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समलैंगिक विवाह (Same Sex Marriage) को कानूनी मान्यता देने का मामला सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में चल रहा है. इस मुद्दे को लेकर शीर्ष अदालत में कई दौर की सुनवाई हुई है. केंद्र सरकार इसका विरोध कर रही है. वहीं याचिकाकर्ताओं का कहना है कि समलैंगिकों की शादी को कानूनी मान्यता देने के लिए 1954 के स्पेशल मैरिज एक्ट (Special Marriage Act, 1954) में बदलाव जरूरी है. चलिए आपको बताते हैं कि आखिर स्पेशल मैरिज एक्ट (Special Marriage Act, 1954) है क्या? इसके किस प्रावधान को लेकर विवाद है? इसके साथ ही आपको स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत विवाह की पूरी प्रक्रिया भी समझाएंगे.
भारत में विवाह सबंधी अलग-अलग कानून हैं. शादियां हिंदू मैरिज एक्ट 1955, मुस्लिम मैरिज एक्ट 1954 या स्पेशल मैरिज एक्ट 1954 के तहत रजिस्टर की जाती हैं. स्पेशल मैरिज एक्ट, 1954 (Special Marriage Act, 1954) देश में रजिस्टर्ड मैरिज के लिए बना कानून है. इसे 1954 में लागू किया गया था. विशेष विवाह अधिनियम (SMA), 1954 विभिन्न धर्मों अथवा जातियों के लोगों के विवाह के लिए एक कानूनी ढांचा प्रदान करता है.
स्पेशल मैरिज एक्ट, 1954 के तहत दो अलग-अलग धर्मों और जातियों के लोग शादी कर सकते हैं. 9 अक्टूबर, 1954 को संसद द्वारा इस अधिनियम को पारित किया गया था. इस कानून के जरिए भारत के हर एक नारगिक को किसी भी धर्म या जाति में शादी करने का संवैधानिक अधिकार है. स्पेशल मैरिज के तहत लड़के की उम्र 21 साल और लड़की की उम्र 18 साल से ऊपर होनी चाहिए.
इसके साथ ही इस अधिनियम के तहत इन बातों का भी ध्यान रखना पड़ता है:
स्पेशल मैरिज एक्ट नियम के तहत किसी भी पक्ष का पहले से ही कोई जीवनसाथी नहीं होना चाहिए.
कोई भी पक्ष मानसिक तौर पर शादी के लिए जायज सहमति देने के लिए सक्षम होना चाहिए.
कोई भी पक्ष मानसिक रूप से पीड़ित ना हों जिससे वो विवाह के लिए अयोग्य हो जाए.
विशेष विवाह अधिनियम की धारा 5, 6, 7 के तहत कपल को शादी से 30 दिन पहले मैरिज रजिस्ट्रार के पास नोटिस देकर बताना होता है कि वो शादी करने वाले हैं. हालांकि, इस प्रक्रिया को https://www.onlinemarriageregistration.com/ पर ऑनलाइन भी किया जा सकता है.
नोटिस के विवरण में कपल का नाम, फोन नंबर, जन्म तिथि, उम्र, व्यवसाय, पता और उनकी पहचान संबंधी अन्य जानकारी शामिल होती है. अगर किसी को भी विवाह से कोई आपत्ति है, तो वह 30 दिन के अंदर अपनी शिकायत दर्ज करवा सकता है. अगर आपत्ति सही पाई जाती है तो विवाह अधिकारी शादी की अनुमति देने से मना कर सकता है. अगर आपत्ति नहीं होती है तो फिर शादी की प्रक्रिया शुरू होती है. शादी मैरिज रजिस्ट्रार के ऑफिस में होती है और इसके लिए तीन गवाहों की जरुरत पड़ती है.
स्पेशल मैरिज एक्ट पर्सनल लॉ जैसे- मुस्लिम विवाह अधिनियम, 1954 और हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 से अलग है. बता दें कि मुस्लिम विवाह अधिनियम, 1954 और हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 के तहत पति या पत्नी को विवाह से पहले दूसरे के धर्म में परिवर्तित होने की आवश्यकता होती है.
हालांकि, स्पेशल मैरिज एक्ट के अनुसार, एक बार विवाह करने के बाद, व्यक्ति को विरासत के अधिकार के संदर्भ में परिवार से अलग मान लिया जाता है.
समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने की मांग के बीच स्पेशल मैरिज एक्ट का मामला भी सुप्रीम कोर्ट में उठा है. याचिकाकर्ताओं का कहना है कि समलैंगिकों की शादी को कानूनी मान्यता देने के लिए 1954 के स्पेशल मैरिज एक्ट में बदलाव जरूरी है.
याचिकाकर्ताओं की ओर से कोर्ट में मांग की है कि स्पेशल मैरिज एक्ट में 'पुरुष और महिला की शादी' की बात कही गई है. इसमें 'पुरुष' और 'महिला' की जगह 'व्यक्ति' लिखा जाना चाहिए. स्पेशल मैरिज एक्ट को 'जेंडर न्यूट्रल' बनाया जाए.
स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत 30 दिनों के नोटिस के प्रावधान पर सवाल उठे हैं. समलैंगिक विवाह से जुड़ी याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत 30 दिनों का यह अनिवार्य नोटिस 'पितृसत्तात्मक' है. याचिकाकर्ताओं की ओर से सीनियर एडवोकेट डॉ. अभिषेक मनु सिंघवी ने इसे 'आपदा और हिंसा को निमंत्रण' बताया. CJI डी वाई चंद्रचूड़ ने कहा कि "यह उन्हें (जोड़ों को) एसपी, जिला मजिस्ट्रेट आदि सहित समाज की तरफ से आक्रमण के लिए खुला रखने जैसा है.
वहीं 2017 में महाराष्ट्र सरकार ने अंतर-जातीय और अंतर-धार्मिक विवाहों को बढ़ावा देने के लिए सीएम थुल की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया था. समिति के सदस्य अविनाश पाटिल ने जोर देकर कहा था कि जोड़ों की सुरक्षा के लिए शादी के नोटिस के समय को 30 दिन से कम करना जरूरी है.
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