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विशाखापत्तनम गैस लीक:स्टाइरीन गैस का मानव शरीर पर दिखेगा लंबा असर?

विशाखापत्तनम में गैस लीक ने 10 से ज्यादा जानें लीं और 1,000 से ज्यादा लोग बीमार हो गए हैं

अंकिता शर्मा
फिट
Updated:
विशाखापत्तनम में गैस लीक के बाद भयानक मंजर,सड़क पर बदहवास दिखे लोग
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विशाखापत्तनम में गैस लीक के बाद भयानक मंजर,सड़क पर बदहवास दिखे लोग
(फोटो: PTI/फिट)

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आंध्र प्रदेश के विशाखापत्तनम के आरआर वेंकटपुरम गांव में पॉलीस्टीरीन बनाने वाली एलजी पॉलिमर प्लांट में गैस लीकेज ने कई लोगों की जान ले ली. 11 लोगों की मौत हो चुकी है. इस हादसे के बाद लोग सड़कों पर बेहोश, बदहवास दिखे. 1000 लोग बीमार पड़ गए.

राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDRF) ने कहा कि, “ये एक रासायनिक आपदा है. प्रतिक्रिया के लिए रासायनिक पक्ष पर, रासायनिक प्रबंधन पक्ष पर, चिकित्सीय पक्ष के साथ-साथ निकासी पक्ष पर विशेषज्ञता की आवश्यकता होती है. प्रधानमंत्री ने मीटिंग में इस बात का जायजा लिया कि बोर्ड की प्रतिक्रिया क्या होनी चाहिए.”

स्टाइरीन गैस के संपर्क में आए लोगों पर अभी और आगे कैसा नुकसान देखने को मिल सकता है, इसे विस्तार से समझिए.

वेस्ट विशाखापत्तनम की एसीपी स्वरूप रानी ने हमें बताया, "करीब 5,000 टन पॉलीमर दो टैंकों में रखे गए थे और स्टोरेज सिस्टम में थे. पॉलीमर होने की वजह से ऑटोमेटिक चेन रिएक्शन हुआ. गर्मी के कारण, गैस बाहर आ गई."

स्टाइरीन एक ज्वलनशील गैस है जिसका इस्तेमाल पॉलीस्टीरिन और प्लास्टिक इंजीनियरिंग में किया जाता है.

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स्टाइरीन क्या है?

यूएस के व्यावसायिक सुरक्षा और स्वास्थ्य प्रशासन के मुताबिक स्टाइरीन का इस्तेमाल प्लास्टिक, रबर और रेजिन के बनाने में किया जाता है. बहुत से कारखाने के कर्मचारी जो टब, नाव, शावर वगैरह बनाते हैं, वो इस केमिकल के संपर्क में आते हैं.

यूएस नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन द्वारा संचालित एक वेबसाइट टॉक्स टाउन के मुताबिक, स्टाइरीन का इस्तेमाल फूड कंटेनर, लेटेक्स, खिलौने बनाने के लिए भी किया जाता है. ये गाड़ियों से निकलने वाले धुएं और सिगरेट के धुएं में भी पाया जा सकता है. कुछ फल, सब्जियां, मीट, नट्स, और पेय पदार्थों में प्राकतिक रूप से स्टाइरीन हो सकते हैं.

स्टाइरीन शरीर पर कैसे असर डालता है?

अमेरिका स्थित पर्यावरण संरक्षण एजेंसी (EPA) के मुताबिक, स्टाइरीन से थोड़ी देर के लिए संपर्क यानी एक्यूट एक्सपोजर से म्यूकस मेम्ब्रेन में जलन, आंखों में जलन और रेस्पिरेटरी सिस्टम पर असर के अलावा गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल असर हो सकता है. वहीं, लंबे समय तक एक्सपोजर (क्रोनिक) में सेंट्रल नर्वस सिस्टम पर असर पड़ता है. सिरदर्द, थकान, कमजोरी और डिप्रेशन, सुनने की क्षमता में कमी आ सकती है.

