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कोरोना वायरस के कहर को रोकने के लिए 160 से ज्यादा वैक्सीन कैंडिडेट अभी डेवलपमेंट फेज में हैं और उनमें से कम से कम 23 का ह्यूमन ट्रायल जारी है. कई वैक्सीन को कोरोना वायरस के खिलाफ 'रेस' में 'फ्रंट-रनर' कहा जा रहा है.
महामारी के खिलाफ हमारी लड़ाई में वैक्सीन डेवलप करना महत्वपूर्ण है, लेकिन COVID-19 के खिलाफ ये 'सिल्वर बुलेट' साबित होगी, ऐसा नहीं है. इस तथ्य से विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) भी इंकार नहीं करता.
वैक्सीन डेवलपमेंट में तेजी, उससे जुड़ी चिंताओं को फिट आपके सामने विस्तार से पेश कर रहा है.
दिसंबर में वायरस के बारे में हमें पहली बार पता चला, दुनिया भर की कंपनियों और सरकारों ने वैक्सीन बनाने के लिए एड़ी-चोटी एक कर दी. कुछ ने पहले से इस्तेमाल हो रहे तरीकों के जरिये वैक्सीन डेवलपमेंट का काम शुरू किया, वहीं यूएस-बेस्ड मॉडर्ना, नई तकनीकों का इस्तेमाल कर रहा है. ये सबसे तेजी से डेवलप किया जा रहा वैक्सीन है. अब तक सबसे तेजी से अप्रूव की गई वैक्सीन मम्प्स(गले में सूजन वाली एक बीमारी) की है, लेकिन इसमें भी 4 साल का वक्त लगा था.
'सतर्क’ ये शब्द काफी कुछ कहता है. हालांकि अब तक की स्टडी ट्रायल और शुरुआती आंकड़े बताते हैं कि हम वैक्सीन की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं, लेकिन बहुत कुछ ऐसा है जिसके बारे में हम अभी भी अनिश्चित हैं. तेजी से वैक्सीन का डेवलप होना खुशी की वजह हो सकती है लेकिन लंबे समय में ये चिंता का एक कारण भी हो सकता है.
दुनिया भर के पब्लिक हेल्थ प्रोफेशनल की चिंता है कि पहली जेनरेशन के वैक्सीन कैंडिडेट सबसे अच्छे नहीं हो सकते हैं. वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी में ड्रग डेवलपमेंट एंड रिसर्च में एक्सपर्ट माइकल एस किंच ने वाशिंगटन पोस्ट को बताया है, “असली नजारा शायद वैसा ही होने जा रहा है जैसा हमने एचआईवी/एड्स के साथ देखा था. एचआईवी की दवाएं काफी औसत दर्जे की हैं. मुझे डर है - और लोग इसे सुनना पसंद नहीं करते हैं, लेकिन मैं इसका लगातार प्रचार कर रहा हूं - हमें खुद को इस विचार के लिए तैयार करना होगा कि हमारे पास बहुत अच्छा वैक्सीन नहीं होगा. मेरा अनुमान है कि वैक्सीन की पहली जेनरेशन औसत दर्जे की हो सकती है.”
फिट के साथ बातचीत में, मंगलुरु के येनेपोया विश्वविद्यालय में बायोएथिक्स में सहायक प्रोफेसर और शोधकर्ता अनंत भान बताते हैं, “चिंता वैक्सीन के प्रमुख पहलुओं से जुड़ी है. कुछ सवालों के जवाब देने की जरूरत है, जैसे- क्या हमारे पास सुरक्षा और प्रभाव को लेकर पर्याप्त डेटा है? क्या हम इससे पैदा होने वाले इम्यून रिस्पॉन्स के बारे में पर्याप्त जानते हैं और ये रिस्पॉन्स कब तक प्रभावी रहेगा? हमें कितने डोज का प्रबंध करना चाहिए? क्या ये हर आयु वर्ग में प्रभावी है?”
ये सारी अनिश्चितता वायरस के नए होने से उभरती है. भले ही हम पहले की तुलना में SARS-CoV-2 से निपटने के लिए बेहतर तरीके से तैयार हैं, लेकिन वायरस के बारे में हमारा अधिकांश ज्ञान अभी भी अधूरा है. इंसानों में ये किस तरह की प्रतिरोधक क्षमता पैदा करता है, एंटीबॉडीज की अवधि कब तक रहती है, और रिइंफेक्शन की संभावना जैसे सवाल वैक्सीन डेवलपमेंट के पीछे बढ़ रहे हैं.
फोर्ब्स में प्रकाशित एक ओपिनियन पर विवाद छिड़ गया था. उसमें फेज 3 ट्रायल के जारी रहते ही वैक्सीन के इस्तेमाल के बारे में कहा गया था. आलोचनाओं का सामना करने के बाद, लेखक ने माना कि इस कदम से कई लोगों की जान दांव पर लग जाएगी.
