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सोमवार को चीन के शीन जिनपिंग सरकार ने एक बड़ा फैसला लेते हुए बताया कि अब उनके देश में कपल 3 बच्चे पैदा कर सकते हैं. इसके पहले 2016 में भी बीजिंग ने तेजी से बुजुर्ग होती आबादी से अर्थव्यवस्था के जोखिम को दूर करने के लिए अपने दशकों पुराने 'वन चाइल्ड पॉलिसी' को 'टू चाइल्ड पॉलिसी' में बदल दिया था.
हाल ही में लक्षद्वीप के प्रशासक प्रफुल पटेल ने पंचायत चुनाव लड़ने के लिए अधिकतम 2 बच्चे की सीमा रखने का प्रस्ताव लाया है. सवाल है कि क्या भारत की आर्थिक जरूरतों, घटते प्रजनन दर और चीन के अनुभव के बाद भारत में आबादी नियंत्रण के लिए किसी सख्ती की जरूरत है?
हाल ही में जारी चीन की जनगणना के अनुसार 2010 से 2020 के बीच वहां की औसत वार्षिक जनसंख्या वृद्धि दर कम होकर 0.53% हो गई जो कि पिछले दशक 2000-2010 के बीच 0.57% थी.इसका नतीजा हुआ कि चीनी जनसंख्या में बुजुर्गों (60 साल से ऊपर) का शेयर लगातार बढ़ता जा रहा है.चीन में 2010 में जहां कुल जनसंख्या में बुजुर्गों का शेयर 13.26% था वहीं 2020 में यह बढ़कर 18.7% हो गया. इसी का परिणाम है चीन में घटती वर्किंग ऐज पॉपुलेशन.
दूसरी तरफ पहले से बेहतर होती मेडिकल सुविधाओं के कारण भारत की जनसंख्या में भी बुजुर्गों का शेयर तो बढ़ा है लेकिन इतनी ज्यादा गति से नहीं कि इससे वर्किंग ऐज पॉपुलेशन पर नकारात्मक प्रभाव पड़े. यह हिस्सा 2001 में 7.4% से 2011 में 8.6% तक ही बढ़ा. और 2021 में भी इसके 10.1% तक ही बढ़ने का अनुमान है.
भारत में 2021-31 के बीच वर्किंग ऐज इज पॉपुलेशन के लगभग 97 लाख प्रति साल और 2031-41 के बीच लगभग 42 लाख प्रति साल बढ़ने का अनुमान है.
भारत में अभी प्रजनन दर 2.2 है. भारत में सख्त चाइल्ड पॉलिसी लाने के खिलाफ एक और तर्क है- लगातार घटती प्रजनन दर. पिछले 5 वर्षों में भारत के अधिकतर राज्यों के कुल प्रजनन दर(TFR) में गिरावट देखी गई है, विशेषकर शहरी महिलाओं में. यह तथ्य 13 दिसंबर 2020 को केंद्रीय स्वास्थ्य एवं जन कल्याण मंत्रालय द्वारा जारी लेटेस्ट नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे में सामने आया है.
इसके डेटा के अनुसार सिक्किम में सबसे कम TFR रिकॉर्ड किया गया ,जहां औसतन एक महिला 1.1 बच्चे को जन्म देती है.दूसरी तरफ बिहार में सबसे ज्यादा TFR रिकॉर्ड किया गया, जहां एक महिला औसतन 3 बच्चे को जन्म देती है. सर्वे किए गए 22 राज्यों में से 19 राज्यों में TFR "बिलो रिप्लेसमेंट फर्टिलिटी" पाया गया.
भारत में 1994 में 'इंटरनेशनल कॉन्फ्रेंस ऑन पॉपुलेशन एंड डेवलपमेंट डिक्लेरेशन' पर हस्ताक्षर किया है,यानी भारत ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय से यह प्रतिबद्धता जाहिर की है कि वह कपल्स के व्यक्तिगत अधिकारों का सम्मान करेगा कि वे स्वतंत्र रूप से कितना बच्चा पैदा करना चाहते हैं और अपने बच्चों के जन्म के बीच कितना अंतर रखना चाहते हैं. इसके अलावा भारत की राजनीतिक व्यवस्था भी चीन की तरह सख्त चाइल्ड पॉलिसी के अनुकूल नहीं है.
भारत में जनसंख्या वृद्धि पर नियंत्रण का पहला प्रयास नेहरू सरकार द्वारा 1951 में हुआ था जब उन्होंने लोगों को फैमिली साइज छोटा रखने के लिए जागरूकता फैलाने पर ध्यान दिया था. बाद में आपातकाल के दौरान इंदिरा गांधी सरकार ने 1970 के दशक में 'टू चाइल्ड पॉलिसी' को कठोरता से लागू करना शुरू किया.यह कारण रहा लोगों का उनके प्रति नाराजगी का. 1980 के दशक में भारत ने 'हम दो हमारे दो' के नारे के साथ मास कैंपेन शुरू करके बिना सख्त चाइल्ड पॉलिसी लाए प्रजनन दर को पहले से कम किया.
इसके विपरीत राज्य स्तर पर 'टू चाइल्ड पॉलिसी' का प्रयास किया जाता रहा है.
मुख्यतः स्थानीय पंचायत चुनाव लड़ने और राज्य सेवा में नियुक्ति के शर्त के रूप में कुछ राज्यों ने 'टू चाइल्ड पॉलिसी' लागू करने का प्रयास किया है.
सबसे जरूरी बात यह है कि 'टू चाइल्ड पॉलिसी' को लाना अगर संभव हो तब भी इसका मतलब यह नहीं कि यह व्यवहारिक भी होगा. भारत को वर्किंग ऐज पॉपुलेशन की सख्त जरूरत है.जनसंख्या वृद्धि पर नियंत्रण के लिए सख्त चाइल्ड पॉलिसी की जगह जागरूकता बढ़ाना ज्यादा व्यवहारिक है, जिससे अचानक से भारत की वर्किंग ऐज पॉपुलेशन पर बुजुर्ग आबादी का भार नहीं बढ़े. जरूरत है 'ह्यूमन' को 'ह्यूमन रिसोर्स' में बदलने की. इसके लिए युद्ध स्तर पर कौशल निर्माण के साथ-साथ नए रोजगारों के सृजन की जरूरत होगी.
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