Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Explainers Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019क्या है जीरो बजट फार्मिंग? जानिए,कैसे करेगी किसानों की आय दोगुना

क्या है जीरो बजट फार्मिंग? जानिए,कैसे करेगी किसानों की आय दोगुना

इस खेती के पैरोकारों का कहना है कि यह खेती देसी गाय के गोबर और मूत्र पर आधारित है.

दीपक के मंडल
कुंजी
Updated:
जीरो बजट नेचुरल फार्मिंग यानी प्राकृतिक खेती
i
जीरो बजट नेचुरल फार्मिंग यानी प्राकृतिक खेती
(फोटो: iStock)

advertisement

मोदी सरकार ने 2022 तक किसानों की आय दोबारा करने का वादा एक बार फिर दोहराया है. पिछले दो-तीन साल के दौरान देशभर में किसानों के आंदोलन देखने को मिले. किसानों की सबसे बड़ी शिकायत ये है कि खेती की लागतें लगातार बढ़ती जा रही हैं लेकिन उनकी फसल की सही कीमत नहीं मिल रही है. रासायनिक खाद, कीटनाशक और बीज महंगे हो रहे हैं लेकिन सरकार उस हिसाब फसलों का समर्थन मूल्य नहीं बढ़ा रही है और न ही उसकी ओर से ऐसी पुख्ता व्यवस्था हो रही है कि उसे खुले बाजार में फसलों की ज्यादा कीमत मिले.

सरकार का भी मानना है कि अगर किसानों की खेती की लागतें काबू में रखी जा सके तो ये समस्या सुलझ सकती है. इसके लिए उसने इस बार के बजट में जीरो बजट नेचुरल फार्मिंग को बढ़ावा देने का ऐलान किया है. जीरो बजट नेचुरल फार्मिंग क्या है? कैसे यह खेती-बाड़ी की लागतें कम कर सकती है. किस तरह यह सरकार और किसानों का मकसद साध सकती है, आइए जानते हैं.

क्या है जीरो बजट नेचुरल फार्मिंग?

जीरो बजट नेचुरल फार्मिंग यानी प्राकृतिक खेती. ऐसी खेती जिसमें रासायनिक खाद और कीटनाशकों के इस्तेमाल से बचा जाता है. इस खेती के पैरोकारों का कहना है कि यह खेती देसी गाय के गोबर और मूत्र पर आधारित है.

जीरो बजट फार्मिंग या जीरो बजट नेचुरल पार्मिंग- ZBNF शब्द सुभाष पालेकर की ओर से ईजाद किया हुआ है. सुभाष पालेकर के नाम पर इसे सुभाष पालेकर नेचुरल फार्मिंग यानी SPNF कहा जाता है. पद्मश्री सुभाष पालेकर महाराष्ट्र में बगैर रासायनिक खाद और कीटनाशक के खेती करते आए हैं. उनका मानना है कि रासायनिक और ऑर्गेनिक खेती फसलों की उत्पादकता बढ़ाने में नाकाम साबित हुई हैं. इससे जमीन की उर्वर क्षमता कम हुई है और जल-संसाधन सिकुड़ें हैं. साथ ही ग्लोबल वॉर्मिंग में भी इजाफा हुआ है.

क्या है जीरो बजट नेचुरल फार्मिंग का आधार?

दरअसल जीरो बजट नेचुरल फार्मिंग का आधार है जीव-अमृत. यह गायब के गोबर, मूत्र और पत्तियों से तैयार कीटनाशक का मिक्सचर है. सुभाष पालेकर का कहना है कि यह पूरी तरह से रासायनिक खाद की जगह ले सकता है. पालेकर कहते हैं कि ऐसा भविष्य में संभव हो सकता है.

टाइम्स ऑफ इंडिया को दिए एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा कि वह अंगूर की ऐसी बढ़िया खेती दिखा सकते हैं जो बगैर रासायनिक खाद और कीटनाशक के हो रही है और अच्छी पैदावार दे रही है. उन्होंने कहा कि विदर्भ में भीषण सूखे के दौरान बड़ी तादाद में संतरे के बाग सूख गए लेकिन SPNF के तरीके से लगाए गए बाग नहीं सूखे.

ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

कैसे होती जीरो बजट नेचुरल फार्मिंग ?

पालेकर के मुताबिक पौधों को मिट्टी में मौजूद सूक्ष्मजीवों के जरिये पका-पकाया खाना मिलता है. जीव-अमृत इन सूक्ष्म जीवों की ओर से पौधे को खाना मुहैया करने का सबसे बढ़िया जरिया है. वह कहते हैं देसी नस्ल की गाय का गोबर और मूत्र जीव-अमृत के लिए सबसे मुफीद है. एक गाय के गोबर और मूत्र से 30 एकड़ जमीन के लिए जीव-अमृत तैयार किया जा सकता है.

पालेकर के मुताबिक रासायनिक खाद और यहां तक कि पारंपरिक खाद भी मिट्टी में प्राकृतिक तौर पर पाए जाने वाले नाइट्रोजन का इस्तेमाल करते हैं. इससे शुरू में उत्पादन बढ़ता है लेकिन जैसे ही नाइट्रोजन का स्तर मिट्टी में कम होता है पैदावार घट जाती है.

क्या जीरो बजट नेचुरल फार्मिंग का मतलब बिना लागत की खेती है?

पालेकर के मुताबिक जीरो बजट फार्मिंग में सभी फसलें बगैर किसी लागत के पैदा की जा सकती हैं क्योंकि किसान को बाहर से कुछ भी नहीं खरीदना पड़ता. पौधों के लिए जरूर पोषक चीजें उनके आसपास ही मिल जाती है. जीरो बजट का मतलब ये नहीं है कि किसान को कुछ भी खर्च नहीं करना होगा.

दरअसल इस तरीके से खेती में किसान का खर्चा कम हो जाता है और एक वक्त ऐसा आता है जब अंतर-फसल चक्र की वजह से लागत कम हो हो जाती है. संयुक्त राष्ट्र के संगठन फूड एंड एग्रीकल्चर एसोसिएशन यानी FAO का मानना है कि जीरो बजट नेचुरल फार्मिंग बगैर रासायनिक खाद और कीटनाशकों के हो सकती है और इससे निश्चित तौर पर खेती की लागत घटेगी.

भारत में ज्यादातर छोटे किसान हैं, जिनके लिए हाई क्वालिटी फर्टिलाइजर, पैदावार बढ़ाने के लिए दूसरे केमिकल, खाद ओर महंगे बीज खरीदना मुश्किल है. यही वजह है कि किसान कर्ज में फंस जाता है और उसे आत्महत्या जैसे कदम उठाने पड़ते हैं. जीरो बजट फार्मिंग से अगर खेती की लागत कम होती है यह देश के कृषि, सेक्टर के लिए बड़ी राहत साबित होगी.

देश में जीरो बजट फार्मिंग कितना लोकप्रिय हो रहा है?

सुभाष पालेकर ने महाराष्ट्र के बाद जीरो बजट फार्मिंग का बड़ा प्रयोग कर्नाटक में किया. इसके बाद आंध्र और हिमाचल प्रदेश में बड़े पैमाने पर किसानों को इस तरह की खेती के लिए प्रेरित किया गया. सुभाष पालेकर ने इसके लिए बड़े-बड़े ट्रेनिंग कैंप चलाए. हरियाणा में इसका प्रयोग करने वाले हिमाचल (अब गुजरात के) राज्यपाल आचार्य देवव्रत ने राज्य के किसानों के लिए इसे प्रेरित किया.

पालेकर का दावा है कि इससे अब 50 लाख किसान जुड़ गए हैं. केरल और छत्तीसगढ़ की सरकारों ने भी इसके प्रति दिलचस्पी दिखाई है. उत्तराखंड सरकार ने इसकी मंजूरी दे दी है. पालेकर का मानना है कि धीरे-धीरे दूसरे राज्यों के किसान भी इससे जुड़ेंगे. वो कहते हैं कि देश के किसानों का मौजूदा संकट जीरो बजट फार्मिंग से काफी हद तक खत्म हो सकता है.

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

Published: 24 Jul 2019,09:18 PM IST

Read More
ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT