advertisement
भारत सरकार और WhatsApp के बीच ट्रेसेबिलिटी के मुद्दे पर तनातनी बढ़ गई है. यह मामला सरकार की ओर से लाए गए नए आईटी नियमों के प्रावधान से जुड़ा है. WhatsApp का कहना है कि ट्रेसेबिलिटी एंड-टू-एंड एन्क्रिप्शन की अवधारणा के खिलाफ है. WhatsApp ने इस मामले में सरकार के खिलाफ दिल्ली हाई कोर्ट का रुख किया है.
WhatsApp का कहना है कि ट्रेसेबिलिटी का प्रावधान असंवैधानिक और लोगों के निजता के मौलिक अधिकार के खिलाफ है.
ट्रेसेबिलिटी का मतलब ये कि सरकार के पूछे जाने पर WhatsApp को बताना होगा कि किसी भी मैसेज को किसने सबसे पहले भेजा. यानी कि मैसेज को किस-किसने भेजा,पढ़ा है और उसको सबसे पहले किसने भेजा था , यह सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों को ट्रैक करना पड़ेगा. WhatsApp इसे अपने नियमों और संविधान के खिलाफ बता रहा है.
फरवरी 2021 में भारत सरकार ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों तथा डिजिटल न्यूज मीडिया के लिए 'इंटरमीडियरी गाइडलाइंस एंड डिजिटल मीडिया एथिक्स कोड' की घोषणा की. इन गाइडलाइंस के अनुसार बड़े सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों के लिये ये तीन निर्देश मानने बाध्यकारी होंगे:
सरकार के अनुसार अगर सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म 25 मई 2021 तक इन निर्देशों का पालन करने में असफल रहते हैं तो उन्हें IT एक्ट की धारा 79 के तहत प्राप्त सुरक्षा छीन ली जाएगी.
भारत सरकार से नए गाइडलाइंस, विशेषकर ट्रेसिबिलिटी के ऊपर मतभेद के बाद वॉट्सऐप ने अपना पक्ष रखने के लिए एक ब्लॉग पोस्ट पब्लिश किया है. उसके अनुसार वॉट्सऐप ने अपने ऐप पर 2016 से ही एंड टू एंड एंक्रिप्शन लागू कर रखा है जिससे भेजे गए मैसेज, फोटोज, वीडियोज, वॉइस नोट्स एवं कॉल को केवल सेंडर या जिसको भेजा है वह रिसीवर ही पढ़ सकता है. यानी एंड टू एंड एंक्रिप्शन में यहां तक कि वॉट्सऐप भी भेजे गए मैसेज को नहीं पढ़ सकता.
लेकिन वॉट्सऐप के अनुसार IT रूल्स में ट्रेसिबिलिटी का प्रावधान इसके विपरीत है क्योंकि ट्रेसिबिलिटी में किसी भी मैसेज को किस-किसने भेजा,पढ़ा है और उसको सबसे पहले किसने भेजा था , यह सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों को ट्रैक करना पड़ेगा. इसके लिए वॉट्सऐप जैसे मैसेजिंग प्लेटफॉर्म को हर मैसेज को एक परमानेंट पहचान चिन्ह देना होगा- फिंगरप्रिंट की तरह-और अपने एंड टू एंड एंक्रिप्शन की सुरक्षा खत्म करते हुए हरेक मैसेज के पहचान चिन्ह का बिग डेटा तैयार करना होगा. जब सरकार या ऑथोरिटी किसी भी मैसेज को ट्रैक करने का निर्देश देगी तो नए IT रूल्स के अनुसार यह सोशल प्लेटफॉर्म के लिए बाध्यकारी होगा कि वे उन्हें पूरी जानकारी प्रदान करें.
वॉट्सऐप के अनुसार ट्रेसिबिलिटी मानवाधिकार का उल्लंघन है.उसने दिल्ली हाईकोर्ट में दायर अपने लॉ सूट में यह दलील दी है कि ट्रेसिबिलिटी का प्रावधान 2017 में सुप्रीम कोर्ट के द्वारा जस्टिस के.एस पुट्टास्वामी बनाम भारत संघ केस में दिए गए निर्णय (निजता का अधिकार)के विपरीत है और इसलिए गैर संवैधानिक है.
इसके अलावा वॉट्सऐप के अनुसार मैसेज को ट्रैक करना बेकार है और इसके दुरुपयोग का बहुत खतरा है. अगर कोई यूजर्स कोई फोटो डाउनलोड करके शेयर करता है, स्क्रीनशॉट लेकर आगे भेजता है या किसी ईमेल में आये आर्टिकल को वॉट्सऐप पर शेयर करता है तो उसे ही उस कंटेंट का क्रिएटर मान लिया जाएगा.अब सरकार किसी खास अकाउंट की जानकारी मांगने नहीं बल्कि खास मैसेज को जिसने सबसे पहले शेयर किया था उसकी जानकारी मांगने आयेगी. ओरिजिन को ट्रैक करने के लिए वॉट्सऐप को अपने प्लेटफार्म पर हर एक मैसेज को ट्रैक करना पड़ेगा.
सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री रविशंकर ने कहा कि "भारत सरकार अपने हर नागरिक के निजता के अधिकार को सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध है, लेकिन इसके साथ-साथ सरकार की जवाबदेही लॉ एंड ऑर्डर मेंटेन करने तथा राष्ट्रीय सुरक्षा को सुनिश्चित करने की भी है.
इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने बुधवार को बयान जारी करते हुए कहा कि यह नियम विभिन्न स्टेकहोल्डर्स और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों से सलाह-मशविरा करने के बाद बना है और वॉट्सऐप सहित किसी ने भी 2018 से आज तक संगीन अपराध के मामले में मैसेज के ओरिजिन को ट्रैक करने के प्रावधान का लिखित विरोध नहीं किया है.
सरकारी महकमे से एक तर्क यह भी आ रहा है कि वॉट्सऐप जब अपने नये पॉलिसी के तहत यूजर्स का अकाउंट रजिस्ट्रेशन इनफॉरमेशन, ट्रांजैक्शन डेटा, मोबाइल डिवाइस की जानकारियां और IP ऐड्रेस को फेसबुक से शेयर करने को तैयार है तो राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए उसे ट्रेसिबिलिटी से परहेज क्यों है.
दूसरी तरफ संपादकों की शीर्ष संस्था एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने भी मार्च की शुरुआत में केंद्र सरकार द्वारा जारी नए डिजिटल मीडिया गाइडलाइंस को लेकर अपनी चिंता जाहिर की थी. गिल्ड ने कहा था कि वह IT रूल्स 2021 को लेकर चिंतित है क्योंकि "यह मौलिक रूप से इंटरनेट पर काम करने वाले समाचार प्रकाशकों को प्रभावित करते है और भारत की मीडिया की स्वतंत्रता को गंभीरता से कम करने की क्षमता रखते हैं".
कुछ आलोचकों का कहना है कि ट्रेसिबिलिटी क्लॉज का प्रयोग मुखर पत्रकारों, विपक्षी नेताओं,सजग सिविल सोसाइटी के खिलाफ टूल के रूप में किया जा सकता है.IT नियमों में बदलाव करके सरकार सिर्फ सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म ही नहीं डिजिटल न्यूज मीडिया और OTT प्लैटफॉर्म पर भी नियंत्रण बढ़ा रही है.और नियंत्रण की यह कोशिश हाल में सरकार की इन प्लैटफॉर्मों से बढ़ती तकरार में देखी जा सकती है.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)