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World Thalassemia Day 2023: थैलेसीमिया भारत में स्वास्थ्य चिंता का विषय है. पुराने अकड़ों के अनुसार, हर साल भारत में लगभग 10,000 बच्चे थैलीसीमिया की समस्या के साथ पैदा होते हैं और 1.5 लाख लोग इस बीमारी के साथ जी रहे हैं. भारत दुनिया की थैलेसीमिया राजधानी है. यह बीमारी देश के कुछ क्षेत्रों में ज्यादा पाई जाती है, जैसे पंजाब, हरियाणा और गुजरात. एक्सपर्ट्स के अनुसार, देश में थैलीसीमिया मरीजों की संख्या दिन ब दिन बढ़ रही है पर, इसका सही आंकड़ा किसी एक जगह उपलब्ध नहीं है.
वर्ल्ड थैलीसीमिया डे पर फिट हिंदी ने देश में थैलेसीमिया के मरीजों से जुड़ी समस्याओं के बारे में गहराई से जानने की कोशिश की.
शारीरिक और मानसिक परेशानियों के साथ-साथ इस डिसऑर्डर का 95% खर्च थैलेसीमिया मरीज अपनी जेब से भरते हैं.
फिट हिंदी ने TPAG की सदस्य सचिव, अनुभा तनेजा मुखर्जी से बात की. क्या देश में थैलीसीमिया के मरीजों की संख्या कम हुई है सवाल पर ये था उनका कहना,
हालांकि NHA ने TPAG को आश्वासन दिया है कि एक पोर्टल बन रहा है, जिसमें सिकल सेल एनीमिया और थैलेसीमिया समस्या के साथ जन्में बच्चों को जन्म लेते ही रजिस्टर किया जाएगा.
थैलीसीमिया के मरीजों की परेशानी पर वीरेश आगे कहते हैं,
"थैलेसीमिया के मरीज कई कठिनाइयों से गुजरते हैं, जिनमें सबसे पहले है इलाज के स्तर में असमानता. कुछ संस्थान बहुत बेहतरीन तरीके से यह सेवाएं दे रही हैं, जबकि कुछ संस्थानों के पास प्राथमिक सुविधाओं का भी अभाव है."
TPAG के सदस्यों ने कहा कि ब्लड में एचआईवी (HIV), एचसीवी और दूसरे परीक्षणों के लिए नैट (NAT) जांच स्वर्ण मानक माना जाता है, जिसका प्रयोग ब्लड की जांच के लिए किया जाना बेहद महत्वपूर्ण है. यह सुविधा अभी कुछ ही ब्लड बैंकों में उपलब्ध है. थैलेसीमिया के मरीजों को महीने में दो से तीन बार ब्लड दिया जाता है, जो कि ब्लड से होने वाले संक्रमणों के जोखिम बढ़ा देते हैं. उन्हें ब्लड से होने वाले संक्रमणों के जोखिम से बचाने के लिए यह आवश्यक है कि उन्हें केवल नैट (NAT) जांच किया गया ब्लड ही उपलब्ध कराएं.
वीरेश के अनुसार, सेफ ब्लड की उपलब्धता के लिए स्वैच्छिक रक्तदान (voluntary blood donation) बेहद जरुरी है और इस क्षेत्र में काम करने की आवश्यकता है.
निष्ठा आगे कहती हैं, "आयरन कीलेटर जो है, उनका साइड इफेक्ट इतना ज्यादा होता है कि वह अचानक से हमारे सामने आता है और जिसके कारण काफी ऑर्गन डैमेज भी होते हैं और इम्यूनिटी फैलियर भी होते हैं और ऐसा ही कुछ मेरे साथ भी हुआ था जब मैं दसवीं की कक्षा में थी, एक आयरन कीलेटर मुझे रिएक्ट कर गया था जिसके कारण में 3 महीने स्कूल नहीं जा पाई. वह मेरा सबसे कठिन समय रहा और उसके बाद अभी दोबारा ऐसा हुआ जिसकी वजह से उसी समय का जो एक साइड इफेक्ट था वह रिपीट हुआ मेरे साथ और मेरे प्लेटलेट्स फिर से बहुत कम हुए जिससे मैंने धीरे धीरे रिकवर किया और अब आगे बढ़ी हूं".
बीटा थैलेसीमिया एक जेनेटिक स्थिति है, जिसमें बीटा ग्लोबिन चेन के म्यूटेशन के कारण एनीमिया या खून में हीमोग्लोबिन की कमी हो जाती है.
