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बीजेपी में प्रतिभाओं की कमी नहीं है. एक से बढ़कर एक नेता हैं. लेकिन बीजेपी के उन नगीनों में एक नाम तेजी से उभरा है. वह नाम है त्रिपुरा के मुख्यमंत्री बिप्लब देब का.
बिप्लब का अर्थ होता है क्रांति. नाम के अनुरूप ही इस बिप्लब में कुछ खास बात है, तभी बीजेपी ने त्रिपुरा में उन्हें माणिक सरकार के विकल्प के तौर पर पेश किया. यह त्रिपुरा की जनता का 'सौभाग्य' है, जो उसे बिप्लब देब जैसा विजनरी 'मुख्य सेवक' मिला है.
पिछले कुछ दिनों में इस 'मुख्य सेवक' के बयानों से जाहिर होता है कि इनमें अद्भुत काबिलियत है.
त्रिपुरा चुनाव से पहले बीजेपी ने जो वादे किए थे, उनमें एक वादा यह था कि सरकार बनने पर वह हर घर के एक सदस्य को नौकरी दिलाएगी. अब बिप्लब बाबू ने पार्टी के विजन डॉक्यूमेंट पर अमल का खाका खींच दिया है. उन्होंने जनता को पान दुकान खोलने और गाय पालने की सलाह दी है.
वो यह भी कहते हैं, “युवा सरकारी नौकरी के लिए नेताओं के आगे-पीछे घूमकर बहुमूल्य समय बर्बाद कर देते हैं. इसकी जगह पान की दुकान खोल लें, तो उनके बैंक खाते में 5-5 लाख रुपये जमा हो जाते.” ऐसे में अगर कोई समझदार युवा गाय भी पाल ले और पान की दुकान भी खोल ले, तो उसके बैंक खाते में 10+5= 15 लाख रुपये जमा हो सकते हैं. इस तरह से बिप्लब मॉडल पर अमल करके हर घर 15 लाख रुपये पा सकता है. यही तो प्रधानमंत्री मोदी का सपना है!
ये कमाल की सोच है! इसमें देश को आर्थिक महाशक्ति बनाने की ताकत है. 21वीं सदी में यह बीजेपी नेताओं की तरफ से दिया गया यह दूसरा बड़ा विजन है. पहला विजन पीएम मोदी ने दिया था. उसे 'पकौड़ा विजन' कहते हैं. बिप्लब देब ने अब नया विजन दिया है. पान और गाय दूहने का विजन.
अरुण जेटली को चाहिए कि वो नरेंद्र मोदी और बिप्लब देब के विजन को केंद्र में रखकर व्यापक आर्थिक नीति तैयार करें. धर्मेंद्र प्रधान इसे स्किल इंडिया मिशन से जोड़ें. हर जिले में ऐसे स्किल सेंटर शुरू हों जहां पकौड़ा तलने, पान लगाने और दूध दूहने का हुनर सिखाया जाए.
हर मशहूर पान और पकौड़े की दुकान पर चार-पांच लोग काम करते हैं. बड़ा स्कोप है इसमें. करोड़ों लोगों को रोजगार मिलेगा. नितिन गडकरी को चाहिए कि इसे हाइवे निर्माण का अनिवार्य हिस्सा बनाएं. प्रत्येक हाइवे पर सौ किलोमीटर की दूरी पर एक ऐसा केंद्र खोला जाए, जहां यात्रियों को पकौड़ा, पान और दूध मिले. इस पर व्यापक नीति बनाने से दो करोड़ क्या हर साल चार-पांच करोड़ नौकरियां तैयार की जा सकती हैं. प्रधानमंत्री मोदी का दूसरा सपना भी पूरा हो जाएगा.
बिप्लब देब रसिक भी हैं. महिलाओं की खूबसूरती पर उनकी पैनी नजर है. वो स्त्रियों का रूप-रंग देखकर बता सकते हैं कि कौन सुंदर है और कौन नहीं. मसलन ऐश्वर्या राय सुंदर हैं, लेकिन डायना हेडन सुंदर नहीं हैं.
