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सोमवार को शारजाह में खेले गए आईपीएल (IPL 2020) मुकाबले से पहले, पंजाब के मंदीप सिंह ने अपने करियर में (फर्स्ट क्लास, लिस्ट ए, टी20) 67 मौके पर अर्धशतक लगा चुके थे, लेकिन KKR के खिलाफ 66 रनों की नाबद पारी वो ताउम्र नहीं भूल पाएंगे, चाहे वो भविष्य में कितने भी दोहरे और तिहरे शतक क्यों ना बना डालें. इसकी वजह है इसकी भावनात्मक अहमियत. 24 अक्टूबर को मंदीप के पिता का निधन हुआ लेकिन उन्हें आईपीएल मैच खेलना पड़ा जब उन्होंने 17 रन बनाए और जब पंजाब ने सनराइजर्स के खिलाफ जीत हासिल तो टीम ने कहा कि ये जीत मंदीप के लिए थी.
करीब 48 घंटे बाद मंदीप दोबारा बल्लेबाजी के लिए मैदान में थे और इस बार उन्होंने जो पारी खेली उससे कप्तान के एल राहुल और कोच अनिल कुंबले इतने भावुक हुए कि वो ड्रिंक्स ब्रेक के दौरान मंदीप को बधाई देने बीच मैदान में पहुंच गए, जो कभी देखा नहीं जाता है. लेकिन, मंदीप ने वही किया जो बेहतरीन क्रिकेटर करते हुए आ रहें हैं. अपने निजी शोक को भुलाकर मैदान पर खेलना कभी आसान नहीं होता लेकिन उसके बाद एक बढ़िया खेल दिखाना और भी मुश्किल.
लेकिन, भारतीय क्रिकेट में 1999 वर्ल्ड कप के दौरान सचिन तेंदुलकर का अपने पिता की अंतिम यात्रा में शरीक होने के बाद लौटते ही शतक लगाने का मामला हो या फिर विराट कोहली का रणजी मैच के दौरान सुबह में पिता को खोने की खबर सुनने के बावजूद दिल्ली के लिए एक उम्दा पारी खेलकर मैच बचाने की बात हो, खिलाड़ियों ने दिल जीता है. कुछ साल पहले ऋषभ पंत ने भी अपने पिता की मौत के बावजूद आईपीएल में दिल्ली के लिए मैच खेला.
फ्रांस के मशहूर लेखक Marcel Proust ने एक बार कहा था कि It is grief that develops the powers of the mind. यानी शोक के समय कई बार दिमाग की ताकत बढ़ जाती है.
शायद बहुत कम लोगों को ये बात पता हो कि वेस्टइंडीज के पूर्व दिग्गज बल्लेबाज गोर्ड्न ग्रीनीज 1983 में एंटीगा में टेस्ट मैच में भारत के खिलाफ बल्लेबाजी कर रहे थे. और लंच के दौरान घर से एक टेलीग्राम मिला और उन्होंने पढ़ा और किसी को कुछ नहीं बताया. शाम को जब ग्रीनीज ड्रेसिंग रुम में उन्होंने 154 रन की पारी खेलकर लौटे तो हर किसी तो पता चल चुका था कि उनकी उस टेलीग्राम में उनके बेटी के बहुत गंभीर तरीके से बीमार होने की खबर थी. ग्रीनीज चाहते तो उसी वक्त एंटीगा से बारबेडोस की उड़ान ले सकते थे, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया और टीम के लिए बल्लेबाजी करते रहे.
अगले दिन वो अपनी नाबाद पारी को फिर से आगे बढ़ाने के लिए नहीं आए क्योंकि कप्तान विव रिचर्ड्स और टीम ने उन्हें समझाया कि टीम के लिए वो काफी कुछ कर चुके हैं और अब समय अपनी बेटी को देने का था. टेस्ट क्रिकेट के इतिहास में ‘retired not out’ होने वाले ग्रीनीज पहले और इकलौते खिलाड़ी रहें और शायद मैन ऑफ द मैच चुने जाने के बावजूद अपना एवार्ड नहीं लेने वाले भी संभवत पहले और आखिरी टेस्ट खिलाड़ी.
(20 साल से अधिक समय से क्रिकेट कवर करने वाले लेखक की सचिन तेंदुलकर पर पुस्तक ‘क्रिकेटर ऑफ द सेंचुरी’ बेस्ट सेलर रही है. ट्विटर पर @Vimalwa पर आप उनसे संपर्क कर सकते हैं.)
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