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COVID-19: क्या 50% सफल वैक्सीन भी असरदार साबित हो सकती है?

वैक्सीन डेवलपमेंट की रिकॉर्ड तोड़ स्पीड और चिंताएं

साखी चड्ढा
फिट
Updated:
कम समय में डेवलप वैक्सीन हमारी जानकारी को कैसे प्रभावित करता है?
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कम समय में डेवलप वैक्सीन हमारी जानकारी को कैसे प्रभावित करता है?
(फोटो: फिट हिंदी)

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कोरोना वायरस के कहर को रोकने के लिए 160 से ज्यादा वैक्सीन कैंडिडेट अभी डेवलपमेंट फेज में हैं और उनमें से कम से कम 23 का ह्यूमन ट्रायल जारी है. कई वैक्सीन को कोरोना वायरस के खिलाफ 'रेस' में 'फ्रंट-रनर' कहा जा रहा है.

महामारी के खिलाफ हमारी लड़ाई में वैक्सीन डेवलप करना महत्वपूर्ण है, लेकिन COVID-19 के खिलाफ ये 'सिल्वर बुलेट' साबित होगी, ऐसा नहीं है. इस तथ्य से विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) भी इंकार नहीं करता.

वैक्सीन डेवलपमेंट में तेजी, उससे जुड़ी चिंताओं को फिट आपके सामने विस्तार से पेश कर रहा है.

वैक्सीन डेवलपमेंट की रिकॉर्ड तोड़ स्पीड और चिंताएं

(फोटो: iStock)

दिसंबर में वायरस के बारे में हमें पहली बार पता चला, दुनिया भर की कंपनियों और सरकारों ने वैक्सीन बनाने के लिए एड़ी-चोटी एक कर दी. कुछ ने पहले से इस्तेमाल हो रहे तरीकों के जरिये वैक्सीन डेवलपमेंट का काम शुरू किया, वहीं यूएस-बेस्ड मॉडर्ना, नई तकनीकों का इस्तेमाल कर रहा है. ये सबसे तेजी से डेवलप किया जा रहा वैक्सीन है. अब तक सबसे तेजी से अप्रूव की गई वैक्सीन मम्प्स(गले में सूजन वाली एक बीमारी) की है, लेकिन इसमें भी 4 साल का वक्त लगा था.

अमेरिका के डॉ. एंथोनी फाउची समेत कई लोग, अगले साल की शुरुआत में वैक्सीन के इस्तेमाल को लेकर 'सतर्क आशावादी’ हैं. रूस में शोधकर्ता दावा कर रहे हैं कि उनके पास कुछ हफ्तों में वैक्सीन होगा.

'सतर्क’ ये शब्द काफी कुछ कहता है. हालांकि अब तक की स्टडी ट्रायल और शुरुआती आंकड़े बताते हैं कि हम वैक्सीन की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं, लेकिन बहुत कुछ ऐसा है जिसके बारे में हम अभी भी अनिश्चित हैं. तेजी से वैक्सीन का डेवलप होना खुशी की वजह हो सकती है लेकिन लंबे समय में ये चिंता का एक कारण भी हो सकता है.

दुनिया भर के पब्लिक हेल्थ प्रोफेशनल की चिंता है कि पहली जेनरेशन के वैक्सीन कैंडिडेट सबसे अच्छे नहीं हो सकते हैं. वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी में ड्रग डेवलपमेंट एंड रिसर्च में एक्सपर्ट माइकल एस किंच ने वाशिंगटन पोस्ट को बताया है, “असली नजारा शायद वैसा ही होने जा रहा है जैसा हमने एचआईवी/एड्स के साथ देखा था. एचआईवी की दवाएं काफी औसत दर्जे की हैं. मुझे डर है - और लोग इसे सुनना पसंद नहीं करते हैं, लेकिन मैं इसका लगातार प्रचार कर रहा हूं - हमें खुद को इस विचार के लिए तैयार करना होगा कि हमारे पास बहुत अच्छा वैक्सीन नहीं होगा. मेरा अनुमान है कि वैक्सीन की पहली जेनरेशन औसत दर्जे की हो सकती है.”

कम समय में डेवलप वैक्सीन हमारी जानकारी को कैसे प्रभावित करता है?

फिट के साथ बातचीत में, मंगलुरु के येनेपोया विश्वविद्यालय में बायोएथिक्स में सहायक प्रोफेसर और शोधकर्ता अनंत भान बताते हैं, “चिंता वैक्सीन के प्रमुख पहलुओं से जुड़ी है. कुछ सवालों के जवाब देने की जरूरत है, जैसे- क्या हमारे पास सुरक्षा और प्रभाव को लेकर पर्याप्त डेटा है? क्या हम इससे पैदा होने वाले इम्यून रिस्पॉन्स के बारे में पर्याप्त जानते हैं और ये रिस्पॉन्स कब तक प्रभावी रहेगा? हमें कितने डोज का प्रबंध करना चाहिए? क्या ये हर आयु वर्ग में प्रभावी है?”

“जब आप समय सीमा को कम करते हैं, तो आप इन सवालों का उत्तर देने में सक्षम नहीं हो सकते हैं. उदाहरण के लिए अब अगर आप सिर्फ 2-3 महीने के इम्यूनिटी का सबूत दे रहे हैं और उस आधार पर मार्केटिंग के लिए लाइसेंस लेते हैं, तो इससे लॉन्ग-टर्म में सुरक्षा को लेकर सवाल बने रहेंगे. उसके लिए, हमें कुछ महीनों या सालों तक इंतजार करना होगा. ”
अनंत भान

ये सारी अनिश्चितता वायरस के नए होने से उभरती है. भले ही हम पहले की तुलना में SARS-CoV-2 से निपटने के लिए बेहतर तरीके से तैयार हैं, लेकिन वायरस के बारे में हमारा अधिकांश ज्ञान अभी भी अधूरा है. इंसानों में ये किस तरह की प्रतिरोधक क्षमता पैदा करता है, एंटीबॉडीज की अवधि कब तक रहती है, और रिइंफेक्शन की संभावना जैसे सवाल वैक्सीन डेवलपमेंट के पीछे बढ़ रहे हैं.

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क्या हम फेज 3 ट्रायल को छोड़ सकते हैं?

फोर्ब्स में प्रकाशित एक ओपिनियन पर विवाद छिड़ गया था. उसमें फेज 3 ट्रायल के जारी रहते ही वैक्सीन के इस्तेमाल के बारे में कहा गया था. आलोचनाओं का सामना करने के बाद, लेखक ने माना कि इस कदम से कई लोगों की जान दांव पर लग जाएगी.

लेकिन फेज 3 ट्रायल के जरूरत को कम आंकते हुए वैक्सीन के इस्तेमाल की चर्चा भी दिख रही है. इसके पीछे दिया जाने वाला तर्क सरल है: अगर हम अभी जिंदगी बचा सकते हैं, तो इंतजार क्यों करें?

लेकिन फेज 3 को अहम बनाता है इसमें शामिल होने वाले वॉलंटियर्स की बड़ी संख्या, जिससे छोटे ट्रायल में होने वाली चूक का पता लगाया जा सकता है.

“फेज 3 स्टडी के पीछे एक वजह होती है, जो सुरक्षा और प्रभाव को समझने में मदद करती है. मेरी राय में और इस डोमेन में काम करने वाले अधिकांश अन्य लोगों की राय में, इन ट्रायल से मिले सबूत के बिना लोगों का टीकाकरण करना एक बुद्धिमान फैसला नहीं होगा. आपको इस प्रमाण के बिना अलग-अलग आयु वर्गों और आबादी में टीके के प्रभाव, सुरक्षा और उपयोगिता के बारे में पर्याप्त जानकारी नहीं हो सकती है.”
अनंत भान

ये वैक्सीन पर लोगों के भरोसे को कम कर सकता है. उदाहरण के लिए, मई में किए गए एक सर्वे में पाया गया कि सिर्फ 49% अमेरिकियों ने वैक्सीन उपलब्ध होने के बाद इसे लेने की योजना बनाई है. भारत में हमने बजाज ऑटो के मैनेजिंग डायरेक्टर राजीव बजाज को ये कहते हुए पाया कि वो COVID-19 वैक्सीन नहीं लेंगे, जब तक कि सरकार इसे 100% अनिवार्य नहीं कर देती.

हमारे पास अभी तक जानवरों पर की गई स्टडी और छोटे ह्यूमन ट्रायल के प्रारंभिक डेटा हैं. एक बड़े समूह पर इस्तेमाल किए जाने पर वैक्सीन की कहानी पूरी तरह से बदल सकती है. उदाहरण के लिए, एफडीए ने 22 केस स्टडी देखी है जहां फेज 2 और फेज 3 ट्रायल में अलग परिणाम देखने को मिले.

कोलंबिया विश्वविद्यालय के वायरोलॉजिस्ट एंजेला रासमुसेन ने द वाशिंगटन पोस्ट को बताया है कि, "अगर उनमें से कोई भी फेज 3 ट्रायल में विफल रहता है, तो क्या लोग हार मानने वाले हैं? मैं वास्तव में चिंतित हूं कि लोग इस उम्मीद पर भरोसा कर रहे हैं कि एक वैक्सीन सब कुछ ठीक करने वाला है, और वैक्सीन किसी भी अन्य इलाज की तरह हमेशा सही नहीं हो सकते हैं. वे फेल होते हैं.”

तो फिर, वैक्सीन पर पूरी तरह से हमारी उम्मीदों को कैसे लागू किया जा सकता है?

क्या 50% सफल वैक्सीन भी असरदार साबित हो सकती है?

(फोटो: iStock)

लोगों पर इस्तेमाल के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन को कम से कम 50% तक प्रभावी कोरोना वायरस वैक्सीन की जरूरत होगी. समझने के लिए जानिए, फ्लू के वैक्सीन, सिर्फ 40 से 60% प्रभावी होते हैं, और डॉक्टर इसे लगवाने की सलाह देते हैं क्योंकि वे अस्पताल में भर्ती होने और मौतों के जोखिम को कम करते हैं.

एक वैक्सीन को अलग-अलग बिंदुओं से देखा जा सकता है. ये किसी व्यक्ति में संक्रमण को पूरी तरह से रोक सकता है, ये किसी व्यक्ति को गंभीर संक्रमण और अस्पताल में भर्ती होने से बचाने के लिए पर्याप्त हो सकता है, या ये दोनों कर सकता है. किसी भी केस में, ये मदद ही करेगा.

अगर वैक्सीन संक्रमण से पूरी तरह इम्युनिटी नहीं दे सकता और सिर्फ गंभीर लक्षणों को रोकने में मदद करता है , तो एक व्यक्ति को सावधानी बरतनी होगी - क्योंकि वो वैक्सीन लगने के बावजूद वाहक हो सकता है.

इसके अलावा, आबादी के हर्ड इम्युनिटी प्राप्त करने या वायरस को पूरी तरह से मिटाने के लिए, ये माना जाता है कि करीब दो-तिहाई आबादी में वैक्सीनेशन करनी होगी. इन हालात में 50% प्रभावी वैक्सीन भी मददगार होगी क्योंकि ये संक्रमण दर को कम कर सकता है और जान बचाने में मदद कर सकता है.

इसके साथ ही इससे जुड़़ी सूचना के प्रसार में पारदर्शिता होनी चाहिए. ये सब जनता को बताना होगा ताकि उनके सामने स्पष्ट और ज्यादा यथार्थवादी तस्वीर हो कि वैक्सीन क्या कर सकता है और क्या नहीं, और क्यों उनकी ओर से नजरअंदाज विनाशकारी हो सकती है.

वैक्सीन होने के बावजूद, रिइंफेक्शन, एंटीबॉडी की समय अवधि जैसे वैक्सीन और बीमारी से जुड़े सवालों के जवाब समय बीतने के साथ ही पता चलेंगे.

कॉन्टैक्ट, ट्रेस, आइसोलेट, मास्क और सोशल डिस्टेंसिंग जारी रखें

अनंत भान कहते हैं "वैक्सीन महत्वपूर्ण हैं लेकिन हमें उन्हें किसी जादुई समाधान के रूप में नहीं देखना चाहिए."

“फिलहाल हम ये पक्के तौर पर जानते हैं कि मास्क, हाथ की स्वच्छता, सोशल डिस्टेंसिंग जैसी कुछ चीजें बेहद प्रभावी हैं. लेकिन हम किसी वैक्सीन के स्थायी प्रभावों के बारे में ज्यादा नहीं जानते हैं.”
अनंत भान

“हम वैक्सीन डेवलपमेंट को प्रोत्साहित करते हैं और एक असरदार वैक्सीन की उम्मीद करते हैं. लेकिन हमें याद रखना चाहिए कि इसमें कुछ समय लगेगा. अगर ये आ भी जाए तो तुरंत सभी के लिए उपलब्ध नहीं हो सकता है. ये सब देखते हुए, हमें सार्वजनिक स्वास्थ्य उपायों के महत्व को मजबूत करने की जरूरत है जिन्हें हम पहले से अच्छी तरह जानते हैं.”

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Published: 08 Aug 2020,02:03 PM IST

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