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'बस आत्महत्या मत करना': कोटा में छात्रों के मददगार नहीं हैं काउंसलर

FIT ने कोचिंग सेंटरों में 'थेरेपी' कैसे काम करती है और ये कितनी कारगर है, इसको समझने के लिए काउंसलरों और छात्रों से बात की.

गरिमा साधवानी
फिट
Published:
<div class="paragraphs"><p>कोटा में छात्रों के मददगार नहीं हैं काउंसलर</p></div>
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कोटा में छात्रों के मददगार नहीं हैं काउंसलर

(फोटो: अरूप मिश्रा)

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बात 2018 और 2019 की है, जब 24 वर्षीय मौली (बदला हुआ नाम) कोटा के एलन करियर इंस्टीट्यूट में NEET की तैयारी कर रही थी, तब उसके पिता गुजर गए. वो अपनी पीड़ा को कम करने के लिए संस्थान के काउंसलर के पास गई. काउंसलर्स ने उससे कहा, "इतना मत सोचो," पढ़ाई पर फोकस करो."

मौली ने FIT से कहा कि तब वो ऐसी बात नहीं सुनना चाहती थी.

(चेतावनी: आत्महत्या (Suicide) का विवरण. यदि आपको आत्महत्या करने का ख्याल आता है .. या आप किसी दूसरे ऐसे शख्स को जानते हैं तो उनके साथ अच्छे से पेश आएं और स्थानीय आपातकालीन सेवाओं, हेल्पलाइन और मानसिक स्वास्थ्य गैर सरकारी संगठनों के इन नंबरों पर कॉल करें.)

2015 और 2016 के बीच वाइब्रेंट एकेडमी में पढ़ाई करने वाले 24 वर्षीय जतिन वाधवानी का भी अनुभव कुछ ऐसा ही था, जब वो IIT-JEE की तैयारी कर रहे थे. उनके संस्थान में एक काउंसलर्स हुआ करते थे जिससे छात्र शैक्षणिक सत्र में मदद ले सकते थे.

"अगर हम परेशानी में किसी के पास जाते थे तो सबका एक ही जवाब होता था, 'बस आत्महत्या मत करना".
जतिन वाधवानी

सिर्फ 2023 में ही, राजस्थान के कोटा में आत्महत्या से कम से कम 25 छात्रों की मौत हो गई. पिछले कुछ साल से आत्महत्याओं की वजह से कोटा एक ऐसी बदनाम फैक्ट्री हो गई है जो हर साल बड़ी संख्या में भविष्य के इंजीनियरों और डॉक्टरों को तैयार कराती है. सिर्फ 2023 में 25 छात्रों की आत्महत्या, पिछले आठ साल में आत्महत्याओं का सबसे बड़ा आंकड़ा है.

मौजूदा और पूर्व दोनों ही छात्रों ने क्विंट फिट को बताया कि पिछले आठ वर्षों में इन परिसरों में कुछ खास बदलाव नहीं हुए हैं. हमने यह समझने के लिए काउंसलर्स और छात्रों से बात की कि आखिर इन कोचिंग सेंटरों में 'थेरेपी' की प्रक्रिया कैसे काम करती है. आखिर काउंसलर्स की ‘प्रक्रिया’ छात्रों को मदद क्यों नहीं कर पाती है?

काउंसलर्स की गलत जॉब डिटेल

कोटा में Unacademy के एक छात्र, अभिज्ञान ने कई कारण बताए जो प्रतियोगी परीक्षाओं की ट्रेनिंग ले रहे छात्रों की चिंताएं बढ़ाती हैं, मसलन नाम के बजाय रैंक से छात्रों की पहचान, कमरे में अकेले रहना या अकेलापन महसूस करना. तनाव से नींद नहीं आना. 

लेकिन एक 15 साल के छात्र जो दरअसल कुछ महीने पहले ही कोटा गया था, ने FIT को बताया कि दरअसल छात्रों की परेशानी से दूर-दूर तक काउंसलर्स वाकिफ नहीं हैं. कुछ छात्रों ने भी FIT से बातचीत में आरोप लगाया:

  • काउंसलर्स इस तरह से ट्रेन्ड नहीं है कि छात्रों के तनाव के साथ डील करें.

  • उन तक पहुंचना आसान नहीं है.

  • कभी कभी तो उनका रिस्पॉन्स फायदे से ज्यादा नुकसान कर देता है.   