सांस लेने, त्वचा के जरिये या मुंह के जरिये निगलने से स्टाइरीन शरीर के अंदर पहुंचता है.

FIT ने क्रिटिकल केयर स्पेशलिस्ट डॉ. सुमित रे से बात की और स्टाइरीन से संबंधित लक्षणों और स्वास्थ्य के खतरों को समझा. उन्होंने हमें बताया,

“इसकी तीव्र विषाक्तता या स्टाइरीन के स्तर में अचानक बढ़त फेफड़ों को नुकसान पहुंचाती है और फेफड़ों को ऑक्सीजन लेने में रुकावट पैदा करती है. फेफड़ों को क्षति पहुंचने की वजह से फेफड़ो में जकड़न की समस्या होने लगती है.”

उन्होंने आगे कहा, "इससे नर्वस सिस्टम पर असर पड़ता है और साथ ही असंतुलन पैदा होता है. हालांकि, अभी इसपर साफ-साफ जानकारी नहीं है. लेकिन कुछ हद तक असंतुलन और भटकाव महसूस होता है."

डॉ. रे के मुताबिक, लैब स्टडी से पता चला है कि ये कुछ मामलों में लीवर डैमेज का भी कारण बनता है.

EPA के मुताबिक ये कैंसर का कारण भी बन सकता है, लेकिन स्टाइरीन एक्सपोजर और ल्यूकेमिया और लिम्फोमा के बढ़ते जोखिम के संबंध पर कई महामारी विज्ञान के अध्ययन के बावजूद, कोई निर्णायक सबूत नहीं है.

इस बीच, एम्स के डायरेक्टर रणदीप गुलेरिया ने इस बारे में मीडिया को जानकारी देते हुए कहा,

“लॉन्ग टर्म इफेक्ट की संभावना कम है क्योंकि ये कंपाउंड मेटाबोलाइज होता है और शरीर को जल्दी से छोड़ देता है. ये क्रोनिक एक्सपोजर नहीं बल्कि एक्यूट एक्सपोजर है यानी कम समय तक लोग संपर्क में रहे हैं. हालांकि, हमें इसे और देखना होगा.”
डॉ. रणदीप गुलेरिया

रिकवरी

डॉ. सुमित रे के मुताबिक, "गंभीर मामलों में फेफड़ों को पहुंच चुकी क्षति को ठीक करने के लिए कोई दवा नहीं है. पहले सपोर्टिव केयर, ऑक्सीजन दी जानी चाहिए. इसे फेफड़ों के सेल का केमिकल न्यूमोनाइटिस कहा जाता है. अगर फेफड़ों की क्षति गंभीर है, तो रिकवरी मुश्किल हो सकती है. उन्हें वेंटिलेटर की जरूरत हो सकती है. कुछ लोगों को लॉन्ग टर्म लंग डैमेज हो सकता है."

एक्सपर्ट्स का ये भी मानना है कि कमजोर और बुजुर्ग लोगों के लिए रिकवरी मुश्किल हो सकती है.

डॉक्टरों का सुझाव है कि सबसे पहले इलाके और लोगों को डिकंटेमिनेट यानी जहरीली गैस को हटाने का काम किया जाए. फेफड़े के अंदर जो गया है उसे कम नहीं किया जा सकता है, लेकिन त्वचा के एक्सपोजर को कम किया जा सकता है.

कोरोना वायरस के प्रकोप के कारण पहले से ही स्वास्थ्य सुविधाओं पर काफी काम का दबाव है. अगर ज्यादा संख्या में लोगों को वेंटिलेटर की जरूरत पड़ी तो स्थानीय अस्पतालों के लिए ये चुनौती होगी.अब तक, करीब 800 लोग अस्पताल में भर्ती हो चुके हैं, जिनमें से 20-25 की हालत गंभीर है.

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Published: 07 May 2020,07:22 PM IST

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