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सोशल मीडिया पर वायरल हुए एक वीडियो को लेकर चर्चा में आईं गुरमेहर कौर ने मीडिया से दूरी बना रखी थी. लेकिन एक बार फिर वो चर्चा में हैं. उन्होंने मंगलवार को ट्विटर पर अपने ब्लॉग का लिंक शेयर किया, जो दो दिन पहले लिखा गया है.
गुरमेहर का ये पहला ब्लॉग है. 'आई एम' टाइटल के साथ अंग्रेजी में लिखे इस ब्लाॅग के पहले हिस्से में उन्होंने खुद के बारे में बताया है. ब्लाॅग के दूसरे हिस्से में वो अपने पिता के साथ बिताए पलों को याद करते हुए कह रही हैं, ''मेरे पिता शहीद हैं. मैं उनकी बेटी हूं. लेकिन मैं आपके 'शहीद की बेटी' नहीं हूं.''
देखिए गुरमेहर ने अपने ब्लॉग में क्या लिखा है...
ये एक ऐसा सवाल है, जिसका जवाब मैं कुछ हफ्ते पहले तक अपने हंसमुंख अंदाज में बिना किसी हिचकिचाहट के दे सकती थी, लेकिन अब मैं ठीक वैसे नहीं कह सकती.
क्या मैं वो हूं जो ट्रोल्स मेरे बारे में सोचते हैं?
क्या मैं वैसी हूं जैसा मीडिया मेरे बारे में बताता है?
क्या मैं वो हूं जैसा सेलेब्रिटीज मेरे बारे में सोचते हैं?
नहीं, मैं इनमें से कोई नहीं हो सकती. अपने हाथों में प्लेकार्ड लिए, भौंहे चढ़ाए हुए और मोबाइल फोन के कैमरे पर टिकी आंखों वाली जिस लड़की को आपने टेलीविजन स्क्रीन पर फ्लैश होते देखा होगा, वह मेरे जैसे तो दिखती है. उसमें मेरी झलक है. वह उग्र लगती है, मैं उससे भी सहमत हूं लेकिन 'ब्रेकिंग न्यूज की सुर्खियों' ने एक दूसरी ही कहानी सुनाई. मैं वो सुर्खियां नहीं हूं.
मैं अपने पापा की बेटी हूं. मैं अपने पापा की गुलगुल हूं. मैं उनकी गुड़िया हूं. मैं दो साल की वो आर्टिस्ट हूं जो उन लकीरों को समझती है जो उसके पापा चिट्ठी में बनाया करते थे....
मैं आपकी उम्मीद के मुताबिक उग्र और युद्ध का विरोध करने वाली बेचारी नहीं हूं. मैं युद्ध इसलिए नहीं चाहती, क्योंकि मुझे इसकी कीमत का अंदाजा है.
ये कीमत बहुत बड़ी है. मेरा भरोसा कीजिए. मैं बेहतर जानती हूं क्योंकि मैंने रोजाना इसकी कीमत चुकाई है. आज भी चुकाती हूं. इसकी कोई कीमत नहीं है. अगर होती तो आज कुछ लोग मुझसे इतनी नफरत नहीं कर रहे होते.
न्यूज चैनल चिल्लाते हुए पोल करा रहे थे, "गुरमेहर की तकलीफ सही है या गलत?" हमारी तकलीफों का क्या मोल है? अगर 51% लोग सोचते हैं कि मैं गलत हूं तो मैं जरूर गलत होऊंगी...
पापा मेरे साथ नहीं हैं, वह पिछले 18 सालों से मेरे साथ नहीं है. 6 अगस्त, 1999 के बाद मेरे छोटे से डिक्शनरी में कुछ नए शब्द जुड़ गए- मौत, पाकिस्तान और युद्ध....
मैं उस शख्स को जानती हूं जिसका कंधा मैं जोर से पकड़ लेती थी, ताकि वो मुझे छोड़कर न चले जाएं. वो चले गए और फिर कभी वापस नहीं आए.
मेरे पिता शहीद हैं. मैं उनकी बेटी हूं.
लेकिन,
मैं आपके 'शहीद की बेटी' नहीं हूं.
22 साल की गुरमेहर कौर ने सोशल मीडिया पर एक कैंपेन चलाया था ‘स्टूडेंट्स अगेंस्ट एबीवीपी’. दिल्ली के लेडी श्रीराम कॉलेज में पढ़ने वाली कौर ने अपने फेसबुक पर एक फोटो लगाई, जिसमें उनके हाथ में एक प्लेकार्ड था. प्लेकार्ड पर संदेश लिखा है, ‘मैं दिल्ली विश्वविद्यालय में पढ़ती हूं. मैं एबीवीपी से नहीं डरती. मैं अकेली नहीं हूं. भारत का हर छात्र मेरे साथ है. #StudentAgainstABVP.’
उनकी तस्वीर सोशल मीडिया पर वायरल हो गई और उसके बाद एबीवीपी के खिलाफ सोशल मीडिया पर स्टूडेंट्स ने मोर्चा खोल दिया, लेकिन बाद में सोशल मीडिया पर गुरमेहर कौर को खूब ट्रोल किया गया.
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