बंसल क्लासेज के एक प्रवक्ता ने क्विंट फिट को बताया कि उन्होंने एक साइकोलॉजिस्ट यानि मनोवैज्ञानिक को नियुक्त किया है. लेकिन सच क्या है ? जिस मनोवैज्ञानिक अखिलेश जैन के बारे में हमें बताया गया और FIT ने जिनसे बात की उनकी मनोविज्ञान में कोई ट्रेनिंग ही नहीं है. 

हालांकि अखिलेश यह दावा करते हैं कि उन्होंने ‘ स्ट्रेस मैनेजमेंट’ में डिप्लोमा कोर्स किया है.   

"यदि आप आत्महत्याओं की गिनती कर रहे हैं, तो यह नंबर (23)  उतना महत्वपूर्ण नहीं है जितना आप इसे बता रहे हैं.  मैं शर्त लगा सकता हूं कि आपके शहर में पिछले साल कोटा की तुलना में अधिक आत्महत्या के मामले रहे होंगे. कोचिंग सेंटर की वजह से छात्र अपनी जान लेने के लिए मजबूर नहीं हो रहे हैं. यदि पढ़ाई की प्रणाली इसका कारण होती तो छात्र 10वीं और 12वीं कक्षा के परिणाम के बाद आत्महत्या कर लेते, वहां नाकामी ज्यादा होती है... "
अखिलेश जैन, चीफ मेंटल हेल्थ काउंसलर, बंसल क्लासेज, कोटा

FIT को एक ईमेल में, एलन की तरफ से आधिकारिक बयान में कहा गया कि उनके सभी काउंसलर्स कम से कम मनोविज्ञान में पोस्ट ग्रैजुएट होते हैं और ऐसे ही कैंडिडेट्स की भर्ती वो करते हैं, लेकिन सितंबर की शुरुआत में FIT ने एलन की वेबसाइट पर ऐसे काउंसलर्स के लिए नौकरी के लिए जिन योग्यताओं का विवरण देखा वो कुछ और ही कहानी बयां करता है. इसमें सिर्फ उन लोगों के आवेदन मंगाए गए थे जिनके पास बढ़िया कम्यूनिकेशन और काउंसलिंग स्किल थे.

जब फिट ने एलन की बेबसाइट पर जॉब डिस्क्रिप्शन देखा तो अलग कहानी पता चली

एक अन्य कोचिंग संस्थान, आकाश ने भी अपने लिए काउंसलर की नौकरी के लिए जो विज्ञप्ति दी थी उसमें भी काउंसलर्स के लिए ‘क्राइसिस मैनेजमेंट’ की जरूरत नहीं थी. इस जॉब को आकाश ने 16 अगस्त को पोस्ट किया था.

राव IIT अकेडमी में, संस्थान को भी किसी योग्य मेंटल हेल्थ एक्सपर्ट की जरूरत नहीं थी. उनकी वेबसाइट पर नौकरी की जो पोस्टिंग थी, उससे आप इसे समझ सकते हैं.. हालांकि, इसमें विज्ञापन की तारीख का जिक्र नहीं था. 

राव IIT एकेडमी भी योग्य मानसिक स्वास्थ्य पेशेवरों की तलाश में नहीं था.

काउंसलर्स की कमी भी बड़ी परेशानी 

हालांकि, समस्या न केवल नियुक्त किए जाने वाले काउंसलर्स की क्वालिटी का है बल्कि उनकी क्वांटिटी को लेकर भी दिक्कतें है. जैसा कि छात्रों ने बताया कि काउंसलर्स तक अपनी बात को लेकर जाना आसान काम नहीं है. FIT को शैक्षणिक वर्ष 2023-2024 का जो डाटा मिला है उसके मुताबिक: संकट में मदद की गुहार अक्सर अनसुनी रह जाती है.

कई समस्याओं के बीच, मदद की पुकार अक्सर अनसुनी रह जाती है

अभिज्ञान ने FIT को बताया, "ज्यादातर समय, जब हम किसी भी चीज से जूझते हैं तो हम अपने पसंदीदा शिक्षकों के पास जाते हैं. लेकिन अगर हम अच्छा स्कोर नहीं करते हैं, तो शिक्षक हमारी ओर देखते भी नहीं हैं".  

23 साल की अनाया (अनुरोध पर बदला हुआ नाम), नोएडा स्थित एक पीआर एग्जिक्यूटिव, जो 2018-2019 के बीच कैरियर प्वाइंट गुरुकुल में एक छात्र थी, अभिज्ञान की बातों से सहमत हैं.  