बिल्पब देब के मुताबिक, डायना को खिताब कॉस्मेटिक कंपनियों की साजिश के तहत दिया गया. अब इन कंपनियों ने भारतीय बाजार पर कब्जा कर लिया है, इसलिए किसी को विश्व सुंदरी का खिताब नहीं दिया जा रहा.
इन्होंने यह भी कहा कि पहले भारतीय महिलाएं मेथी के पानी से बाल धोती थीं और त्वचा पर मिट्टी का लेप लगाती थीं. अब शैंपू और साबुन का इस्तेमाल होता है. हर गली-नुक्कड़ पर एक ब्यूटी पार्लर खुल गया है. सरकार को चाहिए कि बिप्लब के इस बयान से उनके ताजा बयान को जोड़ दे और हर गली-नुक्कड़ पर खुले ब्यूटी पार्लर को 'पकौड़ा पार्लर' या 'पान पार्लर' या फिर 'दूध पार्लर' में तब्दील कर दे.
अगर सरकार चाहे, तो ब्यूटी पार्लर को खुला रहने दे, बशर्ते वो शैम्पू और साबुन की जगह मेथी और मिट्टी का इस्तेमाल करने को तैयार हों. इसमें बाबा रामदेव की मदद भी ली जा सकती है. खूबसूरती पर उनका रिसर्च भी तगड़ा है. विज्ञापनों के जरिए महिलाओं को खूबसूरती का ज्ञान बांटते नजर आते हैं. इस सामूहिक प्रयास से विदेशी साजिश भी नाकाम हो जाएगी और रोजगार के नए अवसर खुलेंगे.
सिविल अंग्रेजी का शब्द है. हिंदी में इसके कई अर्थ है. अंग्रेजी के अलग-अलग शब्दों के साथ मिलकर इसके अर्थ और भी व्यापक हो जाते हैं. लेकिन बिप्लब बाबू को उनके गुरु ने बस एक ही अर्थ समझाया है. इसलिए उन्होंने इसका सरलीकरण कर दिया है.
संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) को चाहिए कि वो बिप्लब देब को अपना ब्रांड एंबेसडर बनाए और उनके सुझाव पर अमल करे. इससे भर्ती की प्रक्रिया एकदम सरल हो जाएगी. जो सिविल इंजीनियर हैं, वो प्रशासनिक सेवा में जाएंगे. समाज निर्माण करेंगे. देश निर्माण करेंगे. बाकी लोग पान पार्लर, दूध पार्लर, पकौड़ा पार्लर और मेथी-मिट्टी वाला यूटी पार्लर खोल सकेंगे.
बीजेपी के बिप्लब के 'सिविल' ज्ञान से शूल फिल्म का खलनायक बच्चू यादव याद आ गया. उस फिल्म में विधानसभा का यादगार सीन है. जिसमें एक नेता बाढ़ रोकने के लिए बांध बनाने का प्रस्ताव रखता है. कहता है कि बांध बनाने से बाढ़ रोकने के साथ बिजली भी पैदा की जा सकेगी. इस पर बच्चू भड़क उठता है. कहता है कि वैसे ही किसानों का साबुत पानी नहीं मिलता और पानी से बिजली निकाल लोगे, तो खेती कैसे होगी? बच्चू सिनेमा का खलनायक था. यहां बिप्लब असल जिंदगी का 'नायक' है. त्रिपुरा का 'मुख्य सेवक' है.
शूल फिल्म देखते हुए जब बच्चू यादव वाला सीन आता था, तो दर्शकों के ठहाके गूंजने लगते, लेकिन बीजेपी के इस बिप्लब की बातों को सुन कर रोना आता है. ये इस दौर का और हम सबका साझा दुर्भाग्य है कि हमारे नायक बिप्लब देब जैसे लोग हैं. विडंबना देखिए कि इन्हें खुद हमने ही चुना है.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं. इस आर्टिकल में छपे विचार उनके अपने हैं. इसमें क्विंट की सहमति होना जरूरी नहीं है.)
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