advertisement
Children's Day 2023: बच्चों में ऐसी कुछ जेनेटिक बीमारी पाई जाती है, जो उन्हें उनके माता-पिता से मिलती है. ऐसी ही एक बीमारी है थैलेसीमिया (Thalassemia) . इस बीमारी में मरीजों में ग्लोबीन प्रोटीन या तो बहुत कम बनता है या नहीं बन पाता, जिसके कारण रेड ब्लड सेल्स नष्ट हो जाती हैं. इससे बॉडी को ऑक्सीजन नहीं मिल पाता है और मरीज को बार-बार खून चढ़वाना पड़ता है. एक्सपर्ट के अनुसार थैलीसीमिया से ग्रसित बच्चों को साल भर में 16-24 बार ब्लड ट्रांसफ्यूजन की जरूरत पड़ती है.
फिट हिंदी ने एक्सपर्ट से जानी ऐसी 10 बातें जो थैलीसीमिया से ग्रसित बच्चों के माता-पिता को जरुर पता होनी चाहिए.
1. थैलेसीमिया से प्रभावित बच्चे की बीमारी का सही ढंग से मैनेजमेंट किया जाए तो वह नार्मल लाइफ जी सकता है.
2. बच्चों को मान्यता प्राप्त ब्लड बैंक से जांच किया हुआ ब्लड ही दिलाएं ताकि इंफेक्शन से बचाव हो सके.
3. ब्लड की NAT जांच होनी चाहिए और वह ल्यूकोडिप्लिटेड होना चाहिए. न्यूक्लिक एसिड टेस्टिंग (NAT) स्क्रीनिंग से ब्लड सैंपल की HIV 1 और 2, हेपेटाइटिस बी और हेपेटाइटिस सी जांच की जानी चाहिए और इस प्रकार जांच के बाद NAT स्क्रीनिंग के नतीजों को, आईटी-आधारित इंफॉरमेशन मैनेजमेंट के जरिए संबंधित ब्लड सेंटर को भेजा जाना चाहिए.
4. आयरन ओवरलोड से बचने के लिए, किलेशन (chelation) की प्रक्रिया 10वें ट्रांसफ्यूजन के बाद जल्द से जल्द शुरू होनी चाहिए. बच्चों को नियमित रूप से दवा खिलानी चाहिए और उनके खुराक में किसी भी तरह की चूक नहीं होनी चाहिए.
5. थैलीसीमिया का बोन मैरो ट्रांसप्लांट से ही इलाज संभव है. सबसे अच्छे नतीजे मैच्ड फैमिली डोनर या मैच्ड अनरीलेटेड डोनर से मिलते हैं. हाफ मैच्ड डोनर ट्रांसप्लांट किया जा सकता है लेकिन नतीजे अच्छे नहीं मिलते हैं.
6. अब जीन थेरेपी उपलब्ध है पर इसकी कीमत काफी अधिक होती है.
7. न्यूट्रिशन, वैक्सीनेशन और दूसरे बच्चों की तरह ही थैलेसीमिक बच्चों की शारीरिक गतिविधियों पर ध्यान देना चाहिए.
8. हिमेटोलॉजिस्ट के साथ नियमित रूप से फॉलो अप करना जरूरी होता है ताकि बच्चे की पूरी देखभाल हो सके.
9. थैलेसीमिया मरीज के लिए सरकार की तरफ से सपोर्ट और सहायता मिलती है. इस बारे में पूरी जानकारी प्राप्त करें.
10. इसमें कोई शक नहीं कि सही देखभाल होने पर थैलेसीमिया मरीज अपनी निजी और प्रोफेशनल जिंदगी में हर तरह के लाइफ गोल्स को हासिल कर सकता है.
थैलसीमिया के मरीजों, खातसैर से बच्चों में घातक रोगों के ट्रांसमिशन का खतरा सबसे ज्यादा होता है, जैसा कि हाल में उत्तर प्रदेश के कानपुर में घटी घटना के दौरान देखा गया. कानपुर शहर के लाला लाजपत राय चिकित्सालय में ब्लड चढ़ाने के बाद 14 बच्चों में हेपेटाइटिस बी, सी और एचआईवी (HIV) जैसे संक्रमण की पुष्टि हुई है. हालांकि, ये आकंड़ा पिछले दस सालों का है.
एक्सपर्ट अनुभा तनेजा मुखर्जी का कहना है कि सुरक्षित ब्लड और बेहतर स्क्रीनिंग के तौर-तरीकों को लागू करना वक्त का तकाजा है.
टीपीएजी की सदस्य सचिव अनुभा तनेजा मुखर्जी ने ब्लड ट्रांसफ्यूजन को सुरक्षित बनाने के उपायों के बारे में बताते हुए कहा, "सभी मरीजों को सुरक्षित और पर्याप्त ब्लड मिल सके, इसके लिए जरूरी है कि ब्लड कलेक्शन, टेस्टिंग, प्रोसेसिंग, स्टोरेज और डिस्ट्रिब्यूशन संबंधी सभी गतिविधियों का संचालन राष्ट्रीय स्तर पर सप्लाई नेटवर्कों के जरिए होना चाहिए.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)
Published: undefined