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पकौड़ा तो तल गया, स्टॉल भी लग गए, जॉब सेक्टर में उनकी धमाकेदार एंट्री का हिसाब हो गया. अब घर में पकौड़ा तलने वालियों के योगदान का हिसाब किया जा रहा है. और फिर हिसाब आएगा कि कैसे आधी आबादी ने बिना किसी अप्वाइंटमेंट लेटर के देश की जीडीपी को पूरी तरह से बदल दिया. झटके में हम विकासशील से विकसित देश हो गए हैं. मैन्यूफैक्चरिंग से लेकर सर्विस सेक्टर- सबकी ग्रोथ में छलांग और वो भी बिना किसी अतिरिक्त इन्वेस्टमेंट के.
खबर है कि सरकार घरों में महिलाओं के रोजमर्रा के एक-एक काम की कीमत का पता करके बताएगी कि देश की जीडीपी में उन्होंने कितना कंट्रीब्यूट किया है. छोटा-मोटा काम नहीं है. पूरे साल भर सर्वे चलेगा. और सरकार पता करेगी कि
इस सबका देश की जीडीपी में कितना योगदान रहा? घबराइए नहीं सरकार इसका हिसाब तैयार कर आपको उन्हें पेमेंट करने का कोई कानून नहीं बनाने जा रही है.
जो लोग कह रहे थे कि सरकार के पास रोजगार का कोई डेटा नहीं है, उनकी तो बोलती ही बंद हो जाएगी. जो लोग घरों में रात-दिन खटने वाली महिलाओं को शाम को घर पहुंच कर यह कह देते हैं कि दिन भर घर में बैठी-बैठी करती क्या हो, उन्हें अब आईना दिखाने की तैयारी है. उन्हें अब पता चलेगा कि दिन भर पत्नी ने जो काम किया उसका महीने में कीमत लगाने बैठे तो मल्टीनेशनल कंपनी के बड़े अधिकारी के बराबर बैठेगी.
मुजफ्फरपुर और देवरिया जैसे मामलों पर ध्यान न दें. महिलाओं के श्रम की कीमत का पता लगा कर सरकार साबित कर देगी कि असली महिला सशक्तिकरण किसने किया है. कौन महिलाओं की असली हितरक्षक है. सर्वे की कवायद को अंजाम देने के बाद सरकार शान से कह सकेगी-
सरकार बताएगी कि हमारे देश में महिलाएं इतना काम करती हैं कि हम हर साल एप्पल जैसी 20 कंपनियां खरीद सकते हैं और उनमें दस लाख लोगों को नौकरी दे सकते हैं. उन्होंने इतना कमाया है कि देश हर साल फीफा वर्ल्ड करा सकता है. रूस, फ्रांस और जर्मनी के बनाए फाइटर जेट की पूरी खेप खरीद सकता है. इससे बड़ा महिला सशक्तिकरण कभी हो सकता है भला.
जॉब का जो जिग्सॉ पजल सॉल्व करने में दुनिया जुटी हुई है, उसका हमने तोड़ निकाल लिया है. सरकार के इस सर्वे का नतीजा बेरोजगारी की बातों को बेमानी कर देगा. 49 फीसदी आबादी अगर साल भर में नौकरी से लैस हो जाए तो किसकी हिम्मत पड़ेगी कि जॉब न पैदा करने का आरोप लगा कर सरकार पर चढ़ बैठे.
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