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World Thalassemia Day 2022|थैलेसीमिया के मरीज इन बातों का रखें ध्यान

World Thalassemia Day | इस मौके पर जानें थैलेसीमिया से जुड़ी सारी जरुरी बातें.

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World Thalassemia Day 2022 | 8 मई को पूरी दुनिया में विश्व थैलेसीमिया दिवस मनाया जाता है. थैलेसीमिया एक ऐसा रोग है, जो आमतौर पर जन्म से ही बच्चे को अपनी गिरफ्त में ले लेता है.

थैलेसीमिया (thalassemia) एक जेनेटिक ब्लड डिसऑर्डर है, जिसमें खून में हीमोग्लोबिन बनना बंद हो जाता है. इस रोग से ग्रसित मरीजों के शरीर में खून की कमी होने के कारण उन्हें बार-बार खून चढ़ाने की जरूरत पड़ती है.

आइए डॉक्टर से जानते हैं, थैलेसीमिया (thalassemia) को दुनिया में फैलने से रोकने के लिए हमें क्या कदम उठाने चाहिए और साथ ही उसके लक्षण, कारण, इलाज और इलाज में बरतने वाली सावधानियों के बारे में, विस्तार से.

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क्यों होता है थैलेसीमिया (thalassemia)?

फिट हिंदी से थैलेसीमिया (thalassemia) पर बात करते हुए गुरुग्राम, मेदांता हॉस्पिटल में हेमटो ऑन्कोलॉजी और बोने मैरो ट्रैन्स्प्लैंट के डायरेक्टर, डॉ नितिन सूद ने बताया, “थैलेसीमिया (thalassemia) एक ऑटो फोम डिसऑर्डर है. हम सब में जींस की 2 कॉपी होती है. अगर एक कॉपी असामान्य हो, तो हमारा हीमोग्लोबिन 12-13 ग्राम प्रति डेसीलीटर की जगह 10-11 ग्राम प्रति डेसीलीटर पर आ कर रुक जाता है. ऐसे मैं लाइफ नॉर्मल चलती रहती है और व्यक्ति को पता भी नहीं चलता है कि उसे थैलेसीमिया माइनर (thalassemia minor)है क्योंकि ऐसा होने पर कोई लक्षण नजर नहीं आते हैं".

"दुनिया में ऐसे बहुत लोग हैं, जिन्हें थैलेसीमिया माइनर (thalassemia minor) है. वैसे हीमोग्लोबिन कम होने के और भी कई कारण होते हैं. प्रोबलम तब आती है जब 2 थैलेसीमिया माइनर की शादी हो जाती है. तब भविष्य में उनके होने वाले बच्चे में थैलेसीमिया मेजर (thalassemia major) होने की संभावना बढ़ जाती है. इसीलिए दुनिया में ये डिसऑर्डर (disorder) चला आ रहा है क्योंकि लोगों को पता ही नहीं चलता है कि वो थैलेसीमिया माइनर हैं”.

थैलेसीमिया (thalassemia) दो प्रकार का होता है. माइनर और मेजर. जिनमें माइनर थैलेसीमिया होता है, वे लगभग स्वस्थ जीवन जीते हैं, जबकि जिनमें मेजर थैलेसीमिया होता है, उन्हें हर 21 दिन बाद या महीने भर के अंदर खून चढ़वाने यानी कि ब्लड ट्रांसफ्यूजन (blood transfusion) की आवश्यकता पड़ती है.

थैलेसीमिया (thalassemia) के रोगी के शरीर में लाल रक्त कोशिकाओं (RBC) का निर्माण शरीर की आवश्यकता अनुसार नहीं हो पाता है, इसलिए उन्हें कुछ दिनों के अंतराल पर खून चढ़वाना पड़ता है.

