदलाव नहीं हुआ.

13 मई को चुनाव आयोग ने चौथ चरण की वोटिंग के बाद रात 11:45 बजे प्रेस रिलीज जारी कर बताया कि लगभग 67.25% मतदान हुआ है. इसके बाद 17 मई को आयोग ने प्रेस रिलीज जारी कर बताया कि चौथे चरण में 96 सीटों पर 69.16% मतदान दर्ज किया गया है.

वोटिंग के आंकड़ों पर सवाल उठने के क्या कोई और कारण भी हैं?

वोटिंग खत्म होने और फाइनल आंकड़े प्रकाशित होने में देरी की वजह से भी प्रक्रिया पर सवाल उठ रहे हैं. जानकारों का कहना है कि पहले वोटिंग खत्म होने 24 घंटे के भीतर फाइनल आंकड़े प्रकाशित किए जाते रहे हैं. लेकिन इस बार पहले फेज में 11 दिन और दूसरे, तीसरे और चौथे फेज में 4 दिन की देरी से सवाल खड़े हुए हैं.

2019 लोकसभा चुनाव तक मतदान का एकदम सटीक नंबर जारी किया जाता रहा है. लेकिन इस बार आयोग की ओर से मतदान प्रतिशत बताया जा रहा है, जिससे भी लोगों में संदेह पैदा हो रहा है.

2019 लोकसभा चुनाव से जुड़े आंकड़े

(फोटो: X/@poonamjourno)

2024 लोकसभा चुनाव से जुड़े आंकड़े

(सोर्स: ECI)

शुरुआती और अंतिम आंकड़ों में अंतर क्यों है?

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, चुनाव आयोग का कहना है कि शुरुआती आंकड़ा एक प्रारंभिक अनुमान होता है, जो बदलता रहता है. चुनाव आयोग के अधिकारियों का कहना है कि बढ़े हुए अंतिम आंकड़े का मतलब यह नहीं है कि वोटिंग खत्म होने के बाद भी वोट डाले गए थे. ऐसा इसलिए भी हो सकता है क्योंकि रिटर्निंग ऑफिसर (RO) ने अपडेट किया गया डाटा देरी से भेजा हो.

ECI के अधिकारियों के मुताबिक, 30 अप्रैल को जारी किया गया डेटा भी फाइनल नहीं है- यह आंकड़ा मतगणना के दिन (4 जून) डाक मतपत्रों की गिनती होने और मतदान प्रतिशत में जोड़े जाने के बाद ही पता चलेगा.

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Published: 23 May 2024,08:20 AM IST

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