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क्या सुलझ गया भारत में ज्यादा आबादी का मसला?प्रजनन दर का नया डेटा तो यही कहता है

देश का फर्टिलिटी रेट 2.2 (2015-2016) से घटकर 2 (2019-2021) हो गया है.

क्विंट हिंदी
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<div class="paragraphs"><p>NFHS-5 जारी</p></div>
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NFHS-5 जारी

(फोटो: क्विंट हिंदी)

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भारत में हमेशा जनसंख्या को एक बड़ी समस्या बताया गया है, लेकिन अब जो नए आंकड़े सामने आ रहे हैं वो बता रहे हैं कि शायद अब समस्या सुलझ गई है. नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे (NFHS) 5 के आंकड़ों में सामने आया है कि देश में टोटल फर्टिलिटी रेट (कुल प्रजनन दर - TFR) में गिरावट आई है. देश का फर्टिलिटी रेट 2.2 से घटकर 2 हो गया है. NFHS-5 में गर्भ-निरोधक के बढ़ते इस्तेमाल और पुरुषों की तुलना में ज्यादा महिलाओं को लेकर भी परिणाम सामने आए हैं.

नीति आयोग के सदस्य डॉ. विनोद कुमार पॉल और केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय सचिव राजेश भूषण ने 14 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों के लिए जनसंख्या, फर्टिलिटी और चाइल्ड हेल्थ, फैमिली वेलफेयर, पोषण और अन्य पर प्रमुख बिन्दुओं की फैक्टशीट जारी की है.

भारत में TRF और इसका मतलब?

देश का फर्टिलिटी रेट 2.2 (2015-2016) से घटकर 2 (2019-2021) हो गया है. भारत में सिक्किम में 1.1 की दर से सबसे कम फर्टिलिटी रेट वाला प्रदेश बना है, वहीं केरल और तमिलनाडु में इसमें मामूली बढ़ोतरी दर्ज की गई है.

पांचवें NFHS 2019-21 के आंकड़ों के मुताबिक, शहरी क्षेत्रों में फर्टिलिटी 1.6 प्रतिशत और ग्रामीण भारत में 2.1 प्रतिशत है.

इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर पॉपुलेशन साइंसेज के डायरेक्टर डॉ केएस जेम्स, जो NFHS -5 का संचालन करने के लिए नामित नोडल एजेंसी है, ने द इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि TFR 2 देश में लंबी अवधि में जनसंख्या की स्थिरता का एक संकेत है. उन्होंने कहा, "नंबर का मतलब है कि दो माता-पिता दो बच्चों की जगह ले रहे हैं. TRF 2 एक ऐसी चीज है जिसे एक देश हासिल करना चाहता है. इस तरह, ये मां और बच्चे के स्वास्थ्य सुधार के कारण एक बहुत बड़ा विकास है."

पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष प्रोफेसर, के श्रीनाथ रेड्डी ने कहा है, "देश का लक्ष्य था 2.1 TFR पाना. 2 पर गिरने का मतलब है कि हमने जनसंख्या स्थिरता के अपने लक्ष्य को हासिल कर लिया है. इसका मतलब है कि हम संभवतः अभी भी दुनिया में सबसे अधिक आबादी वाला देश बन जाएंगे - इसकी उम्मीद 2024-2028 के बीच थी - लेकिन अब इसमें देरी होगी. इसका मतलब है कि हमें इस बात की चिंता करने की जरूरत नहीं है कि एक बहुत बड़ी आबादी हमारे विकास के लिए एक चुनौती है."

नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे के मुताबिक, देश में पांच राज्य ऐसे हैं, जिनका TFR 2 से ऊपर है. ये राज्य हैं:

  • बिहार - 3

  • मेघायलट - 2.9

  • उत्तर प्रदेश - 2.4

  • झारखंड - 2.3

  • मणिपुर - 2.2

दो राज्यों - मध्य प्रदेश और राजस्थान का TFR राष्ट्रीय औसत जितना रहा. पश्चिम बंगाल और महाराष्ट्र का TFR 1.6 दर्ज किया गया.

इन राज्यों का TFR 1.7 दर्ज किया गया- कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, नागालैंड और त्रिपुरा.

