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फिट वेबकूफ: क्या कोरोना वायरस के कुछ स्ट्रेन ‘ज्यादा खतरनाक’ हैं?

क्या देश के कुछ हिस्सों में कोरोना वायरस का ज्यादा खतरनाक स्ट्रेन है?

साखी चड्ढा
फिट
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कोरोना का कहर कुछ राज्यों में ज्यादा क्यों है, इसके कई कारण हो सकते हैं.
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कोरोना का कहर कुछ राज्यों में ज्यादा क्यों है, इसके कई कारण हो सकते हैं.
(फोटो: iStock/फिट)

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दावा

देश में COVID-19 मामलों में हर रोज बढ़त देखी जा रही है. वहीं कुछ राज्य और शहर इससे बुरी तरह प्रभावित हुए हैं. कोरोना का कहर कुछ राज्यों में ज्यादा क्यों है, इसके कई कारण हो सकते हैं, हालांकि इसकी एक वजह नोवल कोरोनोवायरस के अधिक घातक और संक्रामक स्ट्रेन की मौजूदगी बताई जा रही है.

पीटीआई की एक रिपोर्ट में इंदौर के डॉक्टरों ने कहा, "हमने महसूस किया है कि इंदौर बेल्ट में वायरस का जो स्ट्रेन है, वो ज्यादा घातक और संक्रामक है. इसके बारे में हमने NIV के साथ चर्चा की है और उन्हें इंदौर के कोविड-19 के मरीजों के सैंपल भेजने जा रहे हैं, ताकि वायरस की तुलना देश के बाकी कोरोना वायरस के मरीजों के सैंपल से की जा सके."

इसी तरह गुजरात में COVID-19 के ज्यादा केस की वजहों में भी वायरस के अधिक संक्रामक स्ट्रेन की बात कही गई, वहीं दूसरी ओर भारत में इससे होने वाली मौत की दर को वायरस के कम घातक स्ट्रेन से जोड़ा जा रहा है.

क्या वायरस में इस तरह के वैरिएशन हो रहे हैं? इस बारे में फिट ने दो वायरोलॉजिस्ट डॉ जैकब टी जॉन और डॉ शाहिद जमील से बात की है, जिनका कहना है कि इस बात का कोई आधार नहीं है कि वायरस में किसी खास म्यूटेशन (वायरस में जेनेटिक बदलाव) से ज्यादा लोगों की जान जा रही हो.

क्या म्यूटेशन से ज्यादा खतरनाक हो जाते हैं वायरस?

ज्यादातर वायरस का जेनेटिक मैटेरियल RNA या DNA होता है. नोवल कोरोना वायरस RNA वायरस है. इस तरह के RNA वायरस जब होस्ट कोशिकाओं के संपर्क में आते हैं, तो ये अपनी संख्या बढ़ाना शुरू कर देते हैं और हो सकता है कि इनमें बदलाव (म्यूटेशन) भी होने लगे. हालांकि इनमें ये मूल वायरस से ज्यादा अलग नहीं होता है.

हाल ही में, पश्चिम बंगाल के कल्याणी, नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ बायोमेडिकल जीनोमिक्स (NIBMG) के वैज्ञानिकों ने पाया कि SARS-CoV-2 में म्यूटेशन से 10 अलग-अलग प्रकार (क्लेड) बने और इनमें से, A2a टाइप अधिक हो सकता है.

लेकिन क्या वायरस में म्यूटेशन से उसका अधिक खतरनाक टाइप बन सकता है?

वायरोलॉजिस्ट डॉ जैकब टी जॉन बताते हैं, "इस तरह के वायरस में म्यूटेशन कोई अपवाद नहीं है. म्यूटेशन का मतलब ये नहीं है कि वायरस ज्यादा संक्रामक या घातक हो गया. ये एक जरा सा वैरिएशन है, लेकिन वायरस की सभी विशेषताओं में कोई खास बदलाव नहीं होगा."

