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देश में 45 साल के मुकाबले सबसे ज्यादा बेरोजगारी है. कोरोना संकट में निजी सेक्टर में काम मिलना मुश्किल हो गया है. ऐसे में सरकारी नौकरी बड़ी उम्मीद रह जाती है, लेकिन जो रेलवे सबसे ज्यादा सरकारी नौकरियां देता है, उसी ने लाखों लोगों की उम्मीद पर पानी फेर दिया है.
रेल मंत्रालय की तरफ से 2 जुलाई को आए नोटिफिकेशन ने कई परीक्षार्थियों और कर्मचारियों की नींद उड़ाकर रख दी है. इस नोटिफिकेशन के मुताबिक, सेफ्टी कैटेगरी के पोस्ट को छोड़कर रेलवे की रिक्तियों पर नई भर्तियों को अगले आदेश तक के लिए स्थगित कर दिया गया है. साथ ही पिछले 2 सालों में रेलवे ने जो भर्तियां निकाली थीं उनकी भी समीक्षा की जाएगी. इतना ही नहीं अगर इन वैकेंसी पर रिक्रूटमेंट नहीं हुआ है तो उन वैकेंसी को खत्म करने के बारे में समीक्षा की जाएगी. नोटिफिकेशन में बताया गया है कि सेफ्टी कैटेगरी को छोड़कर 50 फीसदी वैकेंसी को भी सरेंडर करना होगा.
इस ऐलान में पिछले 2 सालों में निकाली गई NTPC और Group D जैसे पदों की भर्तियां भी शामिल हैं, जिसके लिए यूपी, बिहार, मध्य प्रदेश समेत देश के कई राज्यों के छात्र तैयारी करते आए हैं. वो लाखों युवा जो तैयारी कर रहे थे वो भी अब पशोपेश में हैं. इन युवाओं का कहना है कि जहां कोरोना के कारण एकेडमिक स्ट्रक्चर फेल होने से उनके अवसरों में से एक साल कम होता नजर आ रहा है वहीं अब रेलवे भर्ती बोर्ड और भारत सरकार के ताजा नोटिस ने उनके हौसले को तोड़ दिया है.
किसी भी भर्ती परीक्षा की तैयारी करने वाले युवा बताते हैं कि एक नया 'ट्रेंड या क्रोनोलॉजी' आई है. हर एग्जाम-रिजल्ट-नियुक्ति, हर चरण के लिए प्रदर्शन करने की नौबत आ जाती है. लॉकडाउन में प्रदर्शन करने की भी इजाजत नहीं है ऐसे में युवा सोशल मीडिया पर ही अपनी आवाज मुखर कर रहे हैं. सड़क से लेकर सोशल मीडिया पर भर्तियों, युवाओं के लिए आवाज उठाने वाले संगठन युवा-हल्लाबोल ने रेलवे के इस नोटिफिकेशन पर भी सवाल उठाए हैं. युवा हल्लाबोल के संयोजक अनुपम का कहना है,
अनुपम कहते हैं कि रेल मंत्रालय को ये जवाब देना चाहिए कि
करीब 10 लाख रेलवे कर्मचारियों के संगठन ऑल इंडिया रेलवेमेंस फेडरेशन (AIRF) भी रेलवे के इस फैसले को लेकर सक्रिय है. फेडरेशन का कहना है कि ये नोटिस और फैसला खुद रेलवे और उसके कर्मचारियो के लिए भी घातक है. फेडरेशन का कहना है कि मौजूदा समय मे पैंसेंजर स्पेशल और मालगाड़ी ट्रेन ऑपरेट हो रही हैं. आने वाले दिनों में रेलगाड़ियों की संख्या बढ़ेगी. ऐसे में मेंटिनेंस के लिए और सुचारू रूप से ट्रेनों को चलाने के लिए स्टाफ की जरूरत होगी. अब जब वैकेंसी भरी नहीं जाएंगी तो इसका सीधा-सीधा दबाव मौजूदा कर्मचारियों पर बढ़ेगा और उनका काम कई गुना बढ़ जाएगा.
फेडरेशन उन कैंडिडेट का मुद्दा भी उठाता है, जिन्होंने रेलवे भर्तियों के लिए आवेदन किया है. AIRF का कहना है कि कोरोना महामारी के दौर में परीक्षाएं रुकी हुईं हैं, देरी हो रही है, तो इसका असर हजारों छात्रों पर भी पड़ रहा है.
नॉर्थ वेस्ट रेलवे एंप्लॉई यूनियन के जोनल सेक्रेटरी मनोज कुमार परिहार क्विंट से बातचीत में कहते हैं,
एक रिपोर्ट लिखते वक्त सरकारी पक्ष से जवाब हासिल करना अलग चुनौती बन गई है. ऐसी ही चुनौती इस रिपोर्ट को लिखते वक्त भी आई, मंत्रालय से जुड़े एक अधिकारी ने इस पर टिप्पणी करने से मना कर दिया. लेकिन इतना जरूर कहा कि पिछले कुछ सालों में रेलवे में 'गैर-जरूरी' पदों को खत्म करने के लिए कदम उठाए जा रहे हैं. ये नया नोटिफिकेशन भी इसका हिस्सा है.
रेल मंत्रालय के पब्लिक रिलेशन ऑफिसर से हमने बात करने की कोशिश की लेकिन संपर्क नहीं हो सका. हमने उन्हें मैसेज किया है, जवाब आते ही इस रिपोर्ट में अपडेट किया जाएगा.
हालांकि, नोटिफिकेशन जारी होने के दो दिन बाद न्यूज एजेंसी पीटीआई की एक रिपोर्ट में रेलवे बोर्ड के डायरेक्टर जनरल आनंद एस खाटी की सफाई छपी थी. उनके हवाले से लिखा गया था कि कुछ जॉब प्रोफाइल बदल सकते हैं, जहां कर्मचारियों को दोबारा से स्किल्ड किया जाएगा लेकिन कोई जॉब लॉस नहीं होगा. उन्होंने कहा था, "हम राइट साइजिंग करने जा रहे हैं, डाउनसाइजिंग नहीं. इसमें कोई संदेह नहीं है कि भारतीय रेलवे देश का सबसे बड़ा एम्प्लॉयर रहेगा. हम बिना स्किल वाली जॉब से ज्यादा स्किल वाली जॉब की तरफ बढ़ेंगे." उन्होंने कहा था कि 2 जुलाई को भेजा गया आदेश नॉन-फंक्शनल, नॉन-सेफ्टी खाली पड़ी पोस्ट्स के सरेंडर के लिए था, जिससे रेलवे के नए इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स के लिए अतिरिक्त सेफ्टी पोस्ट्स बनाने में मदद मिलेगी. लेकिन अब भी सवाल है कि जब ऑर्डर निकालर वैकेंसी रद्द करने की बात हो रही है तो फिर नोटिफिकेशन जारी कर सफाई क्यों नहीं दी जा रही है. क्योंकि रेलवे में नौकरी की उम्मीद लगाए लाखों छात्रों को इस सफाई की जरूरत है.
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