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योगगुरू बाबा रामदेव 25 अप्रैल को 'ई-एजेंडा आज तक' के एक स्पेशल सेशन में शामिल हुए, जहां उन्होंने लोगों को लॉकडाउन के दौरान कुछ एक्सरसाइज और प्रैक्टिस करने को कहा, जिससे उन्हें फायदा होगा.
ई-सेशन में बात करते हुए, रामदेव ने कहा कि अगर कोई शख्स सरसों के तेल को नाक के जरिए डालता है, तो पूरे रेसपिरेटरी ट्रैक में कोरोना वायरस होगा तो वो पेट में चला जाएगा और पेट में एसिड कोरोना को खत्म कर देगा.
रामदेव ने दावा किया कि पेट में मौजूद 'नेचुरल केमिकल' वायरस को 'मार' देंगे, जैसे साबुन, हैंडवॉश या हैंड सैनेटाइजर उसे खत्म कर देते हैं. वीडियो में 6 मिनट पर रामदेव को ये कहते हुए सुना जा सकता है.
वीडियो में करीब 5 मिनट पर रामदेव ये भी दावा करते हैं कि थोड़ी देर के लिए सांस रोकना, कोरोना वायरस के सेल्फ-टेस्टिंग मॉडल के तौर पर देखा जा सकता है.
रामदेव ने ई-सेशन में इस 'टेस्ट' को लाइव कर के भी दिखाया.
इंडिया टुडे, बिजनेस टुडे, फ्री प्रेस जर्नल समेत कई न्यूज आउटलेट्स ने रामदेव के दावों पर रिपोर्ट की. एक अखबार की क्लिपिंग, जिसमें इंडिया टुडे के आर्टिकल के जैसा ही टेक्स्ट था, ट्विटर पर भी सर्कुलेट हो रहा है.
हमें किसी मेडिकल जर्नल में ऐसी कोई न्यूज रिपोर्ट या आर्टिकल नहीं मिला, जो कोरोना वायरस के बारे में रामदेव द्वारा किए गए दावों का समर्थन करता हो.
हम इन दावों पर मेडिकल एक्सपर्ट्स की राय जानने के लिए उनसे भी बात की.
दिल्ली के इंद्रप्रस्थ्य अपोलो अस्पताल में इंटरनल मेडिसिन फिजिशियन, डॉ सुरंजीत चटर्जी ने इन दावों को खारिज कर दिया.
जब हमने उनसे पूछा कि क्या पेट में एसिड वायरस को मारने में सक्षम है, तो उन्होंने एक बार फिर शोध की कमी की ओर इशारा किया.
डॉ. चटर्जी ने कहा, “इसका सबूत कहां है? हमारे पास कोई शोध नहीं है. हम ऐसी बात कर सकते हैं, लेकिन कोई सबूत या शोध नहीं है. जब तक हमारे पास शोध नहीं हैं, तब तक हमें इस आधार पर बात नहीं करनी चाहिए.”
क्विंट से बात करते हुए, दिल्ली-एनसीआर में आर्टेमिस अस्पताल के क्रिटिकल केयर स्पेशलिस्ट, डॉ. सुमित रे ने भी कहा कि इस दावे को सपोर्ट करने के लिए कोई सबूत नहीं है कि नाक में कोई भी ड्रॉप, तेल आदि, कोरोना वायरस को पेट में डाल सकते हैं, जहां एसिड इसे मार देगा.
योगगुरू के सुझाए गए 'सेल्फ-टेस्टिंग' तरीके के संबंध में, डॉ चटर्जी ने कहा कि ये सच नहीं है.
क्विंट से उन्होंने कहा, “कोरोना वायरस वाले लगभग 80 प्रतिशत लोगों में लक्षण नहीं हैं. जब आपके फेफड़े प्रभावित होते हैं, तो आपका सांस रोकना एक समस्या है, जो कि सबसे ज्यादा 15-20 प्रतिशत लोगों को होता है. इसलिए, 80 प्रतिशत लोगों के लिए, ये बात कि आप अपनी सांस रोक सकते हैं, इसका कोई मतलब नहीं है क्योंकि अगर आपके फेफड़े प्रभावित नहीं हैं, तो आप आसानी से अपनी सांस रोक सकते हैं.”
उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि ये कोरोना वायरस के टेस्ट के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है.
डॉ रे ने ये भी चेतावनी दी कि ये आइडिया अपने आप में हानिकारक नहीं थे, लेकिन अगर लोग इसके प्रति सुरक्षा की गलत भावना विकसित कर लेंगे तो ये खतरनाक हो सकते हैं.
उन्होंने कहा, “इस तरह के आइडिया से सुरक्षा की झूठी भावना पैदा होती है और लोग इन चीजों को करने के कारण जरूरी सावधानी नहीं बरतेंगे, जिसका कोई प्रमाण भी नहीं है.”
डॉ रे ने कहा, “बाबा रामदेव जो सलाह देना चाहते हैं वो दे सकते हैं, लेकिन मेडिकल साइंस के आधार पर. यही कारण है कि, मेडिकल साइंस की समझ रखने वाले एक डॉक्टर के रूप में, मैं इसकी सलाह नहीं देता.”
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