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राजस्थान गहलोत बनाम पायलट की लड़ाई में बात रिजॉर्ट, स्पीकर, कोर्ट से होते हुए सीबीआई जांच तक पहुंची. कांग्रेस ने ऑडियो क्लिप का हवाला देकर दावा किया विधायकों की खरीद-फरोख्त की कोशिश बीजेपी कर रही है. वहीं बीजेपी ने मांग रख दी कि किसकी अनुमति से फोन टेप किए गए, इसकी सीबीआई जांच होनी चाहिए. अब राजस्थान सरकार ने एक नोटिफिकेशन निकाल कर सीबीआई जांच का रास्ता बंद कर दिया है. तो क्या अब सीबीआई जांच नहीं कर पाएगी? दरअसल कानून में इतने पेंच हैं कि नहीं में भी हां की गुंजाइश निकल सकती है. ये कैसे हो सकता है ये समझने के लिए हमें ये समझना होगा कि राज्य सरकार ने किस अधिकार के तहत रोक लगाई और सीबीआई को कौन से अधिकार मिले हुए हैं?
सीबीआई को दो तरह की अनुमति चाहिए होती है - किसी केस के लिए खास या जनरल. किसी राज्य सरकार के कर्मचारियों या अपराध से संबंधित मामले की जांच सीबीआई तभी कर सकती है, जब उसके पास राज्य सरकार की सहमति होगी.
जनरल सहमति आमतौर पर सीबीआई को राज्यों में केंद्र सरकार के कर्मचारियों के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामलों की जांच करने में मदद करने के लिए दी जाती है. इसे जनरल सहमति कहते हैं क्योंकि लगभग सभी राज्य ये सहमति दे देते हैं, क्योंकि अगर ऐसा नहीं होगा, तो सीबीआई को हर केस के लिए राज्य सरकार से सहमति लेनी होगी.
एक बार सीबीआई को जांच के लिए जनरल सहमति देने के बाद, राज्य सरकार अपनी सहमति वापस ले सकती है. इसका मतलब ये है कि किसी खास केस के लिए बिना राज्य सरकार की सहमति सीबीआई केंद्र सरकार के अधिकारी या राज्य में किसी निजी व्यक्ति पर नया केस रजिस्टर नहीं कर पाएगी.
किसी राज्य सरकार की सहमति न होने पर, सीबीआई उस राज्य में केस रजिस्टर नहीं कर पाती है. लेकिन वो किसी दूसरे राज्य में केस रजिस्टर कर इस राज्य में पूछताछ कर सकती है.
जैसे इस केस में शायद सीबीआई हरियाणा में केस दर्ज कर सकती है कि क्योंकि वहीं के रिजॉर्ट में कांग्रेस के बागी विधायक ठहरे हुए हैं. या फिर दिल्ली में, क्योंकि केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत का नाम भी लीक टेप में आया है. ऐसी स्थिति में सीबीआई को राजस्थान सरकार से अनुमति लेने की जरूरत भी नहीं होगी. हालांकि तब भी सीबीआई राजस्थान में तैनात केंद्रीय कर्मचारियों को अरेस्ट नहीं कर सकती. हां विधायक उसकी जद में आ सकते हैं.
सीबीआई पुराने केस की जांच जारी रख सकती है. जहां तक तलाशी की बात है तो एजेंसी लोकल कोर्ट से सर्च वारंट लेकर ऐसा कर सकती है. सीआरपीसी के सेक्शन 166 के मुताबिक एजेंसी जिस राज्य ने सहमति वापस ली है उसके अफसर को तलाशी के लिए कह सकती है और यहां तक उसे खुफिया जानकारी लीक होने का डर हो तो उसके अफसर खुद भी तलाशी ले सकती हैं.
राज्य सरकारें अक्सर सीबीआई जांच पर सवाल खड़े करती आई हैं. इससे पहले 2018 में, आंध्र प्रदेश और पश्चिम बंगाल ने एक मामले में सीबीआई पर सवाल खड़े करते हुए जांच पर सहमति वापस ले ली थी. छत्तीसगढ़, कर्नाटक जैसे राज्य भी ऐसा कर चुके हैं.
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