उनका आरोप है कोटा में रहने के दौरान उन्हें जातीय भेदभाव का सामना करना पड़ा. जहां भी वो बैठती थीं, उनके साथी कथित तौर पर उस जगह को गंगाजल से साफ करते थे. उनका आरोप है कि वे मेस में उनका "बहिष्कार" भी करते थे. लेकिन जब वो इस सबसे जूझ रही थी तो क्या कोई ऐसा था जिस तक वो अपनी बात रख सकती थी? वो बताती है कि ऐसा कोई नहीं था. वह FIT को बताती है कि शिक्षकों को कोई परवाह नहीं थी और वार्डन गुस्सा करती थी, चिल्लाती थी.

"हमारी कोचिंग पूरे साल में एक बार काउंसलिंग सेशन आयोजित करती थी. कतार में इतने सारे छात्र होते थे कि मेरी बारी आते आते काउंसलर जा चुके होते थे."
अनाया

गौर करने वाली बात यह है कि अगर छात्र किसी तरह काउंसलर्स को अपनी बात बता भी देते थे तो जो रिस्पॉन्स उनको मिलता था वो और ज्यादा हतोत्साहित करने वाला होता था.   

स्तुति (अनुरोध पर बदला हुआ नाम) जो अभी अमेरिका में PHD स्कॉलर हैं, और 2014- 2015 में एलन में एक छात्र थीं, वो भी कुछ इसी तरह की कहानी बताती हैं. वो कहती हैं कि जब वह एलन में थीं, तो संस्थान में पूरी कक्षा के लिए एक मेंटर हुआ करते थे - एलन पापा. 

वो कहती हैं, यह मेंटर छात्रों को बताते थे कि "कैसे बेहतर अंक लाएं, कैसे अपना समय अच्छे से मैनेज करें और कभी-कभी हमें हमारी जिंदगी बेकार होने की बात करते थे. वो आगे कहती हैं उनका काम बस इतना ही था.  
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'छात्र वास्तव में डिप्रेस्ड नहीं हैं ': कोटा के एक काउंसलर  

छात्रों पर डेली क्लास और असाइनमेंट का बोझ बहुत ज्यादा होता था. और काउंसलर्स की कम संख्या को देखते हुए अक्सर उनसे मिल पाना संभव नहीं होता था. (अभिज्ञान ने हाल ही में कोटा में फाइव डे वीक के लिए Change.org पर याचिका शुरू की है) लेकिन अगर वो किसी तरह से काउंसलर्स तक चले भी जाते थे तो वो सिर्फ कुछ फिक्स बातें बताते थे.

"...ध्यान केंद्रित करने में दिक्कत, मूड स्विंग, नाकामी का डर, ध्यान भटकाव, माता-पिता से झगड़ा, जरूरत से ज्यादा सोचना, रिलेशनशिप चैलेंज और मोबाइल फोन का एडिक्शन."
एलन के प्रवक्ता

अनएकेडमी की मनोवैज्ञानिक कोमल जैन का कहना है कि जब छात्र "किसी गंभीर परिस्थिति" से गुजर रहे होते हैं, तो उन्हें 15 मिनट या थोड़ा ज्यादा बात करने के लिए काफी चीजों को मैनेज करके आना पड़ता है. 

मोशन एजुकेशन की मनोवैज्ञानिक डॉ. प्रीति जैन इससे सहमत हैं. उनका कहना है कि जब ये छात्र आते हैं, तो उन्हें सलाह मिलती है ताकि वो अपने नकारात्मक विचारों को सकारात्मक विचारों में बदल सकें.

हालांकि, इन दोनों मनोवैज्ञानिकों से हटकर, बंसल क्लासेस के मुख्य मेंटल हेल्थ काउंसलर अखिलेश जैन, FIT को बताते हैं कि "छात्र अपने पर्सनल समस्याओं को लेकर हम पर भरोसा नहीं करते हैं क्योंकि उनको लगता है कि ऐसा करना उनके लिए सेफ नहीं हैं, क्योंकि काउंसलर्स संस्थान के ही स्टाफ होते हैं. "

मेंटल हेल्थ काउंसलर्स होने के बावजूद, अखिलेश यह भी कहते हैं कि जो छात्र "वास्तव में डिप्रेस्ड" हैं वे कभी मदद नहीं मांगते हैं, और केवल बहुत एक्सट्रीम मामलों में ही काउंसलिंग की जरूरत होती है.

