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किसानों के दिल्ली चलो मार्च (Farmers' Dilli Chalo March) का बुधवार, 14 फरवरी को दूसरा दिन था. किसान पंजाब-हरियाणा के बीच अंबाला में शंभू बॉर्डर (Sambhu Border) पर डटे हुए हैं. शंभू बॉर्डर पर लगातार दूसरे दिन किसान और सुरक्षाकर्मियों के बीच टकराव की खबरें आईं. बुधवार को भी पुलिस की ओर से आंसू गैंस के गोले दागे गए.
200 से अधिक किसान यूनियन कर्ज माफी के साथ ही कृषि कानूनों का विरोध करने वालों के खिलाफ आपराधिक मामले हटाने की भी मांग कर रहे हैं.
चलिए आपको बताते हैं कि MSP क्या है? इससे किसानों को वास्तव में क्या फायदा होगा?
न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) विशेष फसलों के लिए किसानों को मिलने वाली एक सुरक्षा व्यवस्था है. इसके तहत सरकार परिस्थितियों में किसी भी बदलाव की परवाह किए बगैर किसानों को विशेष फसलों पर न्यूनतम मूल्य देती है.
अगर इन फसलों की बाजार कीमतें MSP से नीचे आ जाती हैं, तो सरकार किसानों की उपज को MSP पर खरीदती है, जिससे उन्हें होने वाले नुकसान से बचाया जा सके.
न्यूज18 के मुताबिक, केंद्र इस प्रणाली के तहत भारत में उत्पादित गेहूं और चावल का लगभग 30 प्रतिशत और अन्य फसलों का लगभग 6-7 प्रतिशत MSP पर खरीदता है.
केंद्र सरकार कृषि लागत और मूल्य आयोग (CACP) की सिफारिश के आधार पर प्रत्येक सीजन की शुरुआत में कुछ फसलों के लिए MSP निर्धारित करती है.
MSP निर्धारित करने के लिए लागतों की तीन श्रेणियों के मूल्यांकन की आवश्यकता होती है:
A2: किसानों द्वारा बीज, उर्वरक, कीटनाशक, सिंचाई, लेबर कॉस्ट आदि का वास्तविक खर्च.
A2+FL: A2 लागत के साथ-साथ अवैतनिक पारिवारिक श्रम की लागत को शामिल किया जाता है. (पारंपरिक भारतीय कृषि पद्धतियों में परिवार शामिल होते हैं).
C2: यह एक अधिक व्यापक अवधारणा है, इसमें A2+FL के साथ-साथ किसान की स्वामित्त्व वाली जमीन और अचल संपत्ति के किराए और ब्याज को भी शामिल किया जाता है.
MSP प्रत्येक फसल के लिए C2 से ऊपर एक विशेष स्तर पर निर्धारित किया जाता है और पूरे देश में लागू होता है. मौजूदा C2 स्तर के अलावा, CACP मांग और आपूर्ति, घरेलू और अंतरराष्ट्रीय मूल्य रुझान, अंतर-फसल मूल्य समानता और फसल के उपभोक्ताओं पर MSP के संभावित प्रभाव को भी ध्यान में रखता है.
इसे आम तौर पर C2 स्तर से कम से कम 50 प्रतिशत पर सेट किया जाना चाहिए.
नहीं, केंद्र सरकार वर्तमान में CACP सिफारिशों के आधार पर 23 फसलों के लिए MSP निर्धारित करती है:
7 अनाज: धान, गेहूं, मक्का, ज्वार, बाजरा, जौ और रागी
5 दालें: चना, अरहर, मूंग, उड़द, मसूर
7 तिलहन: मूंगफली, रेपसीड-सरसों, सोयाबीन, सीसमम, सूरजमुखी, कुसुम, निगरसीड
4 व्यावसायिक फसलें: खोपरा, गन्ना, कपास और कच्चा जूट
आप वर्तमान MSP दर यहां देख सकते हैं.
1960 के दशक में जब हरित क्रांति शुरू हुई, तो भारत कमी को रोकने के लिए अपने खाद्य भंडार को बढ़ाने की कोशिश कर रहा था. 1966-67 में गेहूं के लिए के न्यूनतम समर्थन मूल्य साथ MSP प्रणाली की शुरुआत हुई. इसके जरिए यह सुनिश्चित करने की कोशिश की गई कि केंद्र के पास आवश्यक खाद्य फसलों का भंडार रहे, जिसे PDS प्रणाली के तहत गरीबों को रियायती दरों पर बेचा जा सके, साथ ही किसान संकट को दूर करने में भी मदद मिलेगी.
MSP की अवधारणा किसी भी कानून यानी संसद के अधिनियम में नहीं पाई जाती है, भले ही यह दशकों से मौजूद है. CACP के पूर्व अध्यक्ष अभिजीत सेन ने 2020 में इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में कहा,
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, CACP भी कोई वैधानिक निकाय नहीं है, बल्कि कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय का ही एक हिस्सा है. इसका मतलब यह है कि सरकार के लिए MSP पर फसल खरीदने की कोई कानूनी बाध्यता नहीं है और इसे निजी व्यापारियों पर भी नहीं थोपा जा सकता है.
CACP ने 2018 में MSP के लिए एक कानून की सिफारिश की थी, जो किसानों को MSP पर अपनी फसल बेचने का अधिकार देता. हालांकि, केंद्र ने इस सिफारिश को स्वीकार नहीं किया.
आवश्यक वस्तु अधिनियम के तहत एक कार्यकारी आदेश के कारण गन्ना किसान कानून के तहत MSP के हकदार हैं.
2015 की शांता कुमार समिति ने पाया कि मात्र 6 प्रतिशत किसान ही वास्तव में अपनी फसलें MSP दरों पर बेचते हैं. ऐसा इसलिए है क्योंकि सरकार द्वारा MSP पर खरीद एक समान तरीके से नहीं होती है.
PDS प्रणाली के लिए उनके महत्व को देखते हुए, MSP के तहत सरकारी खरीद केवल गेहूं और चावल के लिए बड़े पैमाने पर की जाती है. राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम 2013 के तहत सरकार पर यह सुनिश्चित करने का दायित्व है कि PDS प्रणाली रियायती दर पर अनाज प्रदान करे, इसलिए यह मांग है.
इससे यह भी पता चलता है कि पंजाब और हरियाणा के किसान सबसे ज्यादा विरोध प्रदर्शन क्यों कर रहे हैं.
MSP प्रणाली के तहत खरीदे गए चावल का 50 प्रतिशत हिस्सा पंजाब, हरियाणा और आंध्र प्रदेश का है. अन्य राज्यों, जैसे कि पश्चिम बंगाल, जहां उत्पादन और खपत अधिक है, लेकिन वहां के किसानों को MSP का लाभ नहीं मिल पाता है. वहीं MSP प्रणाली के तहत गेहूं की सबसे ज्यादा खरीद पंजाब, हरियाणा और मध्य प्रदेश से होती है.
हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट में 2012-13 के राष्ट्रीय सैंपल सर्वे के आंकड़ों के हवाले से कहा गया है कि, केवल 13.5 प्रतिशत धान किसानों को वास्तव में MSP प्रणाली से लाभ हुआ, और भारत में सभी धान किसानों में से केवल 16.2 प्रतिशत ने इसका लाभ उठाया. केवल 32.2 प्रतिशत धान किसानों को इस प्रणाली के बारे में जानकारी थी, वहीं 39.2 प्रतिशत गेहूं किसान इसके बारे में जानते थे.
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