म्यूटेशन का विश्लेषण और अध्ययन केवल वैज्ञानिक जिज्ञासा और उद्देश्यों के लिए है. इसका वायरस के ज्यादा जानलेवा होने से संबंध नहीं है.
डॉ जैकब टी जॉन

वो कहते हैं, "यहां तक कि NIBGM के पेपर में भी कहा गया है कि ये निष्कर्ष किसी समस्या का संकेत हो भी सकते हैं या नहीं भी हो सकते हैं. वो केवल इस चीज का वर्णन कर रहे हैं, इसे किसी विशेष परिणाम से नहीं जोड़ रहे हैं. यह एक अच्छी तरह से की गई स्टडी है, लेकिन हमें इसके रिजल्ट को लेकर परेशान होने की जरूरत नहीं है."

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वायरोलॉजिस्ट डॉ शाहिद जमील भी यही कहते हैं, "वायरस की सिक्वेंसिंग में लगातार बदलाव हो रहे हैं और नोवल कोरोना वायरस के हजारों सिक्वेंस मौजूद हैं. कुछ जीनोम के पोजिशन में म्यूटेशन अधिक बार हो सकता है. इन बदलाव के आधार पर लोग इसके ग्रुप (क्लेड) को नाम दे रहे हैं. ये सिर्फ वायरल चेन में प्रभावी बदलाव के बारे में बताते हैं. यह कहने का कोई आधार नहीं है कि म्यूटेशन एक-दूसरे के मुकाबले ज्यादा खतरनाक या कमजोर होते है."

वायरस में म्यूटेशन के कारण ज्यादा संक्रमण होने या ज्यादा गंभीर प्रभाव पड़ने के बारे में वो स्पष्ट करते हैं,

अब तक कोई सबूत नहीं है कि एक समूह दूसरे की तुलना में अधिक वायरल हो या बदतर बीमारी का कारण बनता हो. हम ऐसा कोई अनुमान लगाना शुरू भी नहीं कर सकते हैं क्योंकि जब लोग ओपन-सोर्स सिक्वेंस-शेयरिंग प्लेटफार्म पर सिक्वेंस सबमिट कर रहे हैं, तो इसका जिक्र नहीं किया जा रहा है कि वो माइल्ड डिजीज या गंभीर रूप से बीमार हुए लोगों से लिया गया है.

विश्व स्वास्थ्य संगठन में मुख्य वैज्ञानिक सौम्या स्वामीनाथन ने एक ऑनलाइन बातचीत में द प्रिंट को बताया, “कुछ क्लेड दूसरे की तुलना में कुछ भौगोलिक क्षेत्रों में अधिक हैं. लेकिन इनमें से किसी के भी क्लीनिकल नतीजों, डेथ रेट, गंभीरता या संक्रामकता में कोई अंतर नहीं है."

डॉ जमील कहते हैं कि इस बात की संभावना हो सकती है कि कुछ क्लेड तेजी से सर्कुलेट कर रहे हों, लेकिन इस बारे में बहुत स्पष्टता नहीं है. “एक बार जब हम प्रकोप को थोड़ा बेहतर समझ लें, तभी कुछ जान सकते हैं. लेकिन अभी तक, इसका कोई सबूत नहीं है. हम ऐसा नहीं लगता है कि इन म्यूटेशन से वैक्सीन के विकास पर बहुत ज्यादा प्रभाव पड़ेगा क्योंकि वायरस के वो भाग जो वैक्सीन तैयार करने के लिए महत्वपूर्ण हैं, उनमें कोई खास बदलाव नहीं हो रहा और ज्यादातर वायरस अपने मूल मेकअप को बनाए रखते हैं."

रिसर्च जर्नल नेचर के एक आर्टिकल ‘We Shouldn’t Worry When a Virus Mutates During Disease Outbreaks’ में इस बारे में कहा गया है कि म्यूटेशन के नतीजों को लेकर कोई दावा करने के लिए सावधानी से किए गए प्रयोगों और महामारी से जुड़े स्पष्ट सबूतों की जरूरत होती है.

डॉ जमील कहते हैं, ""इसलिए, यह दावा करना कि कुछ राज्यों और शहरों में अधिक मामलों के लिए कोई ज्यादा घातक स्ट्रेन जिम्मेदार है, पूरी तरह से निराधार है."

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