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हाल में एयरक्राफ्ट कैरियर INS विक्रांत को भारतीय नौसेना में शामिल करने के मौके पर, नौसेना का "इंसिग्निया या प्रतीक चिन्ह" बदल दिया गया. अब भारतीय नौसेना का प्रतीक चिन्ह शिवाजी की राजमुद्रा पर आधारित होगा.
यह तो तय है कि भारत में स्थानीय राजाओं में नौसेनाओं के इस्तेमाल का लंबा इतिहास रहा है. लेकिन शिवाजी के शासन से करीब 5 से 6 शताब्दियों पहले दक्षिण में तमिलनाडु (तंजौर राजधानी), केरल और आंध्र प्रदेश में केंद्रित चोल साम्राज्य की नौसेना मध्यकालीन इतिहास की सबसे कुशल भारतीय नौसेना मानी जाती है.
यहां तक कि चोल शासकों ने गंगा नदी के इलाके में भी उस दौर के ताकतवर पाल वंशीय शासक को युद्ध में हराया, जिनका इलाका आज के बंगाल से उत्तरप्रदेश तक लगता था. चोलों ने नौसेना के दम पर ही चीन और अरब दुनिया के साथ घनिष्ठ व्यापारिक संबंध भी बनाए. यहां इन्हीं चोलों और उनकी नौसेना की चर्चा है.
इतिहासकार सतीश चंद्रा के मुताबिक,
इस दौर तक आते-आते चोल शासकों ने परंपरागत नौसेना पद्धतियों से अलग हटकर काम करना शुरू कर दिया था. राजराजा ने जहाजों को बनाने में पारंगत माने जाने वाले अरब और चीनी लोगों को काम पर रखा. नौसेना के प्रमुख को जलथिपथ्थी या नयगन कहा जाता था. इसके नीचे जहाजों की संख्या के हिसाब से प्रतिनिधित्व करने वाले अथिपिथू, गनथिपथी, मंडलाथिपथि जैसे कई पद होते थे.
मध्यकालीन चोलों से पहले उस इलाके में शासन करने वाले पल्लवों ने भी मलय प्रायद्वीप पर हमला करने की कोशिश की थी. लेकिन इसमें सफल चोल ही हो पाए.
राजेंद्र चोल ने सफलतापूर्वक तब श्री विजय साम्राज्य (आज का इंडोनेशिया) पर नौसैनिक हमला किया और वहां के राजा शैलेंद्र को अपने अधीनस्थ बनाया. चोल नौसेना ने बाद में तत्कालीन कंबोज (कंबोडिया) को दबाने के लिए भी श्रीविजय साम्राज्य का साथ दिया और कंबोज को जीतकर श्रीविजय में मिलाया.
चोल शासन में विदेशी संबंध बेहद उन्नत अवस्था में थे. जैसा ऊपर बताया, उनके अरब देशों से लेकर चीन तक व्यावसायिक संबंध थे. राजेंद्र चोल ने चीन में राजदूत भी भेजा था. भारत से मसाले चीन जाया करते थे, जहां से बदले में लोहा, कपास और दूसरे सामान भारत आते थे, इस माल का बड़ा हिस्सा कोरोमंडल से होते हुए फिर अरब भेज दिया जाता था, जहां से बदले में घोड़े जैसी दूसरी इस्तेमाल करने योग्य वस्तुएं चोल साम्राज्य में पहुंचती थीं. यह पूरी कवायद चोल नौसेना के संरक्षण में होती थी.
कुल मिलाकर कहें तो तत्कालीन चोल नौसेना लंबी दूरी तक अपनी शक्ति के प्रक्षेपण में सक्षम थी, इतिहास में इतनी ताकतवर नौसेना का भारतीय परिप्रेक्ष्य में बमुश्किल ही कोई उदाहरण मिलता है. अगर दूसरे उदाहरण हैं भी, तो भी चोलों की तरह वे कई शताब्दियों तक अपने प्रभुत्व को बनाने में नाकामयाब रहे हैं.
(स्त्रोत: हिस्ट्री ऑफ मेडिएवल इंडिया- संतीश चंद्रा, राइज ऑफ द चोलाज- डॉ मलयबन चट्टोपाध्याय, अ नोट ऑन द नेवी ऑफ चोला स्टेट (वाय सुब्बारायुलु, प्रकाशन- कैंब्रिज यूनिवर्सिटी प्रेस) एवम् अन्य
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