मेंबर्स के लिए
lock close icon
Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Lifestyle Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019छठ आ गया, अब जरा घाटों को चमका लें... और राजनीति भी

छठ आ गया, अब जरा घाटों को चमका लें... और राजनीति भी

छठ को लेकर होने वाली राजनीति थोड़ी ढकी होती है, थोड़ी खुली. 

अमरेश सौरभ
लाइफस्टाइल
Updated:
पूर्वी दिल्‍ली में नहर किनारे पक्‍के घाट बनवाए जा रहे हैं
i
पूर्वी दिल्‍ली में नहर किनारे पक्‍के घाट बनवाए जा रहे हैं
(फोटो: अमरेश सौरभ/द क्‍व‍िंट)

advertisement

छठ के मौके पर बिहार-झारखंड और पूर्वांचल की बहुत बड़ी आबादी भावनाओं की लहर पर सवार रहती है. दूसरी ओर राजनीति के माहिर खिलाड़ी इस आबादी की भावनाओं को भुनाने की ताक में लग जाते हैं. आखिरकार हर चुनाव में फैसला वोटों से ही होता है, इसलिए छठ की तैयारी में जुटे लोग श्रद्धालु भी होते हैं और राजनीति के चश्‍मे से वोटर भी.

सियासतदानों को छठ व्रतियों को लुभाने का मौका भी आसानी से मिल जाता है. जहां-जहां कोई नदी-तालाब नहीं होते, वहां छोटे-मोटे जलाशय बनावाए जाते हैं. जिन नदियों पर घाट नहीं होते, वहां घाट बनवाए जाते हैं. कुछ घाटों की मरम्‍मत कराई जाती है.

सबसे बड़ी बात ये कि पूजा के दिनों में घाटों पर भीड़ जुटने से पहले ही बड़े-बड़े बैनर लगा दिए जाते हैं. घाट किसने बनवाया, किसने सजाया... जिससे ये तो पता चले कि वो कौन है, जो उनकी भावनाएं समझता है.

सूरज देवता और छठ मैया के प्रति आदर दिखाते हुए कई नेता नाव या मोटरबोट पर सवार नजर आ जाते हैं. नावों पर भी बैनर जरूर होता है, जिससे निवेदक की पहचान जाहिर हो जाए. मजे की बात ये कि इस तरह की राजनीति थोड़ी ढकी होती है, थोड़ी खुली.

दिल्‍ली में वोटरों का हिसाब

अगर दिल्‍ली की बात करें, तो करीब 40 लाख ऐसे वोटर हैं, जो बिहार-झारखंड या पूर्वांचल से ताल्‍लुक रखते हैं. जाहिर है, ये चुनावों में किसी प्रत्‍याशी को जिताने-हराने में बड़ा रोल अदा करते हैं. इतनी बड़ी आबादी को लुभाने का लोभ भला कौन छोड़ सकता है?

दिल्‍ली की आम आदमी पार्टी की सरकार ने 2017-18 के बजट में राजधानी में छठ घाटों को बनाने के लिए विशेष प्रावधान किए थे. सरकार के मुताबिक, इस साल छठ पूजा के लिए यमुना नदी के किनारे 565 घाटों को तैयार किया जा रहा है. इन 565 घाटों में से 50 पक्के घाट बनाए जा रहे हैं.

नदी में सूर्य देवता को अर्घ्‍य देते श्रद्धालु(फोटो: PTI/)
ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

पहले आरोप-प्रत्‍यारोप, फिर गीत-संगीत

वैसे राजनीति और आरोप-प्रत्‍यारोप का खेल इन बातों पर भी चलता कि कहां-कहां घाट नहीं बनवाए गए, कहां-कहां सफाई नहीं कराई गई. सिर्फ जुबानी जमा-खर्च से बात नहीं बनती, तो पैसे भी खर्च किए जाते हैं.

घाटों पर शाम से लेकर सुबह तक कई घाटों पर स्‍टेज प्रोग्राम चलता है. कई लोकगायक भक्‍ति के गीत गाते हैं. कई जगह डीजे का भी इंतजाम होता है. ऐसे आयोजन अक्‍सर किसी स्‍थानीय नेता के सौजन्‍य से कराए जाते हैं.

कुल मिलाकर, घाट से लेकर गीत-संगीत तक, इंतजाम ऐसा होता है, जिसकी याद अगले चुनाव तक लोगों के जेहन में बरकरार रहे.

ये भी पढ़ें:

छठ या षष्‍ठी देवी की पूजा की शुरुआत कैसे? पुराण की कथा क्‍या है?

छठ पूजा के 7 गीत, जो आपको पटना का टिकट लेने को मजबूर कर देंगे

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

अनलॉक करने के लिए मेंबर बनें
  • साइट पर सभी पेड कंटेंट का एक्सेस
  • क्विंट पर बिना ऐड के सबकुछ पढ़ें
  • स्पेशल प्रोजेक्ट का सबसे पहला प्रीव्यू
आगे बढ़ें

Published: 22 Oct 2017,08:08 PM IST

ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT