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चुनावी साल में इन्वेस्ट कैसे करें? IT, फार्मा में लौटने का समय?

वक्त के साथ देश में कई चीजें बदली हैं, लेकिन सरकार और सक्रिय मतदाताओं का संबंध जस का तस है

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हम देश को बदलता हुआ देखना चाहते हैं, लेकिन कई बार बदलाव की रफ्तार का सही अंदाजा नहीं लगा पाते. कई बार इससे ऐसे मौके भी बनते हैं जिनका फायदा उठाया जा सकता है. कुछ ऐसा ही शेयर बाजार में होता है और पैसा लगाने के शानदार मौके बनते हैं. अभी भी स्टॉक मार्केट में ऐसा ही चल रहा है. जहां बनाए बने ढर्रे से अलग हटकर आप पैसा बना सकते हैं. जैसे बैंकों के शेयर बेचें और आईटी और फार्मा शेयरों में निवेश करें तो बड़ा फायदा हो सकता है.

बिजनेस अखबार द मिंट ने 2 अगस्त को howindialives.com के हवाले से अंग्रेजी बिजनेस अखबार द मिंट ने 2 अगस्त को लिखा था- महाराष्ट्र के ग्रामीण क्षेत्रों में खेती से इनकम घटी है. मराठाओं के शैक्षणिक संस्थाओं और सरकारी नौकरियों में आरक्षण की मांग की यह एक बड़ी वजह है.

महाराष्ट्र के ग्रामीण क्षेत्रों में खेती से इनकम घटी है. राज्य में 2006-07 से 2014-15 के बीच सभी अहम फसलों से रिटर्न घटा है. एजुकेशन और सरकारी नौकरियों में मराठा आरक्षण आंदोलन की सबसे बड़ी वजह यही है.

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भारत के बदलने का अंदाज

मई 2008 में देश में लौटने के बाद मैं कई ऐसे लोगों से मिला, जो मानते थे कि यहां अच्छे बदलाव हो रहे हैं. इसके कुछ ही महीनों बाद वैश्विक वित्तीय संकट ने भारत को गिरफ्त में ले लिया. इससे उबरते ही एक के बाद एक करप्शन स्कैंडल का सामना करना पड़ा, जिसके बाद निजी क्षेत्र की कंपनियों ने प्रॉडक्शन कैपेसिटी बढ़ाने के लिए निवेश बंद कर दिया. हम आज तक इससे नहीं उबरे हैं. इसलिए 10 साल पहले जिन लोगों ने कंपनियों के निवेश बढ़ाने से अच्छे रिटर्न की उम्मीद में उनमें पैसा लगाया था, उन्हें बड़ा नुकसान हुआ.

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हाल में हम पहली बार फिजिकल सेविंग से ज्यादा फाइनेंशियल सेविंग्स देख रहे हैं. कंपनियों के लिए कर्ज सस्ता हुआ है. छोटी कंपनियों के लिए लोन लेना या शेयर बेचकर पैसा जुटाना 10 साल पहले की तुलना में काफी आसान हो गया है. डायरेक्ट टैक्स कलेक्शन भी सालाना 18-19 पर्सेंट की रफ्तार से बढ़ रहा है. गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स (जीएसटी) के शुरुआती संकेत भी अच्छे हैं.

फिर देश का चालू खाता घाटा क्यों बढ़ रहा है? वित्त वर्ष 2019 में इसके जीडीपी (ग्रॉस डोमेस्टिक प्रॉडक्ट यानी सकल घरेलू उत्पाद) के 3 पर्सेंट तक पहुंचने का अनुमान है, जो 2018 में 1.9 पर्सेंट था. रुपये की वैल्यू क्यों कम हो रही है? इस साल अब तक डॉलर की तुलना में रुपया 7 पर्सेंट कमजोर हो चुका है. महंगाई दर 5 पर्सेंट है, जो रिजर्व बैंक के 4 पर्सेंट के अनुमान से अधिक है. ब्याज दरों में साल भर में 1.5 पर्सेंट की बढ़ोतरी हो चुकी है. बैंकिंग सिस्टम को बैड लोन ने जकड़ रखा है.
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वोट बैंक पॉलिटिक्स की ‘करामात’

वक्त के साथ देश में कई चीजें बदली हैं, लेकिन सरकार और सक्रिय मतदाताओं का संबंध जस का तस है. इनमें सिर्फ किसान और ग्रामीण इलाकों में रहने वाले वोटर ही शामिल नहीं हैं. उनके परिवार के शहरों में बस चुके लोग भी इसका हिस्सा हैं. इस वोट बैंक के पास आमदनी का मजबूत जरिया नहीं है क्योंकि वे या तो खेत मजदूर के तौर पर काम कर रहे हैं या सप्लाई चेन के ताकतवर एजेंट्स का शिकार हो रहे हैं.

इन एजेंटों में एपीएमसी की मंडियों को कंट्रोल करने वाले बिचौलिये शामिल हैं, जो पॉलिटिकल लॉबिंग में भी माहिर हैं. इसलिए ग्रामीण इलाके का यह सक्रिय मतदाता वर्ग आर्थिक तौर पर नरेगा,कर्ज माफी या फर्टिलाइजर सब्सिडी पर आश्रित है. इसलिए पिछले 5 साल में नरेगा पर खर्च में 17 पर्सेंट चक्रवृद्धि दर (सीएजीआर) से बढ़ोतरी पर आपको हैरान नहीं होना चाहिए. अगले आम चुनाव तक किसानों की कर्ज माफी के जीडीपी के 1.5 पर्सेंट तक पहुंचने के आसार हैं.

फर्टिलाइजर सब्सिडी की हिस्सेदारी सरकार के कुल खर्च में 3 पर्सेंट पहुंच गई है. राजनीतिक तौर पर सक्रिय यह वोट बैंक कई और चीजों के लिए सरकारी संसाधनों पर आश्रित है. इनमें स्वास्थ्य, शिक्षा, बिजली, ट्रांसपोर्ट और कानून-व्यवस्था शामिल हैं.

इन सरकारी सेवाओं की गुणवत्ता जैसी भी हो, लेकिन इन पर खर्च बढ़ाने से राजनीतिक दलों को इस वोट बैंक को प्रभावित करने में मदद मिलती है. कुल सरकारी खर्च (केंद्र और राज्य दोनों का मिलाकर) आज जीडीपी के 26 पर्सेंट तक पहुंच गया है, जो 15 साल पहले के 28 पर्सेंट से कुछ ही कम है.

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निवेश पर असर

इस खेल से मैक्रो-इकनॉमी की जो स्थिति बनती है, उसका शेयर बाजार से पैसा बनाने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है.

1. खेती और श्रम की कम उत्पादकता से भारतीय अर्थव्यवस्था की प्रॉडक्टिविटी पर बुरा असर पड़ता है. इसलिए वैश्विक बाजार में प्रतिस्पर्धा के लिए रुपये में डॉलर के मुकाबले सालाना कम से कम 3-4 पर्सेंट की गिरावट जरूरी है. मुझे लगता है कि रुपया आने वाले वक्त में 70 का लेवल पार कर जाएगा. इसलिए मैं पिछले 8 महीनों से आईटी सर्विसेज, फार्मा और केमिकल एक्सपोर्टर्स कंपनियों में निवेश की सलाह दे रहा हूं. इनके साथ एक्सपोर्ट मार्केट में मजबूत छोटी कंपनियों में पैसा लगाकर भी अच्छा मुनाफा कमाया जा सकता है.

2. इस साल नवंबर में राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में चुनाव होंगे और उसके बाद लोकसभा चुनाव होने हैं. त्योहारी सीजन भी करीब आ गया है. इसलिए जल्द ही वोटरों को लुभाने की कोशिश शुरू होगी. इससे महंगाई दर बढ़ेगी और ब्याज दरों में भी बढ़ोतरी होगी. इसका शेयर बाजार पर क्या असर होगा? हमें ऐसी कंपनियों में निवेश करना चाहिए, जिन्हें ग्रामीण अर्थव्यवस्था से अच्छी आमदनी होती है. इनमें एफएमसीजी, ट्रैक्टर और दोपहिया कंपनियां शामिल हैं. हमें उन बैंकों से निकल जाना चाहिए, जो होलसेल फंडिंग पर आश्रित हैं.

(लेखक शेयर बाजार के दिग्गज एक्सपर्ट हैं इन्होंने ‘द अनयूजुअल बिलियनेयर्स’ और ‘कॉफी कैन इनवेस्टिंगः द लो रिस्क रूट टू स्टुपेंडस वेल्थ’ जैसी किताबें लिखी हैं. ये उनके अपने विचार हैं.)

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