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मैंने टेलीविजन बंद कर दिया. पांच मिनट बाद, मैंने इसे फिर से चालू कर दिया.
ऑफ. ऑन. फिर से ऑफ.
यह पुरुष वनडे क्रिकेट विश्व कप सेमीफाइनल है. भारत, न्यूजीलैंड के खिलाफ खेल रहा है और मैच अधर में लटका हुआ है. यह किसी भी तरफ जा सकता था.
बहुत कुछ दांव पर लगा है. कमरे का माहौल तनावपूर्ण है. मैं स्ट्रेस्ड हूं और मैं यह तय नहीं कर पा रही हूं कि क्या मैं एक हार्ट ब्रेकिंग हार देखना चाहती हूं या एक शानदार जीत देखने से चूकने का जोखिम उठाना चाहती हूं?
मैंने देखने का फैसला किया. यह तनावपूर्ण है. लेकिन आखिरकार जीत भारत की होती है.
कमरा जश्न के माहौल में डूब गया, सभी हो-हल्ला करते हुए गले मिलते हैं और राहत की सांस लेते हैं.
जीत का यह उत्साह इतना पर्सनल लगता है कि मैं अगली सुबह ऐसे उठती हूं जैसे मेरे कदमों में स्प्रिंग लगी हो, जबकि आम तौर पर सुबह में मैं अपने पैरों को उठ कर चलने के लिए खींच रही होती हूं और यह सिर्फ मैं ही नहीं हूं, ऑनलाइन और ऑफलाइन, मेरे चारों तरफ खुशी का माहौल है.
दर्शकों ने खेल के प्रति हमेशा मजबूत इमोशंस दिखाया है. खुशी, अजीबोगरीब जीत, दिल टूटना और यहां तक कि बेलगाम गुस्सा बहुत वास्तविक भावनाएं हैं, जिसे टीम के खेल के प्रशंसक भली भांति परिचित हैं, चाहें तो फुटबॉल के किसी भी प्रशंसक से पूछ लें.
लेकिन, ऐसा क्यों है?
मुंबई के अपोलो अस्पताल में क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट डॉ. रितुपर्णा घोष कहती हैं, "अगर आपकी टीम जीत रही है, आपका देश जीत रहा है, तो लोग जीत को पर्सनली लेते हैं. इसके कारण, खुशी वाले हार्मोन जारी होते हैं, जो उन्हें उत्साह का अनुभव कराते हैं."
हार्मोन में डोपामाइन, एंडोर्फिन और यहां तक कि कुछ कोर्टिसोल (एक स्ट्रेस हार्मोन) शामिल हैं. स्पेन में हुए एक स्टडी के अनुसार, केवल खेल देखने से भी पुरुषों और महिलाओं दोनों में टेस्टोस्टेरोन रिलीज होता है.
हालांकि, बाहर से किसी को यह मूर्खतापूर्ण लग सकता है. अगर आप खेल में इंटरेस्ट रखते हैं, तो उत्तेजना के प्रति रियल फिजिकल रिस्पांस होते हैं, जो रियल इमोशंस के रूप में सामने आती हैं.
डॉ. घोष कहती हैं, "वे इसे भी उसी तरह से लेते हैं, पर्सनली. इससे स्ट्रेस का नेगेटिव पार्ट पैदा होता है जो परेशानी का कारण बनता है."
इसलिए टीम की हार एक व्यक्तिगत हार की तरह महसूस होती है, जिससे लोग परेशान, निराश और गुस्से में आ जाते हैं और इन भावनाओं को दूर करने का कोई रियल रास्ता नहीं रह जाता है क्योंकि स्थिति पूरी तरह से उनके कंट्रोल से बाहर है.
कई लोगों में, दुःख कुछ दिनों के बाद डिप्रेशन का कारण भी बन सकता है.
यह घटना दिलचस्प है क्योंकि यह इस बात से परे है कि आपने उस खास खेल में कितना इन्वेस्ट किया है. मानवविज्ञानियों (anthropologist) का कहना है कि, कुछ मायनों में, इसका पता कम्युनिटी की भावना और यहां तक कि 'अर्थ खोजने' की मौलिक सामाजिक (primal social) आवश्यकता से लगाया जा सकता है.