लेकिन फेज 3 ट्रायल के जरूरत को कम आंकते हुए वैक्सीन के इस्तेमाल की चर्चा भी दिख रही है. इसके पीछे दिया जाने वाला तर्क सरल है: अगर हम अभी जिंदगी बचा सकते हैं, तो इंतजार क्यों करें?
लेकिन फेज 3 को अहम बनाता है इसमें शामिल होने वाले वॉलंटियर्स की बड़ी संख्या, जिससे छोटे ट्रायल में होने वाली चूक का पता लगाया जा सकता है.
ये वैक्सीन पर लोगों के भरोसे को कम कर सकता है. उदाहरण के लिए, मई में किए गए एक सर्वे में पाया गया कि सिर्फ 49% अमेरिकियों ने वैक्सीन उपलब्ध होने के बाद इसे लेने की योजना बनाई है. भारत में हमने बजाज ऑटो के मैनेजिंग डायरेक्टर राजीव बजाज को ये कहते हुए पाया कि वो COVID-19 वैक्सीन नहीं लेंगे, जब तक कि सरकार इसे 100% अनिवार्य नहीं कर देती.
कोलंबिया विश्वविद्यालय के वायरोलॉजिस्ट एंजेला रासमुसेन ने द वाशिंगटन पोस्ट को बताया है कि, "अगर उनमें से कोई भी फेज 3 ट्रायल में विफल रहता है, तो क्या लोग हार मानने वाले हैं? मैं वास्तव में चिंतित हूं कि लोग इस उम्मीद पर भरोसा कर रहे हैं कि एक वैक्सीन सब कुछ ठीक करने वाला है, और वैक्सीन किसी भी अन्य इलाज की तरह हमेशा सही नहीं हो सकते हैं. वे फेल होते हैं.”
तो फिर, वैक्सीन पर पूरी तरह से हमारी उम्मीदों को कैसे लागू किया जा सकता है?
लोगों पर इस्तेमाल के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन को कम से कम 50% तक प्रभावी कोरोना वायरस वैक्सीन की जरूरत होगी. समझने के लिए जानिए, फ्लू के वैक्सीन, सिर्फ 40 से 60% प्रभावी होते हैं, और डॉक्टर इसे लगवाने की सलाह देते हैं क्योंकि वे अस्पताल में भर्ती होने और मौतों के जोखिम को कम करते हैं.
एक वैक्सीन को अलग-अलग बिंदुओं से देखा जा सकता है. ये किसी व्यक्ति में संक्रमण को पूरी तरह से रोक सकता है, ये किसी व्यक्ति को गंभीर संक्रमण और अस्पताल में भर्ती होने से बचाने के लिए पर्याप्त हो सकता है, या ये दोनों कर सकता है. किसी भी केस में, ये मदद ही करेगा.
इसके अलावा, आबादी के हर्ड इम्युनिटी प्राप्त करने या वायरस को पूरी तरह से मिटाने के लिए, ये माना जाता है कि करीब दो-तिहाई आबादी में वैक्सीनेशन करनी होगी. इन हालात में 50% प्रभावी वैक्सीन भी मददगार होगी क्योंकि ये संक्रमण दर को कम कर सकता है और जान बचाने में मदद कर सकता है.
इसके साथ ही इससे जुड़़ी सूचना के प्रसार में पारदर्शिता होनी चाहिए. ये सब जनता को बताना होगा ताकि उनके सामने स्पष्ट और ज्यादा यथार्थवादी तस्वीर हो कि वैक्सीन क्या कर सकता है और क्या नहीं, और क्यों उनकी ओर से नजरअंदाज विनाशकारी हो सकती है.
वैक्सीन होने के बावजूद, रिइंफेक्शन, एंटीबॉडी की समय अवधि जैसे वैक्सीन और बीमारी से जुड़े सवालों के जवाब समय बीतने के साथ ही पता चलेंगे.
अनंत भान कहते हैं "वैक्सीन महत्वपूर्ण हैं लेकिन हमें उन्हें किसी जादुई समाधान के रूप में नहीं देखना चाहिए."
“हम वैक्सीन डेवलपमेंट को प्रोत्साहित करते हैं और एक असरदार वैक्सीन की उम्मीद करते हैं. लेकिन हमें याद रखना चाहिए कि इसमें कुछ समय लगेगा. अगर ये आ भी जाए तो तुरंत सभी के लिए उपलब्ध नहीं हो सकता है. ये सब देखते हुए, हमें सार्वजनिक स्वास्थ्य उपायों के महत्व को मजबूत करने की जरूरत है जिन्हें हम पहले से अच्छी तरह जानते हैं.”
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Published: 08 Aug 2020,02:03 PM IST