ये लोकतंत्र की हत्या है.. लोकतंत्र की हत्या की कोशिश हुई है... मतलब मर्डर और अटेम्पट टू मर्डर, दोनों चार्ज लगेंगे. लेकिन वेट, अभी कुछ दिन पहले ही तो लोकतंत्र की हत्या हुई थी... अब दोबारा हत्या?
हां, जब सत्ता में बैठे साहब ने बिना विपक्ष से पूछे कई बिल पास कर दिए थे, तो विपक्ष ने कहा, ये लोकतंत्र की हत्या है. फिर थोड़ी ही देर बाद जब विपक्ष ने संसद नहीं चलने दिया, तब सरकार ने कहा कि लोकतंत्र की हत्या हो रही है. अरे यार, पहले आप लोग डिसाइड कर लो कि हत्या हुई है या नहीं?
लोकतंत्र के पास आधार कार्ड है या नहीं
वैसे कमाल है न! लोकतंत्र की हत्या बार-बार हो जाती है, मानो लोकतंत्र न हो गया, एकता कपूर का सास बहू वाला सीरियल हो गया. एक ही आदमी मरा जा रहा है, मरा जा रहा है और फिर लौटकर भी आ जाता है.
वैसे भी इस लोकतंत्र की हत्या हुई है, ये बात तब तक साबित नहीं होगी, जब तक वो खुद जाकर सरकारी दफ्तर से अपना डेथ सर्टिफिकेट न ले आये. उसके लिए लोकतंत्र के पास आधार कार्ड होना चाहिए.
लेकिन सवाल है कि ये एक लोकतंत्र आखिर कितनी बार मरेगा? और ये अगर मरता भी है, तो इसका मातम सिर्फ राजनीतिक पार्टी वाले ही काहे मनाते हैं? उनको इसका टेंडर मिला है क्या? या फिर लोकतंत्र की हत्या पर रोने का कॉपीराइट सिर्फ उनके ही पास है?
लोकतंत्र ने खुदखुशी कर ली!
चलिए अगर उसकी हत्या हो भी गई है, तो उसे मरा हुआ घोषित क्यों नहीं किया जा रहा है? क्या उसे डेथ सर्टिफिकेट नहीं मिल रहा है? या फिर ऐसा तो नहीं है कि लोकतंत्र ने खुदखुशी कर ली है.. हां वहीं, वाराणसी में जो फ्लाईओवर गिरा था, उसी के नीचे आकर मर गया हो और उसके पोस्टमॉर्टम के लिए हॉस्पिटल वाले पैसे मांग रहे हों.
कहीं ऐसा तो नहीं है कि लोकतंत्र मरा नहीं, कोमा में हो और उसे वेंटिलेटर पर रखा गया हो, लेकिन वेंटिलेटर के खर्चे के डर से उसकी हत्या की कहानी बनाई जा रही है. ताकि हत्या के नाम पर कुछ मुआवजा मिल सके.
लेकिन कुछ लोग बता रहे थे कि लोकतंत्र मरा नहीं, बीमार है. और इसका इलाज गोरखपुर के सरकारी अस्पताल में हो रहा है, जहां ऑक्सीजन की कमी हो गई. इसलिए उसके बचने की उम्मीद कम है.
अब इसकी हत्या इतनी बुरी तरीके से हो रही है और बार-बार हो रही है तो फिर इसके लिए CBI से जांच तो होनी ही चाहिए. लेकिन शायद CBI जांच की मांग इसलिए नहीं ही रही है, क्योंकि CBI पर सरकार के इशारे पर काम करने का आरोप लगता रहा है न.
लोकतंत्र सिर्फ मरता ही नहीं, पवित्र भी होता है. आप सोच रहे होंगे कि ये क्या तर्क है. तो आपको बता दें कि गोवा के बीच पर लोकतंत्र शुद्ध राष्ट्रवादी बन रहा था, वहीं कर्नाटक में ये शुद्ध होते होते रह गया.
एक बात तो माननी पड़ेगी कि अगर लोकतंत्र हत्या से बच भी जाता है, तो उस पर खतरा बना रहता है. मतलब लोकतंत्र खतरे में है और विपक्ष में आते ही लोकतंत्र खतरे में आ जाता है. मानो लोकतंत्र न हो, गंगा नदी हो गई. उसे बचाने के लिए सब हंगामा कर रहे हैं, लेकिन बचा कोई नहीं रहा है.
वहीं, सरकार में आते ही लोकतंत्र अचानक मजबूत होने लगता है. जैसे सरकार के पास कोई बोर्नवीटा या फिर हॉर्लिक्स हो.. लोकतंत्र को पिलाया और मजबूत हो गया..
टाइप ऑफ लोकतंत्र
अगर नेताओं के लोकतंत्र से मन भर गया हो, तो आपको बता दें कि लोकतंत्र और भी कई तरह का होता है. जैसे गरीब का लोकतंत्र. गरीब का लोकतंत्र बस वोट डालने के काम आता है. बाकी दिन वो विधायक से लेकर मंत्री जीके पास गिरवी रहता है..
पुलिस का लोकतंत्र डंडे में होता है, नेता जी को सलाम करता है और आम आदमी से सलाम करवाता है.
ये लोकतंत्र की हत्या हुई या ये सुरक्षित है, इसका फैसला हमारी हार और जीत पर डिपेंड करता है. हम हारे तो लोकतंत्र खतरे में है और जीते तो, लोकतंत्र का सीना 56 इंच का हो गया है. मानो हमारी जीत लोकतंत्र के लिए विटामिन की गोली हो..
लोकतंत्र को अम्बुजा सीमेंट का सेवन करना चाहिए. वो कहते हैं न इस सीमेंट में जान है.
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