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WhatsApp फैमिली ग्रुप, कभी राजनीति का अड्डा, कभी अफवाहों की दुकान

आइए मिलवाते हैं आपको ऐसे ही WhatsApp फैमिली ग्रुप के कुछ किरदारों से और उनके राजनीतिक फलसफों से.

नमिता हांडा & शादाब मोइज़ी
सोशलबाजी
Updated:
WhatsApp फैमिली ग्रुप न हो गया मानो अफवाहों की दुकान हो गई.
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WhatsApp फैमिली ग्रुप न हो गया मानो अफवाहों की दुकान हो गई.
(फोटो: द क्विंट)

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दुनिया में डिजिटल क्रांति से सबसे ज्यादा फायदा आपका हुआ हो या नहीं हो, लेकिन आपकी बुआ, बुआ के ननद के बेटे की पत्नी की सास के भाई और उनके पूरे खानदान का हुआ है. अब आप सोच रहे होंगे वो कैसे? तो आपको बता दें कि डिजिटल होती दुनिया में वॉट्सऐप पर फैमिली वाला ग्रुप उसी डिजिटल क्रांति का योगदान है. और आप ना चाहते हुए भी उस क्रांतिकारी वॉट्सऐप ग्रुप का हिस्सा.

मतलब हाल ऐसा कि फैमिली ग्रुप न हो गया मानो अफवाहों की दुकान हो गई. जैसी भी अफवाह चाहो सब मिलेगा वो भी मार्केट से सस्ते रेट में. टुन टुन कर इतनी बार मैसेज की घंटी बजती है मानो मैसेज नहीं अलार्म लगा हो.

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गुड मॉर्निंग मैसेज और उसके साथ फूल, गुलदस्ता फिर धार्मिक संदेश. लेकिन दिन चढ़ते ही ग्रुप पर भी सब का पारा चढ़ने लगता है. राजनीतिक दल का झंडा लिए चाचा तो सरकार की वकालत करती मौसी. सब यहां अटैकिंग मोड में एक्टिव हो जाते हैं.

ऐसी ही फैमिली हमारी भी है. सूरज बरजातिया की हम साथ साथ हैं टाइप. कभी खुशी कभी गम, तो कभी हम आपके हैं कौन. आइए मिलवाते हैं आपको ऐसे ही फैमिली के कुछ किरदारों से और उनकी गप्पों से.

हम साथ साथ हैं- तब तक जब तक "आप हमारे दिल में हैं"

  • एस्ट्रो ताऊजी: घर के सबसे बड़े. काम सुबह गुड मॉर्निंग मैसेज भेजना.
  • नागपुर वाले मौसाजी: संस्कारी और शुद्ध शाकाहारी. जो उनके मन को ना भाए वो पाकिस्तान जाए.
  • अमेठी वाले चाचा: राजनीति में हैं नहीं, लेकिन उसके बिना काम भी नहीं चलता इनका
  • गुड डे अंकल: जिनका नाम सबकी जुबान पर है, लेकिन पिछले चार सालों से देखा किसी ने नहीं
  • तुलसी बुआ: जिन्हें सबको कंट्रोल करने का शौक है
  • डैड: थर्ड अंपायर
  • मैं: ग्रुप में ना चाहते हुए भी सबके मैसेज को पढ़ने को मजबूर

ये भी पढ़ें- अरे भाई, लोकतंत्र की हत्या हुई है या ये खतरे में है?

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Published: 28 May 2018,12:39 PM IST

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