थैलेसीमिया इंटरमीडिया से पीड़ित बच्चों को कम बार ट्रांसफ्यूज़न कराना पड़ता है. थैलेसीमिया मेजर या इंटरमीडिया से पीड़ित बच्चों में एचबीबी जीन की दोनों प्रतियों में म्यूटेशन हो जाता है, जो बीटा ग्लोबिन प्रोटीन का संश्लेषण (synthesis) करते हैं. थैलेसीमिया माईनर या कैरियर्स में एचबीबी जीन की एक प्रति में म्यूटेशन होता है और उन्हें आम तौर से ट्रांसफ्यूज़न की जरूरत नहीं हुआ करती है.
थैलेसीमिया माईनर के मरीजों का निदान एचपीएलसी स्क्रीनिंग में बढ़े हुए एचबीए2 से हो सकता है. थैलेसीमिया इंटरमीडिया/मेजर के मरीजों में एचबीएफ बढ़ा हुआ होता है. इन मरीजों में म्यूटेशन की जांच करने के लिए डीएनए डायग्नोस्टिक तकनीकों जैसे आर्म्स पीसीआर, सैंगर सीक्वेंसिंग, नैक्स्ट जनरेशन सीक्वेंसिंग, एमएलपीए का उपयोग किया जा सकता है.
बीते साल यानी 2022 से 2023 के थैलीसीमिया डे तक कुछ बदलाव आए हैं, जिनके बारे में फिट हिंदी को TPAG की संस्थापक सदस्य और लेक्चरर निष्ठा मदान ने बताया.
निष्ठा मदान आगे कहती हैं, "पिछले साल के थैलेसीमिया दिवस से लेकर अब तक कुछ अच्छे बदलाव हुए हैं और कुछ बुरे. अच्छे में यह है कि आरडीएनए ने थैलेसीमिया के मरीजों के लिए एक इंश्योरेंस स्कीम लागू कर रही है, यह राइट्स ऑफ पर्सन विद डिसेबिलिटी (Rights Of Person With Disability) एक्ट का एक अहम क्लोज (clause) भी है, जिसको इंप्लीमेंट किया गया है".
देश की सरकार से थैलीसीमिया के मरीजों को क्या उम्मीदें हैं और वो क्या मांगें हैं, जो वो सरकार से लगातार कर रहे हैं, के सवाल पर अनुभा तनेजा मुखर्जी ने NAT ब्लड टेस्टिंग के अलावा 4 मांगों पर जोर देते हुए ये बताया,
1. थैलेसीमिया के मरीज और दूसरे मरीज जो रेगुलर ट्रांसफ्यूजन करवाते हैं उनके लिए "नैट" (NAT) ब्लड टेस्टिंग को अनिवार्य (mandatory) किया जाए.
2. देश में अभी 100% वॉलंटरी ब्लड डोनेशन (voluntary blood donation) मुमकिन नहीं है और इसको अभी काफी समय लगेगा. ऐसे में थैलीसीमिया मरीजों के लिये एक रजिस्ट्री की जरूरत है.
3. भारत सरकार को थैलीसीमिया के मरीजों के लिए एक नेशनल लेवल कंट्रोल प्रोग्राम लाना चाहिए जैसे पोलियो के लिए लाया गया है.
अनुभा तनेजा मुखर्जी आगे कहती हैं, "जिस तरह हम पोलियो के कैंपेन चलाते हैं उसी तरह थैलीसीमिया को जड़ से उखाड़ फेंकने के लिए सरकार को कॉरपोरेट सेक्टर के साथ मिलकर यह अभियान चलाना चाहिए. ज्यादा से ज्यादा स्क्रीनिंग करनी चाहिए, ज्यादा से ज्यादा अवेयरनेस प्रोग्राम करने चाहिए, सिलेब्रिटीज को भी इसमें मदद के लिए सामने आना चाहिए. साथ ही TPAG अपनी तरफ से हर संभव प्रयास करेगा सरकार के साथ इस अभियान को सफल बनाने में".
4. थैलीसीमिया की रोकथाम और प्रतिबंधित (manage) करने के लिए दुनिया के कई हिस्सों में नई टेक्नोलॉजी और थेरेपी का इस्तेमाल किया जाता है. भारत के अस्पतालों में भी इन्हें एक पायलट प्रोग्राम की तरह शुरू करके देखना चाहिए. साथ ही मरीज के मेंटल और इमोशनल हेल्थ की ओर भी सरकार को ध्यान देना चाहिए.
5. नई पॉलिसी बनाते समय बेहतर पॉलिसी मेकिंग के लिए उस समस्या से जूझते मरीजों को उसमें शामिल करना चाहिए. अधिकतर थैलीसीमिया मरीज अपनी परेशानियों से लड़ते हुए भी देश के आर्थिक विकास में अपनी भागीदारी निभा रहे हैं.
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