थैलेसीमिया (thalassemia) के लक्षण

थैलेसीमिया (thalassemia) के लक्षण लोगों में अलग-अलग भी हो सकते हैं. ये लक्षण जन्म लेने के दो वर्षों के दौरान विकसित होते हैं. कुछ लोग जिनमें केवल एक प्रभावित हीमोग्लोबिन जीन होता है यानी कि जो माइनर थैलेसीमिया से ग्रसित होते हैं, उनमें थैलेसीमिया (thalassemia) के लक्षण नहीं होते हैं. ये हैं थैलेसीमिया के कुछ लक्षण:

  • हीमोग्लोबिन कम होना

  • आंखों का रंग थोड़ा पीला लगना

  • चेहरे की हड्डी का सामान्य से अलग दिखना

  • हड्डियों का विकास सही ढंग से नहीं होना

  • बच्चे की ग्रोथ में रुकावट

  • थकान और कमजोरी लगना

  • गहरे रंग का पेशाब होना

  • पीली त्वचा

“ये लक्षण दिखने पर माता-पिता अपने छोटे बच्चे को डॉक्टर से दिखाते हैं और ब्लड टेस्ट में पता चल जाता है कि बच्चे को रेगुलर ब्लड ट्रांसफ्यूजन (regular blood transfusion) की आवश्यकता है. उसके बाद हम टेस्ट करते हैं, जिसमें पता चलता है कि बच्चे को थैलेसीमिया है या कोई और ब्लड डिसऑर्डर. अगर थैलेसीमिया (thalassemia) है, तो उन्हें हर 21 दिन बाद या महीने भर के अंदर खून चढ़वाने की आवश्यकता पड़ती है”.
डॉ नितिन सूद, डायरेक्टर, हेमटो ऑन्कोलॉजी और बोने मैरो ट्रैन्स्प्लैंट, मेदांता हॉस्पिटल, गुरुग्राम
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जब एनीमिया (anaemia) होता है, तो बॉडी पर ज्यादा हीमोग्लोबिन (haemoglobin) बनाने का स्ट्रेस आ जाता है. हीमोग्लोबिन अगर बोन मैरो (bone marrow) से नहीं बन पता है, तो लिवर और किडनी में बनना शुरू हो जाता है.

डॉ सूद कहते हैं, “थैलेसीमिया (thalassemia) से ग्रसित बच्चों का माथा और ठुड्डी अलग दिखती है क्योंकि वहां पर बोन मैरो (bone marrow) ऐक्टिव रहता है. ऐसे में लिवर भी बड़ा हो जाता है और वहां पर ब्लड बनना शुरू हो जाता है. ऐसा होने पर इसे कम करने के लिए या बॉडी पर ज्यादा हीमोग्लोबिन का स्ट्रेस कम करने के लिए हम बार-बार ब्लड चढ़ाते हैं. बार-बार ब्लड चढ़ाने से ये सब संकेत नहीं आते हैं".

बार-बार खून चढ़ाने से थैलेसीमिया (thalassemia) से पीड़ित मरीज के शरीर में बहुत अधिक आयरन हो सकता है. बहुत अधिक आयरन हृदय, लिवर और किडनी को नुकसान पहुंचा सकता है. साथ ही थैलेसीमिया (thalassemia) से पीड़ित मरीज में संक्रमण का खतरा भी बढ़ जाता है.

ब्लड ट्रांसफ्यूजन (blood transfusion) के फायदे

  • माथा और चीक बोंस (cheek bones) सामान्य दिखते हैं

  • लिवर का आकार सही रहता है

  • तिल्ली (spleen) बड़ा नहीं होता

  • हीमोग्लोबिन ठीक रहता है

  • थकान और कमजोरी नहीं होती

  • हार्ट पर प्रेशर नहीं पड़ता

ब्लड ट्रांसफ्यूजन (blood transfusion) के नुकसान

“हम जितनी दवा का इस्तेमाल करेंगे, मरीज के शरीर में आयरन की मात्रा बढ़ती जाएगी. पहले 1-2 साल में शरीर में इतना आयरन चला जाता है कि वो जा कर हार्ट और लिवर में जमा होता जाता है. अधिक आयरन शरीर के लिए जहरीला साबित होता है और जब वो हार्ट और लिवर में जमा होने लगता है, तो वो हार्ट और लिवर को डैमेज कर सकता है”.
डॉ नितिन सूद, डायरेक्टर, हेमटो ऑन्कोलॉजी और बोने मैरो ट्रैन्स्प्लैंट, मेदांता हॉस्पिटल, गुरुग्राम
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ब्लड ट्रांसफ्यूजन के नुकसान से बचने के उपाय के बारे में डॉ सूद कहते हैं, “जब हम बच्चों के लिए ब्लड ट्रांसफ्यूजन का प्लान बनाते हैं, तो हम साथ ही साथ आयरन (iron) निकालने का भी प्लान बनाते हैं. उसके लिए एक दवा (chelating agent) होती है, जिसकी मदद से आयरन को शरीर से पेशाब या स्टूल के जरिए निकाला जाता है. वो दवा आयरन को लिवर और किडनी से निकालने में मदद करती है”.