आधुनिक दुनिया में, अक्सर, व्यक्ति साझा हितों के आसपास बने कम्युनिटीज के जरिए कनेक्शन ढूंढते हैं. इसलिए खेल और दूसरी सामूहिक ऐक्टिविटीज, लेशर ऐक्टिविटीज (leisure activities) की स्थिति से आगे निकल गई हैं.
फोर्टिस हेल्थकेयर, गुरुग्राम में स्पोर्ट एंड काउंसलिंग साइकोलॉजिस्ट डॉ. दिव्या जैन कहती हैं, जिस टीम का हम समर्थन करते हैं वह धीरे-धीरे हमारी पहचान के साथ जुड़ने लगती है और हमें अपनेपन का एहसास दिलाती है.
वह आगे कहती हैं, "विश्व कप में, यह हमारी राष्ट्रीय टीम है, लेकिन फुटबॉल और सुपर बाउल में भी ऐसा होता है, जिसमें कोई देश शामिल नहीं होता है."
और एक सामूहिक पहचान हमारी भावनाओं के लिए एक मजबूत ड्राइविंग फोर्स हो सकती है.
'सोशल आइडेंटिटी थ्योरी' नाम की एक चीज भी है, जो बताती है कि किसी टीम की जीत या हार कुछ लोगों के लिए बहुत मायने रखती है.
हम अपने बारे में कैसा महसूस करते हैं, यह एक हद तक हमारी उपलब्धियों पर आधारित होता है, जिन्हें हम खुद हासिल करते हैं और उन समूहों द्वारा हासिल की जाती हैं जिनसे हम जुड़े हैं. दूसरे शब्दों में, अगर आप किसी ऐसे समूह या संगठन से जुड़े हैं, जो सफल या सम्मानित है, तो आप अपने बारे में बेहतर महसूस करेंगे.
डॉ. रितुपर्णा घोष कहती हैं कि जिन खेल टीमों का आप समर्थन करते हैं, वे आपको ऐसा महसूस कराती हैं, "जैसे कि उनका एक हिस्सा जीत रहा है."
सही तरीके से इन बातों को समझा जाए, तो अपनी पसंदीदा टीम या यहां तक कि खिलाड़ी के कारनामों को ध्यान में रखने से आपको अपना आत्म-सम्मान बढ़ाने में मदद मिल सकती है, आप प्रेरित महसूस कर सकते हैं, इससे समय-समय पर हैप्पी हार्मोन के शॉट्स मिल सकते हैं और आपको लाइफ के रोजमर्रा के कठिन परिश्रम से अपना ध्यान हटाने में मदद दे सकते हैं, ये कहना है अमेरिका स्थित मनोचिकित्सक डॉ. पीटर कीलन का अपने ऑनलाइन ब्लॉग में.
हालांकि, इसका एक दूसरा पक्ष भी है. डॉ. घोष का कहना है कि मनोवैज्ञानिक ( psychological) परेशानी आपके मेंटल हेल्थ पर गहरा प्रभाव डाल सकती है, कभी-कभी इसके गंभीर परिणाम भी हो सकते हैं और यहां तक कि इसका प्रभाव आपके पारस्परिक संबंधों (interpersonal relationship) पर भी पड़ सकता है.
वह बताती हैं, "कभी-कभी लोग इसमें इतनी गहराई तक चले जाते हैं कि वे धर्म और नस्ल का मुद्दा उठाना शुरू कर देते हैं और व्यक्तिगत हमले भी करने लगते हैं."
तो अंत में, जिन विशेषज्ञों से हमने बात की, उनका कहना है कि जब तक आप जानते हैं कि यह सिर्फ एक खेल है, तो आपके पास हार की भावना से निपटने के लिए टूल मौजूद है (बिल्कुल जीत की तरह) और यह आपकी या आपके आसपास के दूसरे लोगों के मेंटल पीस में बाधा नहीं डाल रहा है.
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