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'हिंदी में मेडिकल या देवनागरी में?' MBBS कोर्स में क्या बदला, क्या सवाल उठ रहे?

MBBS की पढ़ाई हिंदी में होने से क्या बदलेगा? एक्सपर्ट्स क्या कह रहे?

आकांक्षा सिंह
कुंजी
Published:
<div class="paragraphs"><p>MBBS की पढ़ाई हिंदी में होने से क्या बदलेगा? आलोचक क्या कह रहे?</p></div>
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MBBS की पढ़ाई हिंदी में होने से क्या बदलेगा? आलोचक क्या कह रहे?

(फोटो: ट्विटर)

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मध्य प्रदेश भारत का पहला राज्य बन गया है जहां अब मेडिकल की पढ़ाई हिंदी में की जाएगी. MBBS की पढ़ाई के लिए केंद्रीय मंत्री अमित शाह ने हिंदी में तीन किताबें भी लॉन्च की हैं. ये तीन किताबें हैं- बायोकेमेस्ट्री, एनाटॉमी और मेडिकल फिजियोलॉजी. रिपोर्ट्स के मुताबिक, भोपाल के गांधी मेडिकल कॉलेज में पिछले 232 दिनों से 97 विशेषज्ञों की टीम किताबें तैयार करने में जुटी हैं.

हिंदी में मेडिकल की पढ़ाई से क्या-क्या बदलेगा? क्या किताबों में टेक्निटल शब्दों का भी हिंदी में ट्रांसलेशन किया गया है? इसपर मेडिकल एक्सपर्ट्स का क्या कहना है?

CM, PM ने हिंदी मेडिकल स्टडी पर क्या कहा?

मध्य प्रदेश के शिवराज सिंह चौहान ने हिंदी किताबें लॉन्च करते हुए कहा, "मैं जानता हूं कि हिंदी के माध्यम के बच्चे मेडिकल में एडमिशन प्राप्त कर लेते थे, लेकिन अंग्रेजी ठीक से न जानने के कारण उन्हें पढ़ाई कई बार बीच में छोड़नी पड़ती थी. गरीब और कमजोर परिवारों के बच्चे जो अंग्रेजी में तेज नहीं थे, उन्हें मेडिकल की पढ़ाई से वंचित होना पड़ता था. ऐसी प्रतिभाएं कुंठित हो जाती थीं और उज्ज्वल भविष्य बनने से रह जाता था. अब ऐसी बाधाएं नहीं रहेंगी."

"मेडिकल शिक्षा के क्षेत्र में हुआ ये शुभारंभ देश में एक बड़ा सकारात्मक बदलाव लाने वाला है. इससे लाखों विद्यार्थी जहां अपनी भाषा में पढ़ाई कर सकेंगे, वहीं उनके लिए अवसरों के भी अनेक द्वार खुलेंगे."
पीएम मोदी

मेडिकल की पढ़ाई हिंदी में होने का मतलब?

गृहमंत्री ने कहा कि हिंदी में MBBS पढ़ाई नेशनल एजुकेशन पॉलिसी के तहत शुरू किया गया था और जल्द ही इसे अन्य भाषाओं में भी शुरू किया जाएगा. सरकार के इस कदम की कुछ डॉक्टरों ने तारीफ की है, तो कई एक्सपर्ट्स ने चिंता जाहिर की है.

जयपुर में मणिपाल अस्पताल में इंटरनल मेडिसिन में फिजिशियन, डॉ विपिन कुमार जैन ने क्विंट हिंदी से कहा कि सरकार के इस कदम से लंबे वक्त में फायदा हो सकता है, लेकिन पहले अच्छा ट्रांसलेशन करने की जरूरत है.

उन्होंने कहा, "मेडिकल किताबों का ट्रांसलेशन चीनी किताबों में भी है, रूसी किताबों में भी है, क्यों न हम इसे हिंदी में ट्रांसलेट करें, लेकिन ऐसा करने के लिए पहले पूरा स्ट्रक्चर तैयार कर अगर अच्छे से ट्रांसलेट कर स्टूडेंट्स के सामने रखें, तो अच्छा रहेगा. मुझे लगता है कि हिंदी ट्रांसलेशन लोगों और डॉक्टर्स के लिए सुलभ चीज होगी, लेकिन इस परिवर्तन को स्वीकार करने में समय लगेगा."