थैलेसीमिया (thalassemia) होने पर ऐसे रखें ध्यान

  • रेगुलर फॉलो उप कराएं

  • रेगुलर आयरन लेवेल्स चेक उप कराएं

  • दवा समय पर खाएं

  • पौष्टिक आहार लें

  • आयरन की दवा से समस्या हो रही हो, तो डॉक्टर से बात करें, दवा बदलें

थैलेसीमिया (thalassemia) का इलाज

थैलेसीमिया (thalassemia) इलाज के 2 तरीके हैं. पहला ब्लड ट्रांसफ्यूजन (blood transfusion) और दूसरा बोने मैरो ट्रैन्स्प्लैंट (bone marrow transplant).

ब्लड ट्रांसफ्यूजन (Blood transfusion) - थैलेसीमिया के रोगी के शरीर में लाल रक्त कोशिकाओं (RBC) का निर्माण शरीर की आवश्यकता अनुसार नहीं हो पाता है, इसलिए उन्हें कुछ दिनों के अंतराल पर खून चढ़वाना यानी ब्लड ट्रांसफ्यूजन की जरुरत पड़ती है.

बोने मैरो ट्रैन्स्प्लैंट (Bone marrow transplant) - "बोने मैरो ट्रैन्स्प्लैंट (bone marrow transplant) - स्वस्थ और पूरी तरह से मैच करने वाले बोने मैरो (bone marrow) जो मरीज के भाई या बहन का हो, से मरीज के बोने मैरो (bone marrow) को बदलना होता है. उसके बाद मरीज के शरीर में अच्छे से ब्लड बनना शुरू हो जाता है. जब ब्लड पर्याप्त मात्रा में बनने लगता है, तो ब्लड ट्रांसफ्यूजन (blood transfusion) की जरुरत नहीं होती है. ऐसा होने पर आयरन ओवरलोड (iron overload) होना भी बंद हो जाता है और मरीज को बार-बार हॉस्पिटल आने की जरुरत नहीं पड़ती है" ये कहते हुए आगे बताते हैं डॉ नितिन सूद,

“इन्फेक्शन नहीं, बोन पर प्रेशर नहीं और अगर सब ऐसा ही रहा तो समझे कि थैलेसीमिया की समस्या खत्म हुई. लेकिन सबके पास डोनर नहीं होता और ट्रैन्स्प्लैंट (transplant) के अपने रिस्क्स (risks) भी हैं. उसे समझना भी जरुरी है. हालांकि वो रिस्क बहुत कम हैं और उस रिस्क की तुलना हमें मरीज की स्थिति से कर के देखनी चाहिए. अगर हम ट्रैन्स्प्लैंट (transplant) नहीं करते हैं, तो मरीज के जीवन के दिन कम हो सकते हैं.”

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जब बच्चे छोटे होते हैं और उनके लिवर में आयरन ओवरलोड (iron overload) नहीं हुआ रहता है तब अगर जरुरत है, तो ट्रैन्स्प्लैंट (transplant) की पूरी कोशिश करनी चाहिए. ये छोटे बच्चों के मामले में ज्यादा काम करता है. टीनेज शुरू होने के बाद ट्रैन्स्प्लैंट (transplant) में रिस्क बढ़ जाते हैं. तब उस समय ट्रैन्स्प्लैंट (transplant) के बारे में गंभीरता से सोचना चाहिए.

थैलेसीमिया (thalassemia) से बचने के उपाय

थैलेसीमिया (thalassemia) हो जाने पर उसे रोका नहीं जा सकता है. अगर आपको थैलेसीमिया है, या आपके पास थैलेसीमिया जीन है और माता-पिता बनने की सोच रहे हैं, ऐसे में डॉक्टर से संपर्क जरुर करें.

“शादी से पहले या माता-पिता बनने से पहले अगर टेस्ट के जरिए थैलेसीमिया माइनर का पता कर लिया जाए तो इस डिसॉर्डर (disorder) को हम आगे बढ़ने से रोक सकते हैं और जो थैलेसीमिया मेजर की समस्या से जूझ रहे हैं उन्हें बच्चा प्लान करने से पहले डॉक्टर की सलाह जरुर ले लेनी चाहिए" ये सलाह देते हैं डॉ नितिन सूद.

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