अगर आप किसी के पास जाएंगे और पूछेंगे तो हर किसी के पास कुछ ना कुछ दिक्कतें होती हैं... क्या आप डिप्रेस्ड और तनावग्रस्त महसूस नहीं करते हैं?  मैं तो खुद महसूस करता हूं . लेकिन क्या इसका मतलब यह है कि मुझे काउंसलर की जरूरत है. अगर ऐसा होने लगे तो फिर सबको काउंसलिंग ही कराना पड़ेगा. यह सिर्फ मीडिया और पत्रकार हैं जो इसे तिल का ताड़ यानि इसे बड़ा मुद्दा बना रहे हैं"
अखिलेश जैन

अखिलेश इस बात को भी नहीं मानते कि अकेडमिक वजहों से छात्र तनाव में आ जाते हैं.. बल्कि वो इसका ठीकरा टीनएज रिलेशिनशिप (किशोरावस्था में बने संबंध या दोस्ती) पर फोड़ देते हैं.

अखिलेश जैन Fit से कहते हैं कि इसलिए बंसल क्लासेज में सिर्फ उन लोगों को ही लिया जाता है जिनमें कैलिबर यानि दमखम होता है .

“आखिर जिन बच्चों में काबिलियत नहीं है उन पर पेरेंट्स दबाव क्यों बनाते हैं? वो अपने बच्चों को यहां पढ़ने के लिए क्यों भेजते हैं जब वो यहां की फीस और रहने का खर्चा उठा नहीं सकते. पेरेंट्स मार्क्स को लेकर बच्चों पर दबाव बनाते रहते हैं उनको यह कहकर कि उनके लिए वो काफी त्याग और मेहनत कर रहे हैं. बच्चों में गिल्ट यानि अपराध बोध बढ़ाते हैं. आखिर हम किसी गदहे को घोड़ा तो नहीं बना सकते .“

लेकिन ट्रेंड और योग्य काउंसलर्स कोटा के लिए हो सकते हैं वरदान

एम्स दिल्ली में मेंटल हेल्थ एक्सपर्ट संचिता जैन FIT को बताती हैं, "अगर कोई छात्रों की चिंताएं नहीं समझ रहा और छात्रों की वाजिब परेशानियों को नहीं मानता है तो इससे छात्रों में असुरक्षा की भावना पैदा हो सकती है. वो कुछ ऐसा सोच सकते हैं कि "ओह, शायद यह कुछ ऐसा है जो मुझे नहीं करना चाहिए था" या "ऐसा लगता है कि यह मेरी गलती है"और इससे दूसरी समस्याएं पैदा हो जाती हैं.  

संचिता जैसी एक्सपर्ट का मानना है कि सिर्फ कोचिंग संस्थानों का काउंसलर नियुक्त कर लेना काफी नहीं है. संजना जैन, जो Sangath's Outlive के साथ आत्महत्या रोकथाम प्रशिक्षण में फेसिलिटेटर्स के तौर पर काम कर रही हैं, फिट को बताती हैं:

"अगर आप आत्महत्या की रोकथाम के बारे में खुद को संवेदनशील बनाना चाहते हैं तो कई ट्रेनिंग और स्किल कोर्स मौजूद हैं, जिनसे आप सीख सकते हैं... सिस्टम में कोई भी छात्र, प्रोफेसर, वार्डन आत्महत्या को रोकने में भूमिका निभा सकता है."

वाशी फोर्टिस और हीरानंदानी अस्पताल के डॉ केदार तिलवे का कहना है कि केवल सही मेंटल हेल्थ प्रोफेशनल को ही इन छात्रों का मार्गदर्शन करना चाहिए क्योंकि वे पहले से ही हाई स्ट्रेस वाले माहौल में हैं. और उनके खुद को नुकसान पहुंचाने की अधिक आशंका होती है.

उनका कहना है कि छात्र की देखभाल करने वाले प्रोफेशनल को मानसिक स्वास्थ्य प्राथमिक चिकित्सा की मूल बातें पता होनी चाहिए और मनोवैज्ञानिक संकट की स्पष्ट समझ होनी चाहिए.

डॉ केदार तिलवे कहते हैं, "संकट के वक्त मदद जरूरी है .. अगर वक्त पर मदद नहीं मिलती है तो ज्यादा नुकसान हो सकता है."

संचिता इस बात से सहमत हैं, वो कहती हैं: "शिक्षकों को इस तरह की ट्रेनिंग मिलनी चाहिए और चूंकि सबसे पहले छात्रों की परेशानियों को समझने में वो मददगार हो सकते हैं इसलिए उनकी भी ट्रेनिंग होनी चाहिए... क्योंकि कई बार, छात्र अपने शिक्षकों के साथ अधिक जुड़ते हैं. लेकिन इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि एक ऐसा माहौल बनाएं जहां स्टूडेंट्स सेफ महसूस करें.

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