इन राज्यों का TFR 1.8 दर्ज किया गया- केरल, तमिलनाडु, तेलंगाना, अरुणाचल प्रदेश, छत्तीसगढ़ और ओडिशा.

इन राज्यों का TFR 1.9 दर्ज किया गया- हरियाणा, असम, गुजरात, उत्तराखंड और मिजोरम.

पॉपुलेशन फाउंडेशन ऑफ इंडिया (PFI) ने TFR रेट का स्वागत करते हुए एक बयान में कहा, "ये देश के फैमिली प्लानिंग कार्यक्रम के लिए एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है, जिसमें कड़ी नीतियां शामिल नहीं हैं. ये निष्कर्ष जनसंख्या-विस्फोट मिथ को तोड़ते हैं और दिखाते हैं कि भारत को जनसंख्या नियंत्रण के कड़े उपायों से दूर रहना चाहिए."

PFI ने कहा कि महिलाओं में नसबंदी में वृद्धि से पता चलता है कि फैमिली प्लानिंग की जिम्मेदारी आज भी महिलाओं पर ज्यादा है.

बिलो रिप्लेसमेंट फर्टिलिटी क्या है?

बिलो रिप्लेसमेंट फर्टिलिटी (Below Replacement Fertility) - प्रति महिला 2.1 से कम बच्चे - का मतलब है कि एक पीढ़ी खुद को रिप्लेस करने के लिए पर्याप्त बच्चे पैदा नहीं कर रही है. आसान भाषा में कहें तो प्रजनन दर से ज्यादा मृत्यु दर की स्थिति. ऐसी स्थिति में जनसंख्या वृद्धि दर नकारात्मक रहती है, जिसके कारण आगे जनसंख्या में गिरावट देखी जाती है.

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घटते TRF के पीछे हैं कौन से कारण?

पिछले 5 सालों में भारत के अधिकतर राज्यों के TFR में गिरावट देखी गई है, खासकर शहरी महिलाओं में. इसके पीछे कई कारण हो सकते हैं. नौकरी, फैमिली प्लानिंग, फर्टिलिटी, शादी की उम्र जैसे कई कारण हैं, जो घटती TFR के पीछे हो सकते हैं.

गर्भ-निरोधक के इस्तेमाल में बढ़ोतरी

NFHS-5 से पता चलता है कि देश में गर्भ-निरोधक (contraceptive) का पहले की तुलना में ज्यादा इस्तेमाल हो रहा है. Overall Contraceptive Prevalence Rate (CPR) राष्ट्रीय स्तर पर 54% से बढ़कर 67% हो गया है. लगभग सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में गर्भ निरोधकों के आधुनिक तरीकों का उपयोग भी बढ़ा है. 2015-16 में 5.6 प्रतिशत की बजाय, अब 9.5 प्रतिश कॉन्डोम का इस्तेमाल किया जा रहा है.

पुरुषों की तुलना में महिलाएं ज्यादा

भारत में प्रति 1000 पुरुषों पर अब 1020 महिलाएं हैं. हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, 2005-06 में हुए NFHS-3 में प्रति 1000 पुरुषों पर बराबर 1000 महिलाएं थीं, 2015-16 में प्रति रेश्यो 991:1000 था. ये NFHS या सेंसस में पहली बार है, जब सेक्स रेश्यो महिलओं के पक्ष में है.

सर्वे की अन्य मुख्य बातें

  • 15-24 वर्ष की आयु की महिलाएं जो मेंस्ट्रुएशन (मासिक धर्म) के दौरान साफ तरीकों का इस्तेमाल करती हैं, उनकी संख्या 57.6 प्रतिशत से बढ़कर 77.3 प्रतिशत हो गई है.

  • 20-24 आयु वर्ग की महिलाओं (शहरी और ग्रामीण) की हिस्सेदारी, जिनकी 18 साल से पहले शादी हो गई, 26.8 प्रतिशत से घटकर 23.3 प्रतिशत हो गई है.

  • बैंक अकाउंट होल्डर्स महिलाओं की संख्या 53 प्रतिशत से बढ़कर 78.6 प्रतिशत हो गई है.

  • एनीमिया और मोटापा सभी उम्र के ग्रुप में चिंता का कारण बन रहे हैं. खासतौर से, रिप्रोडक्टिव उम्र की सभी महिलाओं में से 57 प्रतिशत एनीमिक हैं.

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