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दौसा सुसाइड केस: डिलीवरी के दौरान महिला मरीज की हुई मौत के बाद पुलिस के द्वारा बिना किसी जांच के आईपीसी 302 यानी डॉक्टर के खिलाफ हत्या का मामला दर्ज कराया था.
इस बाबत आ रही मीडिया रिपोर्ट की मानें तो अपने कर्तव्य का हर संभव निर्वाह कर रही और एक संवेदनशील महिला चिकित्सक खुद पर लगे इल्जाम से इतनी आहत हुई कि उन्होंने अपनी ही जान ले ली. अपने लिखे सुसाइड नोट में डॉ अर्चना शर्मा ने खुद को निर्दोष बताया और कहा कि उनकी मौत ही शायद उन्हें निर्दोष साबित कर दे.
दौसा सुसाइड केस क्या है, क्या कहता है इस पर हमारे देश का कानून और डॉक्टर समुदाय की क्या है प्रतिक्रिया इस पर, जानें फिट हिंदी के इस लेख में.
दरअसल, राजस्थान के दौसा जिले में एक प्राइवेट हॉस्पिटल की महिला चिकित्सक डॉ. अर्चना शर्मा ने मंगलवार को कथित तौर पर आत्महत्या कर ली. पुलिस के अनुसार, डिलीवरी के दौरान एक गर्भवती महिला मरीज की मौत हो गई थी, जिसके बाद उसके खिलाफ हत्या का मामला दर्ज किया था.
इस मामले में पुलिस की लापरवाही साफ झलक रही है. सवाल ये उठाया जा रहा है कि बिना जांच सीधे आईपीसी 302 के तहत हत्या की एफआईआर पुलिस ने कैसे दर्ज कर ली.
IMA के एक्स प्रेसिडेंट डॉक्टर अजय कुमार ने फिट हिंदी को बताया, "ये मरीज का दुर्भाग्य है कि ऐसा हो गया, ऐसे में डॉक्टर के खिलाफ कानूनी कार्यवायी नहीं की जानी चाहिए. डॉक्टरों पर ऐसे मामलों में न आईपीसी 302 लग सकता है न आईपीसी 304 लगाया जा सकता है”.
उन्होंने ये भी कहा कि मरीज पोस्टपार्टम हेमरेज यानी या अत्यधिक ब्लीडिंग का शिकार थीं.
भारत के सुप्रीम कोर्ट ने 5 अगस्त, 2005 को जैकब मैथ्यू बनाम पंजाब राज्य और अन्य, पर दिए अपने फैसले में कहा था, "एक निजी शिकायत पर तब तक विचार नहीं किया जा सकता, जब तक कि शिकायतकर्ता ने आरोपी डॉक्टर की ओर से लापरवाही के आरोप का समर्थन करने के लिए किसी अन्य सक्षम डॉक्टर द्वारा दी गई विश्वसनीय राय के रूप में अदालत के समक्ष सबूत पेश नहीं किया है. जांच अधिकारी को, लापरवाही या चूक के आरोपी डॉक्टर के खिलाफ कार्रवाई करने से पहले, सरकारी सेवा में किसी डॉक्टर से, जो चिकित्सा पद्धति की उस शाखा में योग्य हैं, जिनसे निष्पक्ष राय देने की उम्मीद की जा सकती है और जो जांच में एकत्र किए गए तथ्यों पर बोलम्स टेस्ट (Bolam's test) लागू करें, एक स्वतंत्र और सक्षम चिकित्सा राय प्राप्त करनी होगी".
मेडिकल लीगल एक्स्पर्ट डॉ अश्विनी सेटया कहते हैं, "पुलिस ने इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय को अनदेखा किया है. यहां आईपीसी 302 लग ही नहीं सकता है".
डॉ अश्विनी सेटया की बात की पुष्टि सुप्रीम कोर्ट में प्रैक्टिस कर रहे सीनियर लॉयर ब्रिजेश कुमार मिश्रा ने भी की. उन्होंने बताया, " आईपीसी 302 तभी अप्लाइ करता है, जब साबित किया जा सकता है कि दोषी का इरादा हो मारने का, ऐसे इन्टेन्शन के बिना आईपीसी 302 में मामला दर्ज नहीं हो सकता है.
किसी डॉक्टर के खिलाफ धारा 302 का केस दर्ज होना कोर्ट के आदेशों का उल्लंघन है. इस मामले के विरोध में डॉक्टरों ने जयपुर, दिल्ली और यूपी में विरोध प्रदर्शन किया.
फेडरेशन ऑफ ऑब्स्टेट्रिक एंड गायनेकोलॉजिकल सोसाइटीज ऑफ इंडिया (FOGSI) ने कहा कि अस्पताल में जो हुआ उससे उन्हें दुख हुआ. “ऐसे मामलों में चिकित्सा लापरवाही के लिए क्लॉज लागू किया जाता है. लेकिन वहां की पुलिस ने हत्या के इरादे का प्रावधान लगाने की गलती की. इस कारण डॉक्टर अपमानित और पीड़ित महसूस कीं, जिसके कारण शर्म और हताशा से आत्महत्या करके उसकी मृत्यु हो गई”, एफओजीएसआई के अधिकारियों ने कहा.
फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया मेडिकल एसोसिएशन (FAIMA) डॉक्टर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष डॉ रोहन कृष्णन ने सोशल मीडिया का सहारा लिया और राजस्थान के मुख्यमंत्री से इस मामले में दखल देने का आग्रह किया.
हमारे देश की न्याय-व्यवस्था यही कहती है न कि कुछ दोषी भले ही बच जाएं, पर किसी एक भी निर्दोष को सजा न हो !? यहीं सवाल उठता है कि मौजूदा कानून-व्यवस्था में आखिर ये कैसी चूक चली आ रही है कि ऐसे वारदात रुक ही नहीं पा रहे हैं ?
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