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कैमरा: अभिषेक रंजन, शिव कुमार मौर्य
वीडियो एडिटर: पुनीत भाटिया
प्रोड्यूसर: साखी चड्ढा
हम अपने घरों पर उत्तर पूर्वी दिल्ली में हुई हिंसा पर पल-पल की खबर जान पाए क्योंकि उस समय तमाम पत्रकार वहां मौजूद रहकर वीडियो, फोटो और दूसरी जानकारियां जुटा रहे थे.
इस तरह के अनुभवों का क्या असर पड़ता है?
स्टडीज बताती हैं कि किसी त्रासदी का सामना करने वालों की तरह ही उसकी रिपोर्टिंग करने वाले जर्नलिस्ट भी भावनात्मक चोटों के प्रति संवेदनशील होते हैं.
रिसर्च के मुताबिक 80 फीसदी से 100 फीसदी तक पत्रकार अपने काम से जुड़े किसी सदमे वाली घटना का अनुभव करते हैं.
977 महिला पत्रकारों की एक स्टडी में पाया गया कि 21.9% ने अपने काम के सिलसिले में शारीरिक हिंसा का सामना किया.
फिट ने उन चार पत्रकारों से बात की, जिन्होंने उत्तर पूर्व दिल्ली में हुई हिंसा की रिपोर्टिंग की थी. सीएनएन न्यूज 18 की रुनझुन शर्मा, न्यूज़लॉन्ड्री के आयुष तिवारी, फ्रीलांस जर्नलिस्ट इस्मत आरा और द क्विंट के शादाब मोइज़ी ने बताया है कि उन पर क्या गुजरी है.
दिल्ली हिंसा जैसी मुश्किल कवरेज के बाद कुछ इस तरह के सदमे से गुजरते हैं रिपोर्टर.
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