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महामारी और 'बंदी' के इस दौर में देश के हजारों युवाओं-प्रोफेशनल्स पर छंटनी की तलवार लटकती दिख रही है. कब, कौन सी कंपनी छंटनी का ऐलान कर दे, कुछ कहा नहीं जा सकता. ये कुछ उदाहरण तो ऐसी कंपनियों के हैं जहां छंटनी खबर बन जाती है.
लेकिन देश में करोड़ों ऐसे लोग हैं जो संगठित-असंगठित क्षेत्रों में काम करते थे और कोरोना वायरस के इन 4 महीनों में उन्होंने अपनी नौकरी गंवा दी है. CMIE के आंकड़ों के मुताबिक, 12.2 करोड़ भारतीयों ने नौकरियां गंवाई हैं.
नौकरियों के इस संकट के बीच रेलवे जो सबसे ज्यादा रोजगार देने के लिए जाना जाता है, उसने भी 2 जुलाई को एक नोटिफिकेशन जारी कर लाखों प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी करने वालों की उम्मीद पर पानी फेर दिया है. इस नोटिफिकेशन के मुताबिक, सेफ्टी कैटेगरी के पोस्ट को छोड़कर रेलवे की रिक्तियों पर नई भर्तियों को अगले आदेश तक के लिए स्थगित कर दिया गया है. साथ ही पिछले 2 सालों में रेलवे ने जो भर्तियां निकाली थीं उनकी भी समीक्षा की जाएगी. इतना ही नहीं अगर इन वैकेंसी पर रिक्रूटमेंट नहीं हुआ है तो उन वैकेंसी को खत्म करने के बारे में समीक्षा की जाएगी. नोटिफिकेशन में बताया गया है कि सेफ्टी कैटेगरी को छोड़कर 50 फीसदी वैकेंसी को भी सरेंडर करना होगा.
इस संकट का बड़ा असर स्टार्टअप कंपनियों पर भी पड़ा है. फिक्की और इंडियन एंजल नेटवर्क (आईएएन) के साझा सर्वे के मुताबिक, महामारी ने करीब 70 फीसदी स्टार्टअप के कारोबार को प्रभावित किया है. सर्वे में कहा गया है कि कारोबारी माहौल में अनिश्चितता के साथ ही सरकार और कॉर्पोरेट्स की प्राथमिकताओं में अप्रत्याशित बदलाव के कारण कई स्टार्टअप बचे रहने के लिए संघर्ष कर रहे हैं. देशभर के 250 स्टार्टअप पर किए गए इस सर्वे में 70 फीसदी प्रतिभागियों ने कहा कि उनके कारोबार को कोविड-19 ने प्रभावित किया है और लगभग 12 प्रतिशत ने अपना काम बंद कर दिया है. सर्वे में स्टार्टअप्स के लिए एक तत्काल राहत पैकेज की जरूरत पर फोकस है, जिसमें सरकार से संभावित खरीद ऑर्डर, कर राहत, अनुदान, आसान लोन शामिल है.
जून में क्विंट हिंदी ने CMIE के चीफ महेश व्यास से बातचीत की थी. व्यास ने बताया था कि सरकार ने आर्थिक पैकेज के नाम पर जो लोन की व्यवस्था की है, उसका ज्यादा फायदा होता नहीं दिख रहा क्योकि न तो कोई लोन लेने वाला है और न ही कोई लोन देने वाला. और उसकी वजह सीधी ये है कि मार्केट में डिमांड नहीं है. सरकार ने 3 लाख करोड़ के लोन का इंतजाम किया लेकिन इस वक्त न तो कोई कारोबार बढ़ाना चाहता है और न कोई लोन लेना चाहता है. महेश व्यास का कहना है इतने पैकेज आने के बाद अब ज्यादा उम्मीद भी नहीं है कि सरकार से कोई और मदद मिलेगी.
महेश व्यास के मुताबिक इकनॉमी की परेशानियों का आज भी जवाब यही है कि सरकार लोगों के हाथों में पैसा दे, सरकारी खर्च बढ़ाए. लेकिन अभी तो ये हो रहा है कि सरकार खुद तंगी में है, इसलिए हर मंत्रालय से खर्च घटाने के लिए कहा जा रहा है. इसकी वजह ये है कि अप्रैल-मई में काम-धंधे बंद हो गए तो सरकार के राजस्व में भी कमी आई. तो कुल मिलाकर इस पूरे साल में इकनॉमी की हालत खराब रहेगी और उसके बाद भी सरकार के पास इकनॉमी को बूस्ट देने के लिए कोई प्लान नहीं है इसलिए पहले की तुलना में ग्रोथ अभी कम ही रहेगी.
कुल मिलाकर जॉब के मोर्चे पर, इकनॉमी के मोर्चे पर हमारी स्थिति कुछ खास अच्छी नहीं दिख रही है.
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