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"सवाल उठता है कि हिंदी की पढ़ाई के बाद क्या इंटरनेशनल स्टैंडर्ड मैच कर पाएंगे, तो मुझे लगता है कि हो सकता है कि शुरू में दिक्कत आए, और कई शोध संस्थान हमारे हिंदी को स्वीकार न करें और अंग्रेजी ट्रांसलेशन मांगें, तो हो सकता है कि शुरू में दिक्कत होगी, लेकिन अगर हमारे पेपर में अच्छी रिसर्च होगी, तो उन्हें स्वीकार करना पड़ेगा."
डॉ विपिन कुमार जैन, मणिपाल अस्पताल में इंटरनल मेडिसिन में फिजिशियन

फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया मेडिकल एसोसिएशन (FAIMA) का कहना है कि मेडिकल एजुकेशन को इंटरनेशनल गाइडलाइंस के बराबर होने के लिए कोई भ्रम पैदा नहीं करना जरूरी है. FAIMA के चीफ एडवाइजर, सुवरंकर दत्ता ने द इकनॉमिक टाइम्स से कहा, "मध्य प्रदेश में जो हिंदी किताबें आई हैं, हमने उनका अध्ययन किया है, और उनकी क्वालिटी विदेशी राइटर्स की किताबों से काफी नीचे है. इसलिए, हमें नहीं लगता कि ये एक अच्छा फैसला है."

दिल्ली मेडिकल काउंसिल के अध्यक्ष, अरुण गुप्ता ने पब्लिकेशन से कहा, "अभी जो कवायद की जा रही है, वो सिर्फ अंग्रेजी शब्दों का देवनागरी लिपि में अनुवाद करना है, जो एक बेकार की कवायद है."

वहीं, शिक्षा मंत्रालय के तहत भारतीय भाषाओं को बढ़ावा देने वाली कमेटी के अध्यक्ष चामू कृष्ण शास्त्री ने सरकार के कदम की तारीफ की है. उन्होंने कहा, "हमारे देश की 90 फीसदी आबादी अंग्रेजी नहीं जानती. आलोचक इंटरनेशनल स्टैंडर्ड पर सवाल उठा रहे हैं. क्या ये स्टैंडर्ड जापान और जर्मनी जैसे देशों पर लागू नहीं होते, जो अपनी भाषाओं में कोर्स ऑफर करते हैं."

शब्दों के ट्रांसलेशन पर उठ रहे सवाल?

मेडिकल शब्दों के हिंदी शब्द ढूंढना आसान काम नहीं है. इसलिए ही शायद सरकार ने भी आसान रास्ता चुन कर 'Anatomy' को 'एनाटॉमी' कर दिया है. सरकार की तरफ से जारी किताबों के कवर पर अंग्रेजी के शब्द मात्र देवनागरी में लिखे हुए दिख रहे हैं. अभी तक की जानकारी के मुताबिक, किताबों के अंदर भी शब्दों को हिंदी में ट्रांसलेट न कर, बस उसे देवनागरी लिपि में लिख दिया गया.

कई ट्विटर यूजर्स ने सरकार पर तंज कसते हुए इसपर सवाल उठाया है. कई लोगों का कहना है कि अंग्रेजी शब्दों को मात्र देवनागरी में लिख देने से कितने बच्चों को फायदा पहुंचेगा. कई ने ये भी कहा कि इससे केवल कंफ्यूजन पैदा होगी.

डॉ विपिन कुमार जैन ने भी इस मामले पर कहा कि ट्रांसलेशन अभी अच्छे से नहीं किया गया है. उन्होंने कहा कि किताबों को अच्छे से ट्रांसलेट कर मार्केट में लाया जाए, ताकि डॉक्टरों को पढ़ने और समझने में आसानी हो. उन्होंने कहा, "हिंदी ट्रांसलेशन अगर अच्छे से किया जाए, तो हिंदी भाषा का प्रचार-प्रसार भी होगा, और हम दुनिया में खुद को स्थापित कर पाएंगे कि हमारे यहां मेडिकल स्टडी हिंदी में होती है."

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